मंजिल की तलाश में हर मुकाम को छोड़ता गया ,
"रंजन" को फिर मंजिल ने कहीं का ना छोड़ा हैफ़।।
10 मई 2021
मंजिल की तलाश में हर मुकाम को छोड़ता गया ,
"रंजन" को फिर मंजिल ने कहीं का ना छोड़ा हैफ़।।
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मैं एक कवि हूँ. मैं हिंदी कविता, ग़ज़ल एवंग शायरी रचना करता हूँ. बंगाली में सिर्फ गाना लिखता हूँ. मैंने मिर्ज़ा ग़ालिब के ग़ज़लों का इंग्लिश में अनुवाद किया है. मेरा दो वेबसाईट्स है.
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