वो ग़म की खलिश फिर से उभर आये तो अच्छा,
गर उनकी दुआ में तासीर उतर आये तो अच्छा !
दुनिया की निगाहों में ये नंग-ए-वजूद ही था,
तगाफुल को दुरुस्त वो कर जाये तो अच्छा !
वैसे जो ज़राहत है,है उनका दिया हुआ,
कोई ग़ैर कशमकश में घिर जाये तो अच्छा !
इस सीन:-ए-बिस्मिल में ज़ख्मों की जगह है,
मरहबा कहीं ना आकर वो कर जाये तो अच्छा !
बर्क-ए-खिरमन का ज़िक़र जो ये आलम किया करे,
महरम खुदा के सर पे धर जाये तो अच्छा !
अंदाज़-ए-असर कुछ भी नाल:-ए-दिल का नहीं है,
'रंजन' सर-ए-पुरशोर गुज़र जाये तो अच्छा !
https://ghazalsofghalib.com
https://sahityasangeet.com
https://soulintrospection.com