तुम भी तो हो वसुधा के मानव।
निहित कर्तव्य निभाओ जीवन का।
खिल भी लो पुष्प नव नूतन सा।
चहको भी कुंजर बन उपवन का।
जीवन की उपमानों को कर आलेखित।
इसकी धारा के अनुरूप भाव कर लो।।
मानो नहीं नियम, कोई बात नहीं।
तुम बहकोगे ऐसी हुई हालात नहीं।
उषा किरण आएगा अब, बची रात नहीं।
तुम क्यों व्याकुल हो, होना है बरसात नहीं।
जीवन की उपमानों को कर आलेखित।
सुधा के हो, वसुधा सा स्वभाव कर लो।।
तरुवर सा फलित तो हो कर देखो।
सुख का अनुभव होगा जीने पर।
इच्छित सुधा जीवन में जी भर पीने पर।
सुगंध की धारा झर जाए मन भीने पर।
जीवन की उपमानों को कर आलेखित।
हे मानव, जीवन के धारा सा बहाव कर लो।।
अनुमानित कुछ तो नहीं, है जीवन पथ।
अनुत्तरित प्रश्नों को अब रहने दो ऐसे।
क्यों पथ पर व्याकुल हो, किंचित भय से।
तुम जानो, क्या होता पहले समय से।
जीवन की उपमानों को कर आलेखित।
हे मानव, पथ पर आगे पड़ाव कर लो।।
तुम भी तो हो वसुधा के, आक्रोशित मत हो।
जीवन के पथ पर, व्यर्थ में अवशोषित मत हो।
व्यर्थ प्रभाव मन भाव के, पोषित मत हो।
जीवन के पथ का प्रभाव, तुम घोषित मत हो।
जीवन की उपमानों को कर आलेखित।
धारा जीवन की हो जो धसमस, सीधी नाव कर लो।।