दूसरों पर आरोप लगाने वाला स्वयं भी बेचैन रहता है,
सामान्य मनुष्य को यह लगता अवश्य है कि,
दुष्ट प्रकृति के लोग बहुत प्रसन्न रहते हैं*
पर यह सत्य नहीं होता।
दूसरे को सताने वाला या अनावश्यक ही दूसरे पर दोषारोपण करने वाला कभी स्वयं भी सुखी नहीं रहता।
जब कोई मनुष्य दूसरे पर दोषारोपण करते हुए उसके अहित की बात सोचता है,
तब वह अपने अंदर भी बेचैनी का भाव लाता है।
अनेक बार देखा गया है कि जब कोई मनुष्य स्वयं अपराध या गलती करता है, तब वह उसका दोष स्वयं न लेकर दूसरे पर मढ़ता है।
उसके झूठे दोष से पीड़ित व्यक्ति की जो आह निकलती है
वह निश्चित रूप से उस पर दुष्प्रभाव डालती है।
यह अलग बात है कि इस आह का दुष्प्रभाव तत्काल न दिखाई दे पर
कालांतर में उसका परिणाम अवश्य प्रकट होता है।
इसलिए कुछ भी अप्रिय कर्म करने से पहले सौ बार सोचना जरुरी है..