विवेक
अग्नि चाहे दीपक की हो, चिराग की हो अथवा मोमबत्ती की लौ से हो, इसके दो ही कार्य है जलना और प्रकाश करना। यह हमारे विवेक के ऊपर निर्भर करता है कि हम इसका कहाँ उपयोग करें।
यही लौ मनुष्य के शरीर को शांत भी कर देती है, यही लौ अन्धकार को दूर कर सम्पूर्ण जगत को प्रकाशमय कर देती है। चिन्तन की बात यह है कि उपयोग करने के ऊपर निर्भर है वो उसी वस्तु से पुण्यार्जन कर सकता है तो थोड़ी चुक होने पर पापार्जन भी कर सकता है।
संसार में किसी भी वस्तु को, व्यक्ति को, स्थिति को कोसने की आवश्यकता नही है। जरुरत है उसका गुण, स्वभाव और प्रकृति समझकर समाज के हित में उपयोग करने की। दुनिया बड़ी खूबसूरत है इसे अपने विवेक, चिन्तन और शुभ आचरण से और अधिक सुन्दर बनाया जाए, यही सच्चा यज्ञ होगा।