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स्त्री विमर्श -

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** सशक्त नारी**छोड़  चारदीवारी के घेरे को बनाने एक नई पहचान चली है। अपने हर कर्तव्य को पूरा करते हुए लिखने एक नया इतिहास चली है।कोमल है,कमजोर नही वो अपनी काबिलियत सबको दिखलाना है। पुरुष

वह बरसात की, इक काली थी, भीगी सड़क, सुनसान थी, दामिनी, चमक चमक कर, रास्ता दिखा रही थी, बिजली की कड़क, मन में दहशत, भर रही थी, भीगा बदन, कंपकंपा रहा था, कदम मंजिल, की ओर बढ़ रहे थे, सन्नाटे को चीरती,

तेरी मासूमियत ने, एक अजब सी, छाप छोड़ी, सब कुछ, हार कर, तेरे हो लिए, पर जब, क़रीब आए, तो जाना मैंने, मासूमियत का, दिखावा, क्या खूब किया, लोग तो, चालाकियों से, तबां होते हैं, हम तो, तेरी मासूमियत, से ब

  जब दोबारा हाथों में रची मेंहदीराघवेन्द्र जी का घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था ग़ुलाब, बेला, चम्पा और मोंगरें के फूलों से पूरा वातावरण महक रहा था उनकी इकलौती बेटी रति

नवम शक्ति सिद्धिदात्रीनवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ, सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। यह देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान हैं। 

अष्टम शक्ति महागौरी नवरात्र के आठवें दिन आठवीं दुर्गा महागौरी की पूजा-अर्चना की जाती है। अपनी तपस्या द्वारा इन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था । अतः इन्हें उज्ज्वल स्वरूप की शारीरिक, मानसिक और सां

सप्तम शक्ति कालरात्रि अपने महा विनाशक गुणों से शत्रु एवं दुष्ट लोगों का संहार करने वाली सातवीं दुर्गा का नाम कालरात्रि है। सांसारिक स्वरूप में यह काले रंग-रूप की अपनी विशाल केश राशि को फैलाकर चार

षष्ठम शक्ति कात्यायनीयह दुर्गा, देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई ।और महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के रूप में पाला साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी दे

पंचम शक्ति स्कंद माताश्रुति और समृद्धि से युक्त छान्दोग्य उपनिषद के प्रवर्तक सनत्कुमार की माता भगवती का नाम स्कंद है। उनकी माता होने से कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को पांचव दुर्गा स्कंदम

चतुर्थ शक्ति कूष्मांडाये अष्टभुजाधारी, माथे पर रत्नजड़ित मुकुटवाली, एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा है। इनका वाहन बाघ है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारो

बाहर से जब थक कर घर के लोग आए  तो हाल-चाल उनका पूछती हूं किसी दिन कोई मेहमान आ जाएं तो सेवा उसकी करती हूं  बच्चें जब छोटी-छोटी बातों पर रूठ जाए  तो मैं ही उनको मनाती हूं  रात-रात भर जाग-जाग कर  अक्सर

वर्षो से एक आस है, कभी तो धुंध छंटेगी, घर आंगन में, खुशियों की बरसात होगी, हर औरत यह, ख्वाब संजोती है, दुखों की भीड़ में, खुशियों को ढूंढती, मन के अहसास, जज़्बात कब के, खो गए हैं, आस की चादर, ओढ़े खड़

प्यार का इज़हार" जिस दिल में प्रेम होता है उस मन में  मदद की भावनाएं सागर की लहरों की तरह हिलोरें लेती हैं " यह तथ्य इस कहानी की नायिका स्वाति के व्यक्तित्व पर पूर्णरुपेण लागू होती है य

  मृगतृष्णामेधा जब घर लौटी तो आज भी दरवाजे पर ताला लगा हुआ था ताला देखकर मेधा गुस्से से भर उठी वह सोचने लगी समीर आज भी नहीं आया जबकि उसने कहा था कि,वह आज ज़रूर लौट आएगा। मेधा ने ताला खोला और

सभ्य सभा में हुआ आज एक अनर्थ भारी अपनों के समक्ष अपनों से ही लज्जित होती थी एक  नारी थे पांच पति उस सभा बीच पांचों के पांचों मौन रहें यह कठिन कुठाराघात हृदय में कोमल हृदया कैसे सहे

सिंधु ताई जब रेलवे स्टेशन पर लोगों से खाना मांगती उसी दौरान वहां पर उसे कई बच्चे भोजन के लिए संघर्ष करते दिखाई दे जाते lकभी-कभी कुछ को भोजन नसीब होता तो कभी-कभी वह सभी पानी पी के सो जाते lसिंधु ताई रे

हर आहट पर, चौंक जाती हूं, किस के, आने का, इंतज़ार है, जो गया, वो न आएगा, फिर भी, यह कैसा, इंतज़ार है, तू बेवफा है, जानती हूं, कुछ आस, बाकी है, छुपी है, दिल में, की तू आए, जफ़ा का, दर्द, वफ़ा बन, मुस्क

रेत का घरौंदा (झूंठे रिश्तों से मुक्ति)" मैंने तुमसे क्या कहा था ना, मीरा को बेवकूफ़ बनाकर शीशे में उतारन

तृतीय शक्ति चंद्रघंटाशक्ति के रूप में विराजमान चंद्रघंटा मस्तक पर चंद्रमा को धारण किए हुए है। नवरात्र के तीसरे दिन इनकी पूजा-अर्चना भक्तों को जन्म-जन्मांतर के कष्टों से मुक्त कर इहलोक और परलोक में कल्

*आजकल कुछ -कुछ अपने मन का करने लगी हूँ मैं*आजकल  कुछ- कुछ अपने मन का करने लगी हूँ मैं। सुबह की चाय के साथ चंद पलों के लिए ही पर हर रोज  अखबार  के पन्ने पलटने लगी हूँ मैं। रखती

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