व्यक्ति चाहे "सात्विक" हो, "राजसिक" हो या "तमोगुणी",?
आजकल हमारे दैनिक जीवन में बहोत सारे बदलाव हो रहे है, इस तनावपूर्ण जीवन में, मानसिक "स्थिरता", आध्यात्मिक "आनंद"दिन-ब-दिन गायब हो जाता है, हम सभी लोग सुख चाहते हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते कि,? वास्तविक सुख कहाँ है,? "नामस्मरण" ही मनुष्य की श्वास है, यह आध्यात्मिक श्वास हमें उस "ईश्वर-रूपी" आनंद से मिला सकती है, जिसमें खुद ही "आत्मविश्वास" नहीं है, उसमें अन्य चीजों के प्रति विश्वास कैसे उत्पन्न हो, सकता है,? स्पष्ट है कि, जो व्यक्ति स्वयं अपने ऊपर "विश्वास" नही कर सकता, वह किसी दूसरे पर विश्वास कैसे कर सकता है, अतः सबसे पहले खुद अपनी क्षमता, शक्ति, बल, बुद्धि, व विवेक पर विश्वास जागृत करें, आत्मविश्वास आते ही समस्त कार्य स्वतः ही सुलभ एवं संभव प्रतीत होने लगेंगे, तथा सिद्ध भी होने लगेंगे, सफलता की तरफ आपका प्रथम चरण "आत्मविश्वास" ही है, निरंतर इसकी पुष्टता एवं विकास हेतु प्रयास करें, जिंदगी में जो करना है, समय पर कर लेना चाहिए, क्योंकि जिंदगी, "मौके" कम, अफसोस 'ज्यादा देती है..!! जिस शरीर के साथ हम पैदा हुए, उसके लिए हम जिम्मेवार नहीं,?परंतु,! जिस चरित्र,व्यक्तित्व और किरदार के साथ हम विदा होंंगे, उसके लिए हम खुद जिम्मेवार होंगे..!!