एक मतला दो शेर मेरे दिल के अंदर क्या है ,जाने कब वो भापेंगे
थी ख़ता कुछ मेरी इल्ज़ाम थे कुछ और सज़ा कुछ वो मेरे सामने आता तो भला पूछता कुछ تھ
कम किया है न कभी प्यार ज़ियादा किया है काम चल जाए हमारा मगर इतना किया है
मैं ज़मीं ज़ाद हूँ अम्बर ने दुआ दी है मुझे चाँद ने अपने सितारों की क़बा दी है मुझे
मुसीबत का ये लम्हा काटना है मुझे औरों से अच्छा काटना है
उम्मीद की कली कोई खिलती चली गयी वो याद आ गया तो उदासी चली गयी हम आरज़ू के दश्त से
ख़त्म कर देती है ख़ुद ही फ़ासला मेरे लिए उसकी ख़ुशबू लेके आती है हवा मेरे लिए मैं
अब के फिर राह नई पाँव के छाले नए थे चारागर भी थे नए देखने वाले नए थे اب کہ پھر را
रूठना मनाना तो ज़िन्दगी में चलता रहता है हम रूठे भी तो किसके बहाने रूठे
सच कहूँ तो एक नाजुक सा रिश्ता है तेरे मेरे दरम्यान क्यों नाराज होते हो
अपने बेजान जज़्बातों में तेरा अहसास खोजते हैं,
✒✒अश्विनी कुमार मिश्रा की कलम✒✒ "माँ" वो कई रंगों को मिलाकर मेरे
✒✒अश्विनी कुमार मिश्रा की कलम✒✒ गुज़रे हुए वक़्त को हम भी ढूंढते हैं मगर
बात कल की ही तो थी अनुभव नही था लोग साथ थे आज अनुभव साथ है लोग नही...
याद हूँ मैं भुलाएँ ना भुला पाओगें ऐसा ही हूँ मैं जितना भुलाओगें मुझे
कुछ पल जिन्दगी लम्हा लम्हा ढलती जा रही ये ज़िन्दगी रेत की तरह फिसलती जा रही</
✒✒अश्विनी कुमार मिश्रा की कलम✒✒ यदि ज़िद है तो हा है ना तुम भी कोई कसर रखना न