ये माना मेरी जां मोहब्बत नहीं है ,
नज़रों से ना में मुरव्वत नहीं है।।
जाना है तुम क्या उठाओगे खंजर ,
ऐसा कोई तुमको सोहबत नहीं है।।
महल में हो बैठे मेहंदी लगाकर,
अदम के लिए वो ग़ुरबत नहीं है।।
शनावर को डर क्या दरिया में फनां का ,
मुझ पे क्या तुमको अक़ीदत नहीं है।।
खूंआशाम होकर तैयार हो बैठे ,
"रंजन" का लेकिन तुर्बत नहीं है।।
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