प्रत्येक महान कार्य को तीन अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है- उपहास, विरोध और स्वीकृति।
उपहास - मानव मन का एक स्वभाव यह भी है कि वह स्वयं कुछ श्रेष्ठ करना नहीं चाहता है और जो करना चाहता है उसे भी नहीं करने देना चाहता है। सामने वाले के मनोबल को गिराने का सबसे सशक्त हथियार है कि उसका अथवा उसके द्वारा किये जा रहे कार्य का उपहास किया जाए जिससे करने वाला स्वयं पीछे हट जाए।
विरोध - जहाँ उपहास से बात नहीं बनती फिर वहां से विरोध जन्म लेना शुरु करता है। मनुष्य हर उस महान कार्य का विरोध करता है, जो वह स्वयं कर नहीं सकता। मनुष्य मन बड़ा ही ईर्ष्यालु होता है इसलिए दूसरे की यश, कीर्ति, मान, प्रतिष्ठा वह कभी देख ही नहीं सकता।
स्वीकृति - उपहास और विरोध जैसे आत्मबल को गिराने वाले अस्त्र जहाँ निष्फल हो जाते हैं फिर वहाँ एक ही रास्ता बचता है, और वो है, स्वीकृति। महान कार्य करते समय कभी जीवन में विरोध होने लगे तो अपने आत्मबल को कमजोर किये बगैर धैर्य से काम लेना और ये बात स्मरण रखना कि स्वयं भगवान श्री राम का एवं भगवान श्रीकृष्ण का भी विरोध भी विरोध हुआ तो तुम चीज ही क्या हो।
बस धैर्य एवं निष्ठा के साथ अपने मार्ग पर अग्रसर रहें, लोग हँसेगे, लोग जलेंगे मगर आपकी कीर्ति के प्रकाश को धूमिल नहीं कर पायेंगे।