‘अल्फ़ा-बीटा-गामा’ एक ऐसे विषय को लेकर सभ्य, महानगरीय समाज की निर्दयताओं और अक्षम्य अमानवीयताओं को उजागर करता है जिसकी तरफ़ लिखित शब्दों का ध्यान अकसर नहीं जाता, वह भी इतने बड़े पैमाने पर कि उपन्यास हो जाए। यह उपन्यास मनुष्य की आत्मग्रस्तता को कभी कुत
‘मुस्लिम समाज सिर्फ़ ‘ग़ज़ल’ नहीं है, बल्कि एक ऐसा ‘मर्सिया’ है जो वह अपनी रूढ़िवादिता की क़ब्र के सिरहाने पढ़ता है। पर उसके साज़ और आवाज़ को कितने लोग सुन पाते हैं, और उसका सही दर्द समझते हैं?’’ लेखिका द्वारा की गई यह टिप्पणी इन कहानियों की पृष्ठभूम
एक कथा महायुद्ध की एक कथा कलयुग के प्रपच की एक कथा कलयुग के उदय की एक महान राजा की
इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर ब
*😢😢6 दिसम्बर 1956 राजधानी दिल्ली, रात के 12 बजे थे।* 🌗🌗 *☎️रात का सन्नाटा और अचानक दिल्ली, मुम्बई, नागपुर मे चारों ओर फोन की घण्टियाँ बज रही थी।* *🤫राजभवन मौन था,* *🤫संसद मौन थी,* *🤫राष्ट्रपति भवन मौन था।* *👨🦰👩🦰हर कोई कशमकश मे था।* *🔥शायद कोई
इस पुस्तक के भीतर आलोचना को निमित्त मानकतर गद्य में स्वतन्त्र कविताएँ रची हैं। इस पुस्तक के भीतर आलोचना नहीं, स्वतन्त्र काव्य का रस है। यह पण्डित का तर्क नहीं, कवि की वाणी का प्रसाद है। जिस प्रकार माखनलालजी की कविता और वार्ताएँ रसपूर्ण, किन्तु धुँधली
‘सैल्वेशन’ से लेकर ‘लिबरेशन’ तक स्त्री-मुक्ति किन कठिन रास्तों से गुजरी है–इसकी सजग दास्तान है अनामिका की कृति दस द्वारे का पींजरा। पितृसत्ता के वर्चस्व तले निरन्तर क्षयग्रस्त इस दुनिया में स्त्री की मुक्ति खोजना आकाश और धरती के बीच सांस्कृतिक पुल ब
राष्ट्रकवि दिनकर के इस 'वेणुवन' में लेख भी हैं, निबन्ध भी और काल्पनिक संवाद भी। यह चिन्तन-मनन के अभयारण्य की तरह है जिसका आकर्षण और प्रभाव अन्त तक बना रहता है। इसमें शामिल हर पाठ अपने रंग में रँगने की क्षमता रखता है। 'अर्धनारीश्वर' में दिनकर नर-नारी
एक वैभवशाली राजा जिसके एक ही पुत्र था। आने राज्य में अपने न्याय के लिए मशहूर राजा प्रजा के लिए बहुत ही अच्छा था। राजा का पुत्र सुभद्र देव बचपन से परकर्मी और मेधावी था। लेकिन एक राजकुमारी कें प्रेम में फंसकर वो एक प्रतियोगिता हार जाता है और इस हार से
शीत काल में ठंड ना लागे, सम्मर में साँप से डर ना लागे, खाने को दाने ना, पुलिस थाने ना, भर्ती होना आसान नहीं, जवानों का दर्द कोई जाने ना । दौर - दौर के छाले पयरों में, हित-नात की बातें दिलों में, होठों से होठ दबोच आँशु नयनों में, शौक है किसका डूब जान
Life is a beautiful journey that is meant to be embraced to the fullest every day. However, that doesn’t mean you always wake up ready to seize the day, and sometimes need a reminder that life is a great gift......
कामायनी की कथा मूलत: एक कल्पना‚ एक फैण्टसी है। जिसमें प्रसाद जी ने अपने समय के सामाजिक परिवेश‚ जीवन मूल्यों‚ सामयिकता का विश्लेषित सम्मिश्रण कर इसे एक अमर ग्रन्थ बना दिया। यही कारण है कि इसके पात्र - मनु‚ श्रद्धा और इड़ा - मानव‚ प्रेम व बुद्धि के प्र
एक कविता जो चलती है। खाती है ठोकर भी गिरती है.. फिर उठती है। एक नई नजर लेकर अपना सबकुछ खोकर उस खोने मे सबकुछ पा कर। वो चलती रहती है.. उस आदिम अनंत 'राह' पर। पर वो कभी रुकती नहीं.. एक चलती हुई कविता, चलती रहती है...
मेरी खुशी ओस की दो बूंदें जैसे,,,, वैसी ही है वो परियां, मखमली सी बातें गुणों में की है वो ख़ान, उसकी मुस्कराहट हर थकान मिटा देती, बातें उसकी नया ख्याब दिखा देती, सही रास्ते पर वो चलना सिखाती, भुल जाऊं तोनई राह दिखाती, भटका जब भी राहों से,,,याद उ
ले चल मुझे इस दुनिया से दूर कही जहां बातें हो बस तेरी मेरी यादें हो सब तेरी मेरी तुझ में मैं खो जाऊं मुझ में तू की जाए दुनियां से क्या लेना हमको बस तू मैं और मै तू हो जाए।।।
लड़की जब अपने घर रहती है ,तो उसके मां बाप उसे पराया धन कहते हैं और जब ससुराल जाती है तो वहां भी उसे पराए घर की कहा जाता है ,लड़की सोचती है की आखिर उसका घर कौनसा है ,उसके अपने कौन है,,,