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स्त्री विमर्श -

hindi articles, stories and books related to Stri vimarsh -


जब हम मिले थे, तब कितनी ख़ुशी थी, क्या थे वो दिन, क्या थीं वो रातें, हर रोज मिलना, मिलकर बिछड़ना, न लोगों की परवाह, न ज़माने का डर था, बागों में जाना वह ऊधम मचाना, झूलों पर चढ़ना और चढ़कर उतरना, हुईं

विदेशी बहू स्वदेशी संस्कार  रेवती जी चिंता के साथ-साथ डरी भी हुई थीं जब से उनके बेटे भारत का फोन आया था फोन पर उसने कहा कि, वह अपनी पत्नी लिजा के साथ हमेशा के लिए भारत आ रहा है अब

-अनिल अनूप चाचा अक्सर हमारे घर आते थे. बहुत हंसमुख और मिलनसार किस्म के थे वो. कभी बच्चों के लिए संतरे लाते तो कभी बेकरी वाले बिस्किट. सभी लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे, लेकिन मुझे वो रत्ती भर भी पसंद न

अनिल अनूप उस दिन हिम्मत और डर की गज़ब लड़ाई हुई थी। सुबह उठ के घर के सारे काम किये, बिना किसी को ये एहसास दिलाए की आज उन्हें जाना था किसी को खुद को समर्पित करने, समाज के बंधन तोड़ने। उनके मन में हज़ार सं

सुमी अरी ओ सुमी ! कितनी देर और लगेगी तैयार होने मे लड़के वाले कभी भी आ सकते है।"मां ने नीचे से ही सुमी को आवाज लगाई ।इधर सुमी तैयार तो कभी की हो गयी थी पर उसे नीचे आते हुए डर लग रहा था उसके पैर कांप र

टूटे ख्वाबों को देखकर डर जाती हूं, खुद अपने में ही सिमट जाती हूं, तुम फिर ख्वाबों में आओगें, यह सोचकर सो जाती हूं, एक बार फिर टूटकर बिखरने के लिए, क्योंकि मैं  जानती हूं तुम आओगे, व्यंग से मुसकुर

प्यार की दस्तक (प्यार किया नहीं जाता हो जाता है)जया जैसे ही ट्रेन में चढी ट्रेन रेंगने लगी उसने अपने भैया (मामा जी के बेटे) को हाथ हिलाकर विदा किया, " जया

मेरी डायरी आत्ममंथन इतिहास, समाज और मन की कुछ बातें भाग 3 डायरी के पिछले पन्नों पर मैंने नैतिक मूल्यों की बात की थी जो प्राचीन काल में हमारी शिक्षा प्रणाली के विशेष अंग थे जिनकी शिक्षा प्रत्येक

हाँ मैं डरपोक हूँ, डरती हूँ जमाने से। खुद को कैद कर लिया है, बचती हूँ बाहर जाने से। लेकिन घर के अंदर भी, रह ना पाती सुरक्षित। रिश्तों का नकाब ओढ़े, दरिंदों से होती भक्षित। घूरतीं हुईं निगाहें, हर जगह

एक लड़का एक जूतो की दुकान में आता है गांव का रहने वाला था, पर तेज़ था....उसका बोलने का लहज़ा गांव वालों की तरह का था, परन्तु बहुत ठहरा हुआ लग रहा था... उम्र लगभग 22 वर्ष की रही होगी...दुकानदार की पहली नज़

चंदा को ना जाने क्यों आज सुंदर की याद आ रही थी।वह जानती थी कि वो दिल फेंक आशिक था पर था तो उसकी बेटी का पिता ।आज अचानक से वो पुरानी यादों मे खो गयी।वो पहाड़ों पर घर का चुल्हा जलाने के लिए लकड़ियां बीन

**नारी हैं हम**तिनका तिनका जोड़ कर हमें अपना आशियाँ बनाना आता है। हम नारी है हमें कम में भी अपना संसार चलाना आता है। कुछ सपने हम भी देखते हैं वक़्त के झरोकें से ,मौका मिलते ही उसे पुरा करना

बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

शाम को मैं घर बैठा अपनी बच्चियों से खेल रहा था कि दोस्त ताहिर साहब बड़ी अफरा-तफरी में आए। कमरे में दाख़िल होते ही आप ने मैंटल पीस पर से मेरा फोंटेन पेन उठा कर मेरे हाथ में थमाया और कहा कि “हस्पताल में

मेरा साया मेरे साथ , एक वहीं तो मेरे पास , सबने छोड़ा मेरा साथ, उसनेे ही पकड़े रखा हाथ, दुनिया ने किया किनारा, पर उसने दिया सहारा, वह सुख में ही नहीं, दुख में भी मेरे पास , दिल में उसके होने का अहसास

मैं कौन हूं ? कहां से आईं हूं ? मैं स्त्री हूं, शायद यह मैं भूल गईं मेरा अस्तित्व टूटकर बिखरने लगा, फिर भी मैं चुप रही, मेरी आत्मा और स्वाभिमान को कुचला गया, फिर भी मैं मौन रहीं क्योंकि मैं स्त्री हूं

गुलाबी ख़तपता नहीं वह सपना था भ्रम!! सलोनी अपने हाथ में पकड़े हुए उस गुलाबी ख़त को बार-बार पढ़ रही थी। उसने अपनी आंखों को अपनी हथेलियों से मला फिर पढ़ने लगी पर ख़त के शब्दों में कोई बदलाव नहीं आय

मन में दबी अधूरी ख्वाहिश  नीरा अपनी अधूरी ख्वाहिश को पूरा करना चाहती थी लेकिन वह जानती थी कि, उसके माता-पिता उसकी उस अधूरी ख्वाहिश को कभी पूरा नहीं होने देंगे नीरा अपने मेडिकल

*सनातन धर्म में जहां एक और सबको समान अधिकार मिले हैं वहीं दूसरी ओर कुछ कृत्य कुछ लोगों के लिए वर्जित भी बताये गये हैं | सनातन धर्म का प्राण हैं भगवान की कथाएं , जिसे कहकर और सुनकर मनुष्य आनंद तो प्राप

आज फिर भाषण प्रतियोगिता जीत के आई है, कितना अच्छा लगता है ना इतनी कम उम्र में ऐसी सोच से लोगों की मानसिकता पर असर डालने का प्रयास करती है। मां ने खुश हो कर बड़ी नानी से बोला। बस महाभारत शुरू....... बह

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