सफर के वक़्त सामान कम करता चला गया ,
वज़न ढोने से और थकान से बचता चला गया ,
ज़िंदगी में अपना कौन है ये तो पता चले "रंजन",
इसीलिए तो दोस्तों का सामान लौटता चला गया।
18 अक्टूबर 2021
सफर के वक़्त सामान कम करता चला गया ,
वज़न ढोने से और थकान से बचता चला गया ,
ज़िंदगी में अपना कौन है ये तो पता चले "रंजन",
इसीलिए तो दोस्तों का सामान लौटता चला गया।
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मैं एक कवि हूँ. मैं हिंदी कविता, ग़ज़ल एवंग शायरी रचना करता हूँ. बंगाली में सिर्फ गाना लिखता हूँ. मैंने मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़लों का इंग्लिश में अनुवाद किया है. मेरा दो वेबसाईट्स है.
https://ghazalsofghalib.com
https://sahityasangeet.com
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