कुँए में गिरे शेर को बंदर भी आँखें दिखाता है। कीचड़ फँसे हाथी को कौआ भी चोंच मारता है।। मुसीबत में फँसा शेर भी लोमड़ी बन जाता है। मजबूरी के आगे किसी का जोर नहीं चलता है।। विवशता नई-नई सूझ-बू
भूख सयानों को भी दीवाना बना देती है। भूख की मार तलवार से भी तेज होती है।। भूखा कुत्ता डंडे की मार से नहीं डरता है। भूखा आदमी कौन-सा पाप नहीं करता है।। भूखा गधा हर तरह की घास खा जाता है। भूख
ईर्ष्या के बल पर कभी कोई धनवान नहीं बनता है। ईर्ष्या के डंक को कोई भी शांत नहीं कर सकता है।। लोहे के जंग जैसा ईर्ष्या मनुष्य को भ्रष्ट करती है। ईर्ष्यालु अपने बाणों से अपनी हत्या कर देती है।।
प्रत्येक सद्गुण किन्हीं दो अवगुणों के मध्य पाया जाता है। अच्छाई सीखने का मतलब बुराई को भूल जाना होता है।। धन-सम्पदा, घर और सद्गुण मनुष्य की शोभा बढ़ाता है। सद्गुण प्राप्ति का कोई बना-बनाया रा
डायरी सखि, कोरोना के बाद कहीं आना जाना नहीं हुआ था । बच्चों का मन था कि कहीं घूमकर आयें । तो अचानक प्रोग्राम बन गया और शनिवार की शाम को हम लोग यहां माउंट आबू आ गये । सोचा था कि यहां गर्मी से
एक नारी की डायरी के आधे से अधिक पन्ने किस्से-कहानियों से भरे थे बाकी बचे हुए पन्ने खाली और सुनसान पड़े थे | उसने सोचा अपनी कविताओं से आज इस पन्ने को सँवार दूँ&n
एक पक्ष की नम्रता बहुत दिन तक नहीं चल पाती है। एक बार शालीनता छोडने पर लौटकर नहीं आती है।। दूध में उफान आने पर वह चूल्हे पर जा गिरता है। शालीन व्यक्ति नम्रता धृष्ट व्यक्ति से सीखता है।। वह कभी
अति परिचय से अवज्ञा होने लगती है। बहुत तेज हवा से आग भड़क उठती है।। अति बुराई का रूप धारण कर लेती है। उचित की अति अनुचित हो जाती है।। कानून की अति अत्याचार बढाता है। अमृत की अति से विष बन जाता
दूसरे के भरे बटुए से अपनी जेब के थोड़े पैसे भले होते हैं। समझदार पराया महल देख अपनी झोंपड़ी नहीं गिराते हैं।। अपना सिक्का खोटा तो परखने वाले का दोष नहीं होता है। दूसरों का भाग्य सराहने वाला अपने भा
बड़े मुर्गे की तर्ज पर छोटा भी बांग लगाता है। एक खरबूजे को देख दूसरा भी रंग बदलता है।। एक कुत्ता कोई चीज देखे तो सब उसे ही देखते हैं। बड़े पंछी को देखकर छोटे-छोटे भी गाने लगते हैं।। एक अंगूर क
जल्दी-जल्दी चढ़ने वाले जमीं पर धड़ाम से गिरते हैं।। एक-एक पायदान चढ़ने वाले पूरी सीढ़ी चढ़ जाते हैं।। जल्दीबाजी में शादी करने वाला फुर्सत में पछताता है।। छटाँक भर धैर्य सेर भर सूझ-बूझ के बराबर ह
कोई भी सेब पेड़ से बहुत दूर नहीं गिरता है। बछड़ा अपनी माँ से बहुत दूर नहीं रहता है।। दूर का पानी पास की आग नहीं बुझा सकता है। मुँह मोड़ लेने पर पर्वत भी दिखाई नहीं देता है।। दूर उड़ते हुए पंछी क
मित्र के घर का रास्ता कभी लम्बा नहीं होता है।। मित्रों का भला करने वाला अपना भला करता है।। बिना विश्वास कभी मित्रता चिर स्थाई नहीं रहती है। मैत्री में महज औपचरिकता अधूरेपन को दर्शाती है।। दूसर
सभ्यता का संबंध हमारे जीवन से होता है यथावत खान पान, रहन सहन, भाषा भाषी आदि संस्कृति का संबंध हमारी विचारधारा से होता है। सभ्यता का अनुकरण किया जा सकता है किन्तु संस्
डायरी सखि , आज तो खुद ही खुद पर लिखवा रही हो हमसे । क्यों , और कोई विषय नहीं मिला क्या ? तुम भी तो "ओट" में ही रहती हो सखि । जैसे एक स्त्री रहती है ओट में । पहले अपने पिता की ओट में । फिर पति की
योग शरीर को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है।योग मुख्यतः चार प्रकार का होता है--- राज योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग।राज योग-- राज अर्थात राजसी योग। इसमें आठ अंग होते हैं।इसमें यम, शपथ
है वो बेजुबान पर, फिर भी समझता है, आँखों की भाषा । शब्दों से अनजान होकर भी, सोच की परिभाषा ।। समझता है कदम-कदम में छिपे मेरे भाव। महसूस जो करूँ वह, अनदेखा अभाव।। समझता है आँखों की पुतलियों त
बच्ची ,कोख में घूम यह सोचे.. क्या ,दुनिया बाहर भी अंदर जैसी ही है? क्या ,वहाँ माँ की कोख जैसी ममता की गर्माहट है? क्या ,मेरी माँ की आवाज़ की बाहर की आहट है? क्या ,बाहर की दुनिया भी मेरी माँ के
व्यथा दर्द में लिपटी बेटी की वो हीना समझी तो ,समझेगा कौन ? अंश से वंश की दिशा दिखाने वाली न समझी तो, समझेगा कौन?? सही -गलत का ज्ञान कराने वाली न समझी तो, समझेगा कौन? सुख संताप का भेद बताने वाल
खो दिया एक बार तो फिर उसे कैसे फ़िर पाओगे? पा भी गए अगर तो उससे कैसे निभाओगे? निभाने के लिए हौसला फिर कहाँ से लाओगे ? हौसले को इतना बुलंद कैसे बनाओगे? बुलंदियों पर चढ़े उस रिश्ते को ज़हन में कै