सुविचार....
वह जीवन ही क्या जो जीवनदाता के लिए पुकार न करे।
जिस व्यक्ति में थोड़ा-बहुत भी संयम है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह धारणा-ध्यान के मार्ग में जल्दी आगे बढ़ जायेगा।
हृदयमें भगवान् के प्रति सच्चा प्रेम हो कि भगवान् हमारे हैं और हम भगवान् के हैं ।
संसार हमारा नहीं है और हम संसार के नहीं हैं ।
संसार की सेवा कर देनी है; क्योंकि संसार की सेवा के लिये ही यहाँ आना हुआ है । संसार से लेनेके लिये नहीं आये हैं हम ।
संसार ईश्वर की पाठशाला है।
यहाँ ईश्वर प्राप्ति का सुख, ईश्वर प्राप्ति का सामर्थ्य और ईश्वरीय ज्ञान पाना है।
जो स्वार्थरहित होकर संसार की सेवा करता है, उसकी माँग सबको होती है।
जो संसार में केवल सुख-सुविधा का भोग करता है, वह अंदर से खोखला हो जाता है।