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स्त्री विमर्श -

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 अनुच्छेद  74          मेरी यादों के झरोखों से-------------------------------------------------------------------------------------------सेठ रविशंकर जी का उनके परिजन

अनुच्छेद 72               मेरी यादों के झरोखों से------------------------------------------ - ------------------------------------------------------------------

अनुच्छेद 70                  मेरी यादों के झरोखों से ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^           "मानव जीवन भी बड़ा

अनुच्छेद 69            मेरी यादों के झरोखों से----------------------------------------------------- ----------------------------------------------------------------------

जब छोटी थी मैं, घर घर खेला करती थी मैं।   आँखों में काजल लगा कर,   माथे पर बड़ी सी बिन्दी। गहरी गहरी लगा के लिपस्टिक, पाउडर पोत लेती थी मैं। मम्मी की चुनरी को, साड़ी की तरह लपेट कर

      ये कहानी शुरु होती है, निशा से! निशा यू तो भरा पुरा परिवार रहा है उसका, पर उसी परिवार के बीच हर किसीसे जूडे हेने के बावजूद अपना अलग वजूद की तलाश में अकेले सबसे दूर रहती, निशा! निश

अनुच्छेद 58                   मेरी यादों के झरोखों से ______________________________________________________________________________ पिछले अंक मे

अनुच्छेद 56                     मेरी यादों के झरोखों से*__________________________________________________________________________________मधु को

पतझड़ के बाद बहार आई, मन में उमंग की फुहार लाई, चलीं फिर यादों की पुरवाई, बीतीं बतियां मोहे याद आईं, जब पनघट पर तुम आए थे, मुझे देखकर मुस्कुराए थे, मैंने शरमा कर अंखियां झुकाई थी, तुमने प्रेम का गीत ग

पाणिग्रहण खुशियों की सौगात शादी की सभी तैयारी हो गई थी बाहर रिमझिम फुहारों ने वातावरण को खुशनुमा बना दिया था तभी रमेश जी को पंडितजी की आवाज सुनाई दी।" कन्या के माता-पिता को बुलाइए

   जब मन की सभी आशाएं हुई पूरीआज आराधना की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था उसके चेहरे की मुस्कान उसके मन की खुशी का इज़हार कर रही थी। उसकी आंखों के सामने ऊंचे-ऊंचे प

  अनुच्छेद  45          मेरी यादों के झरोखों से  -------------------------------------------------------------------------------मधु से मिलकर किशोर पार्क से

  उधर कृपा अपनी जीवन की गाड़ी को धीरे-धीरे आगे बड़ा रहा था।ईश्वर पर विश्वास, दृढ़-संकल्प लगन का ही परिणाम था कि छोटी सी दुकान बड़ी बन गई थीं।शादी,पार्टियों,उत्सवों समारोह में जूस सप्लाई का काम मिल जा

हे आर्य पुत्र,? हे ज्ञान पुंज,? यह प्रश्न हमारा है तुम से,? जब ज्ञानी बन कर ज्ञान बांटना, लक्ष्य यहीं है मालूम था? तब गठं बन्धन का बंधन क्यों, लेना तुमने स्वीकार किया?? जब बंध ही गए थे बन्धन में तब बं

  मैं लौटकर आऊंगामुग्धा के हाथ से रिसीवर छूटकर गिर गया वह स्तब्ध खड़ी रही उधर से हेलो, हेलो की आवाज आ रही थी तभी हाल में मुग्धा का देवर पवन आ गया उसने स्तब्ध मुद्रा में अपनी भाभी को खड़

  भूली दास्तां फिर याद आ गईदस दिनों से लगातार बरसता हो रही थी आज जाकर सूर्यदेव ने दर्शन दिए गायत्री जी ने अपने घर काम करने वाली दुलारी की बेटी रानी जो अपनी मां के साथ अकस

तुम्हे चाहने का मुझे हक हैमुझे चाहने का तुम्हे हक हैंफिर हम दोनों के बीच मेंक्यो ये बेमतलब का शक हैं

निशान्त ने घर तो पहले ही छोड़ दिया,श्रेया की सुनैना की चौक-झौक रहती थी।सुनैना और श्रेया में छत्तीस का आँकड़ा रहता था।निशान्त काले धंधे का  भाई(डॉन)था।निशान्त के नाम की साफ़-सुधरी छबि थी।अशान्त नाम स

द्रोण रोकता-टोकता लेकिन कोई प्रभाव नहीं पढ़ता।द्रोण की खाट एक अंधेरे कमरे एकान्त में डा़ल दी।खाट पर पड़े पड़े प्राश्चित के लिए जीवित था।प्राग्रिया अपने दुख में ही मग्न थी।प्राग्रिया ही द्रोण का ख्याल रखत

थी ऊंची पहाड़ी वह झरनें का गिरना दरिया की कल-कल फ़िज़ाओं में हर पल जहां था बसेरा सितारों का हरदम वहां मेरा आना जहां तुम खड़े थे वह नज़रों का मिलना फिर पलकों का झुकना वो दिल का धड़कना वहीं हम थें मिलते

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