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सामाजिक

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हे ग्राम देवता नमस्कार  धरती का करते उपकार।  किसने ये उत्पात किया।  धरती को आहत किया।     देख उसके कुकृत्यों को  सुखदेव भगत रो रहा आज।  शेखर सुभाष की कुर्बानी की  ना रखी उसने तनिक लाज।     क

तूफान सिर्फ दूर बैठे समुंदर में नहीं मेरे तुम्हारे सबके अंदर उठता है एक तूफान तूफान अरमानों का तूफान उम्मीदों का तूफान जज्बातों का तूफान जागीरों का।   होश में जोश खोने का गिरती दीवारों को उठ

हम मनुज हैं मनुज का सहारा बनें। डरे-डूबे हुओं का                      किनारा बनें।   नर से नारायण बनकर              हम सेवा करें। दीन-दुखियों के दुख को                  हम दूर करें। हम चलें आ

काम कितना हो कठिन सबको करना चाहिए। राष्ट्र सेवा के लिए सबको बढ़ना चाहिए। जन्म लेकर इस धरा कुछ तो मोल चुकायिए। काम कितना हो कठिन सबको करना चाहिए।   ध्येय मार्ग पर चल करके हिम्मत कभी न हारिए।

सबसे प्यारा देश हमारा हम इसका गुणगान करें। तन मन से इसकी रक्षा में अपना जीवन दान करें।   शस्य-श्यामल माटी इसकी जन-जन का पोषण करती। छिपाए अंक में अनुपम कोश दीन-दुखी का दुख हरती। सबसे प्यारा दे

कौन कहता है?    2020 बुरा था।  वह तो शुभचिंतक था   हमारा तुम्हारा।  आया था जगाने  कलियुगी नींद में सोये  हम सबको।   हर चीज की  अति बुरी होती है।  स्वार्थी बनकर  हम कर रहे थे खिलवाड़  नेचर क

नववर्ष नव मंगलम् भुवन मंडले मंगलम्। गगन मंडलं मंगलम् नववर्ष नव मंगलम्।   देवकीपरमानंदम्               अग्निर्ज्योति मंगलम्। आनंदामृतवर्षकम् धरणीम् भरणीम् मंगलम्। नववर्ष नव मंगलम् भुवन मंडले

मेरी आॅखें उस वक्त भी आसूॅओं से भर गयीं। मीनाक्षी ने मेरी ओर देखा। हम दोनों को पता था कि हम दोनों एक ही घटना के बारे में सोच रहे थे। अजान की आवाज खामोष हुई। “क्या यह तुम्हें अब भी ड़रा देता है?” उसने

ये पहली मौत नहीं थी जो मैनें देखी थी। कुछ तीन साल पहले इसी तरह पिताजी को भी देख चुकी थी, और वह भी इसी घर में। वह बीमार रहते थे, उनकी मौत अपेक्षित थी लेकिन माॅ की मौत मेरे लिए चैंका देने वाली थी। मुझे

कभी...। वह रविवार की आम सी सुबह थी। मैं एक घंटा और सोना चाहती थी जब अचानक मेरे पति विदुर ने मेरे गाल पर थपकी दी- “अरन्या!” मैंने आँखें खोलीं। “माँ को कल रात एक आतंकवादी हमले में मार दिया गया!” मैं एक

आज संगीत बहुत खुश थी।आज उसका इकलौता भाई सेना की ट्रेनिंग पूरी करके लेफ्टिनेंट के पद पर आसीन होकर घर जो आ रहा था।तीन साल से बैंगलूरू मे रहकर ट्रेनिंग ले रहा था। इसलिए संगीत अपने भाई सुनील को राखी भी ना

चढ्डा जी हाथ मलते रह गये। समीर अपना बैग उठाये ,पादरी की उॅगली पकडे उस जहन्नुम से निकल आया जिसे लोग उसका घर कहते थे। एक अच्छे हाॅस्टेल में उसने एक अच्छी जिन्दगी की षुरूआत की और तब भी समझ नही पाया कि ये

“लेकिन मेरे लिए??” समीर हैरान हो गया। उसे जल्द ही अपने लिखे उस खत की याद आयी जो उसने सेन्टा को भेजी थी। उसकी सोैतेली माॅ ने  वह खत पढा और हॅसते हुए उसके दो टुकडे कर दिये। समीर ने गुस्से में उनके हाथ स

“अरे उसे निकालो मत! इसमें सेन्टा मेरे लिए गिफ्ट रख कर जायेगें स्टूपिड!”  “गिफ्ट? इसमें?” समीर हैरान है।  “हाॅ...से न्टाॅक्लॅाज आज की रात आकर बच्चों के लिए गिफ्टस छोड कर जाते हैं इसमें। तुम्हें नही प

लैटर टू सेन्टा बारिश की छमछम रूक जाने तक समीर अपनी जगह पर ही खडा रह गया। हाथ में पकडा काॅफी का कप बाहर के मौसम की तरह ही ठण्डा हो चला है और खिडकी से बाहर देखती उसकी गुम सी आॅखों में भी सर्द नमी आ ग

हां सबकी नजरों में अखरती हूंजब अपनी मनमर्जीयां करती हुजब राहें अपनी खुद चुनती हूंजब अपने दिल की सुनती हूंखटकता है मेरा ये अंदाजअखरता हुनर मेरा जाने क्या है बातहां अड़ जाती हुगलत पर लड़ जाती हुअपन

बड़ी मेहनतों के बाद  प्रकृति के कोप से बचाकर  पशु पक्षियों से संरक्षित करते हुए  किसान जब फसल घर लाता है  तो उसे स्वर्ग जीत लेने का  आनंद सा आ जाता है ।  झुर्रियों से छुप

सखि, मुकद्दर भी बड़ी गजब की चीज है । सबका मुकद्दर एक सा नहीं होता बल्कि हर आदमी का अलग अलग मुकद्दर होता है । आदमी तो आदमी , कुत्तों का भी अलग अलग मुकद्दर होता है । कुछ कुत्ते तो सड़कों पर ही पैदा

मैं कलियों सी महकना चाहती थीतितली बन भरनी थी उड़ाननापना चाहती थी अपने हिस्से का आसमानरचना चाहती थी अपने ख्वाबों का संसारपर हर बार मुझे रोका गयापग पग पर मुझे टोका गयारौंदा गया पैरों तले मेरा

योगेश्वर सिंह मन ही मन उबल रहे थे । रविवार का दिन था और सुबह के नौ बज गये थे लेकिन ना तो बेटी टीना जगी , ना बेटा रोहन और ना ही बहू लक्षिता । सब खूंटी तानकर सो रहे थे । पत्नी दिव्या की ड्यूटी किसी परीक

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