वो भी क्या आलम था तेरी महफ़िल का वो भी क्या आलम था तेरी महफ़िल का जिसने हमें बदनाम शायर बनादिया तेरे होठों से पीना सीखा दिया
"रंजन" का सामान था एक चराग ,एक किताब और उम्मीद ,जब वो भी लूट लिया असहाब ने तभी तो एक अफसाना बना !https://ghazalsofghalib.comhttps://sahityasangeet.com
वही हमेशा डूबते हैं ठहरे हुए समंदर में "रंजन",जिन्हे तूफ़ान को अपने वश में रखने का गुरूर हो ।https://ghazalsofghalib.comhttps://sahityasangeet.com
हर ग़म ही रहा हर दम में मेरे, हर ग़म पे मेरा हर दम निकला ,"रंजन" हर दम की ये खू तेरे कूचे की हर दम ही मेरा हर दम निकला। https://ghazalsofghalib.comhttps://sahityasangeet.com
किसी के रोने पर किसी को रोना नहीं आता ,"रंजन" रोता है शायद खुद की किसी बात पर।। https://ghazalsofghalib.comhttps://sahityasangeet.com
मेरे रहनुमा लो मै फिर से आ गया खोंज में तेरे ,फिर से तूने मुझे गलत मंजिल पे क्यूँ छोड़ा था !https://ghazalsofghalib.comhttps://sahityasangeet.com
पतझड़ में सूखे पत्ते, यू बिखरे हैं,जिस तरह बिखर जाते हैं कभी,वह अपने ||
मेरे आँखों का आँसू क्यों तुम्हारे आँखों से बह रहा है तुम चुप हो मगर तुम्हारी चुप्पी सबकुछ कह रहा है जो कल गुज़री थी मुझपर उसका पछतावा तुम्हे आज क्यों तुम्हारा भी किसी ने दिल तोड़ दिया या तुमने शादी कर लिया
ख़ाली ही सही मेरी तरफ़ जाम तो आयाआप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया-अश्विनी कुमार मिश्रा
वो हम से ख़फ़ा हैं हम उन से ख़फ़ा हैंमगर उन से बात करने को जी चाहता हैरोज़ मिलते हैं उन से मगर बात नहीं होती हैभला हम क्या हमारी ज़िंदगी क्यान जाने हम में है अपनी कमी क्याबस तय ये हुआ कि मैं बुरा हूँइस से आगे तो इन से कोई बात नहीं होती है....-अश्विनी कुमार मिश्रा
■□■चंद अल्फाज़ दिल के■□■आपकी पारखी आँखों ने,पलकों पे जब से बिठा के रखा है।चुपके से उतर-टगर दिल की,धड़कनों में समातूफ़ान मचाए रखा है।।★☆★☆★☆★☆★☆★खुदकी ख़ुशबुओं से मदहोश,प्यार का ख़्वाब देखा है शायदउल्फ़त के काँटों की चुभन,दिल को नासाज़ किये रखा है।हुश्न तो होता है लाज़वाब सदा,सोहबत हुई- ईमान चकनाचूर किये रखा
ऐ दोस्त किसी रोज़ न जाने के लिए आतू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आमुझ को न सही ख़ुद को दिखाने के लिए आजैसे तुझे आते हैं न आने के बहानेऐसे ही बहाने से न जाने के लिए आआ फिर से मुझे न छोड़ के जाने के लिए आ-अश्विनी कुमार मिश्रा
यूँ बेफिक्र होकर मेरी फिक्र क्यों करता है बात मोहब्बत की हो तो मेरा जिक्र क्यों करता है रब के जगह महबूब को रखो तो रब रूठ जाते हैं तुम तो दिल में हो...यूँ कदमों में सर क्यों झुकता है
■□■□■◇●□●◇■□■□■★☆★इंतजार के लम्हें★☆★★☆★☆★☆★☆★☆★☆★माना के इंतज़ार है दुश्वार लम्हें इनको खुर्दबीन से मत निहारा करो।हौसला ओ' दम है गर-चे- पास तोकारवां के संग-संग बस चला करो।।💎💎💎💎💎💎💎💎💎💎ख़्वाबों से ख्वाहिश न पूरी हुई है कभी।मुक़ाम की ओर किश्ती को धुमा बहा चलो-साहिल पे नज़र सदा रखना अपनी कड़ी।।फरि
"इत्तफ़ाक"इत्तेफाक़ से गुज़रे बगल से जब वो,उन्हें देख कर, सन्न सा हो गया।शायद कई जन्मों का था साथ ,आँखें मिलीं- दिल एक दूजे में खो गया।।ख़ुशबू कैद हो गई ज़ेहन में गहरी,तरन्नुम की बेहिसाब अगन लगी।सोहबत की ललक इस कदर मची,मदहोश पीछे-पीछे जान चल पड़ी।।इत्तफ़ाक़ से,शहर की सरहद पे ठिठकना।एक दरख़्त के पीछे छुप बाते
*पुरानी ध्वनि नया तरीका:-* *_ध्वनि :-मैं दुनिया तेरी छोड़ चला_* मैं तन्हा जीना सीख रहा,नजरों के सामने मत आना|आंसू छलकते नैनो से, पोंछने के बहाने मत आना|मैं तन्हा....................... 💝💔💓💕💗💘करके बादे वफा के हमसे, गैरों से प्रीति लगा बैठे|जब से मिल गया मीत उनको,
मज़बूरियां आशिकी मेंखुदगर्जी आदमजात की फ़ितरत- दुनियावी शौक है!चाहतोँ का शिलशिला मजबूरी- न ओर है- न छोर है!!अपनी कमियों पर पर्दा डाल सभी पाक - साफ नज़र आते हैं!इनकार करते हैं मगर इकरार के दो लब्ज़ खातिर तरस जाते हैं!!टूटा है हर आशिक़ मगर- अबतलक़ बिखरा नहीं है।अश्क दिखते तो हैं हजार- मगर खुल रोता नहीं है
काव्य सृजन प्रतियोगिता में"महाकौशल काव्य श्री सम्मान''प्राप्त मेरी एक रचना■□■□■□■□■□■◆◇○शीर्षक: रिश्ते○◇◆■□■□■□■□■□■जानता हूँ- चाह कर भी उड़ नहीं सकते।बेवफ़ा हो,वफ़ाई के किरदार- बन नहीं सकते।।★☆★☆★☆★☆★☆★☆★"रिश्ता" बनाया है बेजोड़ तो तूं 'तोड़' न देना।प्यार किया, नफ़रत की चादर ओढ़ न लेना।।•••••••••••••••
उठाया है क़लम तो इतिहास लिखूँगामाँ के दिए हर शब्द का ऐहशास लिखूँगाकृष्ण जन्म लिए एक से पाला है दूसरे ने उसका भी आज राज लिखूँगापिता की आश माँ का ऊल्हाश लिखूँगा जो बहनो ने किए है त्पय मेरे लिए वो हर साँस लिखूँगाक़लम की निशानी बन जाए वो अन्दाज़ लिखूँगाकाव्य कविता रचना कर