तब आंटी और अंकल ने माहि कि शादि करने की फैसला ली । क्यूंकि उन्हें डर था की कही माहि अपने साथ कुछ गलत ना कर ले और उसकी शादी एक अच्छे विजनेस मैन लड़के से हो गई । और अब वो एक खुशहाल जिंदगी जी रही है ।
अब आगे ....
सेजल - चलो अच्छा हुआ माहि कि शादि के बाद सम्भल गई । चलो अब क्लास रूम में हिन्दी के प्रोफ्रेसर मिस्टर राय को तो तुम जानती ही हो । थोड़ा सा भी लेट आये उनके क्लास में स्टूडेंट की क्या मस्त बेईजती करते हैं ।😆😆
अर्जिता - हा चलों नहीं तो क्लास के बाहर हाथ ऊपर कर खड़ा होकर अपनी पोपट बनवाने से बेहतर है की हम पांच मिनट पहले ही क्लास रूम धरना दे दे और हंसते हुए दोनों हिंदी की क्लास लेने चली गई ।
मिस्टर राय क्लास रूम में आये और सबसे पहले सारे बच्चों बोले - सुप्रभात बच्चों ।
आज हम आप सब को मानव मन की सीमा रेखा के बारे में बताने जा रहे हैं । तो चलिए सब लोग ध्यानपूर्वक सुनिए ।
⭐ मन !मानव का मन मानवता का सबसे प्रबल प्रतीक और मानवीय मूल्यों का सबसे अनमोल खजाना है । मानव मन के अस्तित्व का बोध , कुछ सरल साहित्यिक शब्दों के माध्यम से , चंचल सरिता , गंभीर सागर , गहन झील ,स्वच्छ समीर , जीवन दर्पण , इत्यादि के रूप में किया जा सकता है । यह एक वैश्विक यथार्थ है कि किसी भी मानव के जीवन में उसका मन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । मनुज के संग समग्र आचरण की कोटि एवं गुणवत्ता उसके मन के इर्द-गिर्द ही परिक्रमित होती है ।
मानक विशाल हिंदी शब्दकोश के अनुसार 'मन 'का एक अर्थ है ज्ञान , संवेदन संकल्प आदि की साधनरूप अंतरिन्दिय , चित्त । दूसरा अर्थ है अंतःकरण की संकल्प - विकल्प करने वाली वृत्ति और तीसरा अर्थ है इच्छा , जी । आदमी के ' मन ' का विश्लेषण यदि 'संत कबीर ' के दर्शन के प्रकाश में किया जाए , तो वह मानव - जीवन की कसौटी के रूप में स्थापित होता है । इसी मन द्वारा मनुष्य गोरख के समान सिद्ध योगी हो सकता है और परमात्मा के निकट पहुंच सकता है । कबीर दास के दोहे में यही विशिष्ट भाव निहित है -
मन गोरख मन गोविंद ,
मन ही औधड होई ।
जो मन राखें जतन करि ,
आपै करता सोई ॥
कबीर के माता अनुसार 'मन 'बड़ा चंचल है और वस्तुतः कजरी बन में मतवाले हाथी के समान है । उस पर उचित नियंत्रण हेतु ज्ञान का अंकुश जरूरी है । उनका यह भाव उनके निम्नांकित दोहे में अभिव्यक्त है :
काया कजरीबन आहै , मन कुंजर मैमंत ।
अंकुश ज्ञान रतन है , खेवट बिरला संत ॥
कबीर मन की विशेषता वर्णन करते हुए कहते हैं
पानी हूँ तै पातरा , धुवां हूँ तै झींन ।
पवना बेगी उतावली ,
सो दोस्त कबीरै कीन ॥
तात्पर्य यह की 'मन ' पानी से भी पतला , धुआं से भी सूक्ष्म और पवन से भी अधिक वेग वाला है । "
कबीर - दर्शन के अनुसार मानव को अपने मन को , अपनी साधना के द्वारा वश में करके ही , वास्तविक आनंद की प्राप्ति संभव है । यदि मन असावधान हो गया और प्रभु के स्मरण में प्रवृत्त नहीं हुआ , तो यम के दरबार में उनको भयानक कष्ट भोगना पड़ेगा । इसलिए मानव के लिए , मन की चंचल मृग को कठिन साधना की कामना से संभालना आवश्यक है ।
तो चलिए आज का टॉपिक यहीं समाप्त होता है ।
प्रोफेसर अपना लेक्चर खत्म कर स्माइल करते हुए बोले - अटेनशस प्लीज ! मेरे पास आप लोगों के लिए एक गुडन्यूज है ।क्या आप लोग जानना चाहेंगे क्या है वह गुड न्यूज़ ! सारे लड़के लड़कियां एक्साइटमेंट के साथ हां ! बिल्कुल प्रोफेसर ।
क्रमश: ....