इसमें 1927 से 1931 देवी जी का चिंतन और दर्शन पक्ष मुखर होता प्रतीत होता है। 'रश्मि' काव्य में महादेवी जी ने जीवन -मृत्यु ,सुख -दुःख आदि पर अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है। मीरा ने जिस प्रकार उस परमपुरुष की उपासना सगुण रूप में की थी, उसी प्रकार महादेवीज
दीपशिखा महादेवी वर्मा जी का का पाँचवाँ कविता-संग्रह है। इसका प्रकाशन १९४२ में हुआ। इसमें १९३६ से १९४२ ई० तक के गीत हैं। "दीप-शिखा में मेरी कुछ ऐसी रचनाएँ संग्रहित हैं जिन्हें मैंने रंगरेखा की धुंधली पृष्ठभूमि देने का प्रयास किया है। सभी रचनाओं को ऐसी
कामायनी की कथा मूलत: एक कल्पना‚ एक फैण्टसी है। जिसमें प्रसाद जी ने अपने समय के सामाजिक परिवेश‚ जीवन मूल्यों‚ सामयिकता का विश्लेषित सम्मिश्रण कर इसे एक अमर ग्रन्थ बना दिया। यही कारण है कि इसके पात्र - मनु‚ श्रद्धा और इड़ा - मानव‚ प्रेम व बुद्धि के प्र
एक कविता जो चलती है। खाती है ठोकर भी गिरती है.. फिर उठती है। एक नई नजर लेकर अपना सबकुछ खोकर उस खोने मे सबकुछ पा कर। वो चलती रहती है.. उस आदिम अनंत 'राह' पर। पर वो कभी रुकती नहीं.. एक चलती हुई कविता, चलती रहती है...
लोकतंत्र चाहिए या फिर भीड़तंत्र - फ़ैसला करें! असग़र वजाहत हिन्दी के अकेले कथाकार हैं जो कहानी में व्यंग्य, विद्रूप और करुणा एक साथ उत्पन्न करते हैं। उर्दू में मंटो को इसका जादूगर माना है लेकिन आज के लोकतंत्र को इस नज़र से देखने का हुनर शायद अकेले अस
युवाओं को जातिवाद छोड़कर मिलजुल कर देश प्रेम के प्रति जागरूक क्या गया है!
अग्निरेखा महादेवी वर्मा का अंतिम कविता संग्रह है जो मरणोपरांत १९९० में प्रकाशित हुआ। इसमें उनके अन्तिम दिनों में रची गयीं रचनाएँ संग्रहीत हैं जो पाठकों को अभिभूत भी करती हैं और आश्चर्यचकित भी, इस अर्थ में कि महादेवी के काव्य में ओत-प्रोत वेदना और करु
मेरी खुशी ओस की दो बूंदें जैसे,,,, वैसी ही है वो परियां, मखमली सी बातें गुणों में की है वो ख़ान, उसकी मुस्कराहट हर थकान मिटा देती, बातें उसकी नया ख्याब दिखा देती, सही रास्ते पर वो चलना सिखाती, भुल जाऊं तोनई राह दिखाती, भटका जब भी राहों से,,,याद उ
ले चल मुझे इस दुनिया से दूर कही जहां बातें हो बस तेरी मेरी यादें हो सब तेरी मेरी तुझ में मैं खो जाऊं मुझ में तू की जाए दुनियां से क्या लेना हमको बस तू मैं और मै तू हो जाए।।।
यह किताब निशा के जीवन के संघर्ष की कहानी है, जो समाज की रूढ़िवादिता का विरोध करते हुए सफलता हासिल करती है | वह बेटे की तरह ही अपनी सभी जिम्मेदारी और कर्तव्य का पालन करती है | यह कहानी कभी ना हार मानने वाली उस लड़की की है, जो समाज की हर लड़की को अपने जी
लड़की जब अपने घर रहती है ,तो उसके मां बाप उसे पराया धन कहते हैं और जब ससुराल जाती है तो वहां भी उसे पराए घर की कहा जाता है ,लड़की सोचती है की आखिर उसका घर कौनसा है ,उसके अपने कौन है,,,
ये कविताएं मेरे जीवन दर्शन की यात्रा है जो विभिन्न परिस्थितियों में मुझे एक दार्शनिक के रूप में स्वयं को देखने के लिए मजबूर करती हैं आप भी पढिये मेरे विचार मेरे दर्शन के द्वारा ।
रामगुलाम एक फौजी था । उसके पिताजी उमेद ने एक सेठ के पास अपनी एक एकड ज़मीन को गिरवी रखकर उधार में 50हज़ार रुपिये लिये थे। कुछ वर्ष बीत जाने के बाद उस सेठ की नियत में खोट आ गई और वह उस ज़मीन को हड़पने का षड़यंत्र रचने लगा। तब फौजी बेटे ने अपना तरीका आ
मन के भावों को कविता के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है
मेरी आने वाली किताब ' Alpana Saxena की डायरी " हरेक पाठक के जीवन से जुड़ी छोटी -छोटी घटनाओ आधारित मेरी मूल रचनाये है। जो सकारात्मक है और जिन्हें सरल और रोचकता देने का मेरा प्रयास है।
एक रिटायर्ड कर्नल है जिसकी पत्नी का देहांत हो चुका है। इसकी एक बेटा है जो अमेरिका में रहता है। वहीं उसने एक अमेरिकन लड़की से शादी कर ली है। कर्नल तनहा रहता है। कमला जो कर्नल के घर में नौकरानी है। कर्नल इसे अपनी बहन मानता है। यही कर्नल का ध्यान रखती ह
चार दिन की जिन्दगी जोे कि जदों में कैद है कितनी आजादी सेे हम अपनी हदों में कैद हैं बांट लेंगे आसमां भी गर हमें मौका मिले अब तलक तो ये जमीं ही सरहदों में कैद है तुम तो अच्छे आदमी हो ना मिलेगा कुछ तुम्हेेें नाम, पैसा और इज्ज्त सब बदों म