एक ही फर्क है जो इंसान और पशु में अंतर पैदा करता है वो है विवेक। देखा जाये तो विवेक ही व्यक्ति को पशु बनने से रोकता है। विवेकवान व्यक्ति ही जीवन की प्रत्येक परिस्थिति, वस्तु, व्यक्ति, अवस्था इन सबको अपने अनुकूल कर सकता है।
जिस प्रकार बाढ़ जब आती है तो वह सब कुछ बहा ले जाती है। लेकिन एक कुशल तैराक अपनी तैरने की कला से बाढ़ को भी मात देकर स्वयं तो बचता ही है अपितु कई औरों के जीवन को भी बचाने में सहायक होता है।
तुम संसार की भीड़ का हिस्सा मत बनो। परिस्थिति और अभावों का रोना तो सब रो रहे हैं। तुम कुछ अलग करो, अच्छा करो, प्रसन्न होकर करो। विवेक इसीलिए तो है तुम गिरने से बच सको। ये जरूर ध्यान रखना विवेकयुक्त होकर काम करते हो तभी तक तुम इंसान हो।