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आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022

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स्थान : नदी का किनारा।
समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है।
कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूबों का परिणाम है। इसीलिए जन्म लिया था।यही मोक्षपद है। यह निर्वाण है। माया-बंधनों से मुक्त रहकर आत्मा को उच्चतम पद पर ले जाना चाहता था।यह वही महान पद है। यही मेरी सुकीर्तिरूपी धर्मशाला है, यही मेरा आदर्श कृष्ण मंदिर है ! इतने दिनों के नियम और संयम, सत्संग और भक्ति, दान और व्रत ने अंत में मुझे वहां पहुंचाया जहां कदाचित् भ्रष्टाचार और कुविचार, पाप और कुकर्म ने भी न पहुंचाया होता। मैंने जीवन यात्रा का कठिनतम मार्ग लिया, पर हिंसक जीव-जंतुओं से बचने का, अथाह नदियों को पार करने का, दुर्गम घाटियों से उतरने का कोई साधन अपने साथ न लिया। मैं स्त्रियों से रहता था।, इन्हें जीवन का कांटा समझता था।, इनके बनाव-श्रृंगार को देखकर मुझे घृणा होती थी। पर आज वह स्त्री जो मेरे भाई की प्रेमिका है, जो मेरी माता के तुल्य है, प्रेम में इतनी शक्ति है, मैं यह न जानता था। ! हाय, यह आग अब बुझती नहीं दिखायी देती। यह ज्वाला मुझे भस्म करके ही शांत होगी। यही उत्तम है। अब इस जीवन का अंत होना ही अच्छा है। इस आत्मपतन के बाद अब जीना धिक्कार है। जीने से यह ताप और ज्वाला दिन-दिन प्रचंड होगी। घुल-घुलकर, कुढ़-कुढ़कर मरने से, घर में बैर का बीज बोने से, जो अपने पूज्य हैं उनसे वैमनस्य करने से यह कहीं अच्छा है कि इन विपत्तियों के मूल ही का नाश कर दूं। मैंने सब तरह परीक्षा करके देख लिया। राजेश्वरी को किसी तरह नहीं भूल सकता, किसी तरह ध्यान से नहीं उतार सकता।

चेतनदास का प्रवेश।
कंचन : स्वामी जी को दंडवत् करता हूँ।
चेतनदास : बाबा, सदा सुखी रहो, इधर कई दिनों से तुमको नहीं देखा । मुख मलिन है, अस्वस्थ तो नहीं थे ?
कंचन : नहीं महाराज, आपके आशीर्वाद से कुशल से हूँ। पर कुछ ऐसे झंझटों में पड़ा रहा कि आपके दर्शन न कर सका । बड़ा सौभाग्य था कि आज प्रात: काल आपके दर्शन हो गए। आप तीर्थयात्रा पर कब जाने का विचार कर रहे हैं ?
चेतनदास : बाबा, अब तक तो चला गया होता, पर भगतों से पिंड नहीं छूटता। विशेषत: मुझे तुम्हारे कल्याण के लिए तुमसे कुछ कहना था। और बिना कहे मैं न जा सकता था।यहां इसी उद्देश्य से आया हूँ। तुम्हारे उसपर एक घोर संकट आने वाला है । तुम्हारा भाई सबलसिंह तुम्हें वध कराने की चेष्टा कर रहा है। घातक शीघ्र ही तुम्हारे उसपर आघात करेगी। सचेत हो जाओ।
कंचन : महाराज, मुझे अपने भाई से ऐसी आशंका नहीं है।
चेतनदास : यह तुम्हारा भ्रम है। प्रेम र्ईर्ष्या में मनुष्य अस्थिरचित्त, उन्मत्त हो जाता है।
कंचन : यदि ऐसा ही हो तो मैं क्या कर सकता हूँ ? मेरी आत्मा तो स्वयं अपने पाप के बोझ से दबी हुई है।
चेतनदास : यह क्षत्रियों की बातें नहीं हैं। भूमि, धन और नारी के लिए संग्राम करना क्षत्रियों का धर्म है। उन वस्तुओं पर उसी का वास्तविक अधिकार है जो अपने बाहुबल से उन्हें छीन सके इस संग्राम में दया और धर्म, विवेक और विचार, मान और प्रतिष्ठा, सभी कायरता के पर्याय हैं। यही उपदेश कृष्ण भगवान ने अर्जुन को दिया था।, और वही उपदेश मैं तुम्हें दे रहा हूँ। तुम मेरे भक्त हो इसलिए यह चेतावनी देना मेरा कर्तव्य था।योद्वाओं की भांति क्षेत्र में निकलो और अपने शत्रु के मस्तक को पैरों से कुचल डालो, उसका गेंद बनाकर खेलो अथवा अपनी तलवार की नोक पर उछालो।यही वीरों का धर्म है। जो प्राणी क्षत्रिय वंश में जन्म लेकर संग्राम से मुह मोड़ता है, वह केवल कापुरूष ही नहीं, पापी है, विधर्मी है, दुरात्मा है। कर्मक्षेत्र में कोई किसी का पुत्र नहीं, भाई नहीं, मित्र नहीं, सब एक दूसरे के शत्रु हैं। यह समस्त संसार कुछ नहीं, केवल एक वृहत्, विराट् शत्रुता है। दर्शनकारों और धर्माचायोऊ ने संसार को प्रेममय कहा है। उनके कथनानुसार ईश्वर स्वयं प्रेम है। यह भ्रांति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है जिसने संसार को वेष्ठित कर रखा है। भूल जाओ कि तुम किसी के भाई हो, जो तुम्हारे उसपर आघात करे उसका प्रतिघात करो, जो तुम्हारी ओर वक्र नेत्रों से ताके उसकी आंखें निकाल लो। राजेश्वरी तुम्हारी है, प्रेम के नाते उस पर तुम्हारा ही अधिकार है। अगर तुम अपने कर्तव्य-पथ से हटकर उसे उस पुरूष के हाथों में छोड़ दोगे जिससे उसे पहले चाहे प्रेम रहा हो, पर अब वह उससे घृणा करती है, तो तुम न्याय, नीति और धर्म के घातक सिद्व होगे और जन्म-जन्मान्तरों तक इसका दंड भोगते रहोगे
चेतनदास का प्रस्थान
कंचन : (मन में) मन, अब क्या कहते हो ? क्षत्रिय धर्म का पालन करके भाई से लड़ोगे, उसके प्राणों पर आघात करोगे या क्षत्रिय धर्म को भंग करके आत्महत्या करोगे ? जी तो मरने को नहीं चाहता। अभी तक भक्ति और धर्म के जंजाल में पड़ा रहा, जीवन का कुछ सुख नहीं देखा । अब जब उसकी आशा हुई तो यह कठिन समस्या सामने आ खड़ी हुई हो क्षत्रियधर्म के विरूद्व, पर भाई से मैं किसी भांति विग्रह नहीं कर सकता। उन्होंने सदैव मुझसे पुत्रवत् प्रेम किया है। याद नहीं आता कि कोई अमृदु शब्द उनके मुंह से सुना हो । वह योग्य हैं, विद्वान् हैं, कुशल हैं। मेरे हाथ उन पर नहीं उठ सकते। अवसर न मिलने की बात नहीं है। भैया का शत्रु मैं हो ही नहीं सकता। क्षत्रियों के ऐसे धर्म सिद्वांत न होते तो जरा-जरा-सी बात पर खून की नदियां क्योंकर बहतीं और भारत क्यों हाथ से जाता ? नहीं, कदापि नहीं, मेरे हाथ उन पर नहीं उठ सकते। साधुगण झूठ नहीं बोलते, पर यह महात्माजी उन पर भी मिथ्या दोषारोपण कर गए। मुझे विश्वास नहीं आता कि वह मुझ पर इतने निर्दय हो जायेंगी। उनके दया और शील का पारावार नहीं वह मेरी प्राणहत्या का संकेत नहीं दे सकते। एक नहीं, हजार राजेश्वरियां हों, पर भैया मेरे शत्रु नहीं हो सकते। यह सब मिथ्या है। मेरे हाथ उन पर नहीं उठ सकते। हाय, अभी एक क्षण में यह घटना सारे नगर में फैल जाएगी । लोग समझेंगे, पांव फिसल गया होगा। राजेश्वरी क्या समझेगी ? उसे मुझसे प्रेम है, अवश्य शोक करेगी, रोयेगी और अब से कहीं ज्यादा प्रेम करने लगेगी। और भैया ? हाय, यही तो मुसीबत है। अब मैं उन्हें मुंह नहीं दिखा सकता। मैं उनका अपराधी हूं। मैंने धर्म-हत्या की है। अगर वह मुझे जीता चुनवा दें तो भी मुझे आह भरने का अधिकार नहीं है। मेरे लिए अब यही एक मार्ग रह गया है। मेरे बलिदान से ही अब शांति होगी । पर भैया पर मेरे हाथ न उठेंगी। पानी गहरा है। भगवान्, मैंने पाप किये हैं, तुम्हें मुंह दिखाने योग्य नहीं हूँ। अपनी अपार दया की छांह में मुझे भी शरण देना। राजेश्वरी, अब तुझे कैसे देखूंगा?
पीलपाये पर खड़ा होकर अथाह जल में कूद पड़ता है। हलधर का तलवार और पिस्तौल लिये आना।
हलधर : बड़े मौके से आया। मैंने समझा था। देर हो गयी। पाखंडी कुकर्मी कहीं का। रोज गंगा नहाने आता है, पूजा करता है, तिलक लगाता है, और कर्म इतने नीच। ऐसे मौके से मिले हो कि एक ही बार में काम तमाम कर दूंगा। और परायी स्त्रियों पर निगाह डालो ! (पीलपाये की आड़ में छिपकर सुनता है) पापी भगवान् से दया की याचना कर रहा है। यह नहीं जानता है कि एक क्षण में नर्क के द्वार पर खड़ा होगा। राजेश्वरी, अब तुम्हें कैसे देखूंगा ? अभी प्रेत हुए जाते हो फिर उसे जी भरकर देखना। (पिस्तौल का निशाना लगाता है।) अरे ! यह तो आप-ही-आप पानी में कूद पड़ा, क्या प्राण देना चाहता है ? (पिस्तौल किनारे की ओर फेंककर पानी में कूद पड़ता है और कंचनसिंह को गोद में लिए एक क्षण में बाहर आता है। मन में) अभी पानी पेट में बहुत कम गया है। इसे कैसे होश में लाऊँ ? है तो यह अपना बैरी, पर जब आप ही मरने पर उतारू है तो मैं इस पर क्या हाथ उठाऊँ। मुझे तो इस पर दया आती है।
कंचनसिंह को लेटाकर उसकी पीठ में घुटने लगाकर उसकी बांहों को हिलाता है। चेतनदास का प्रवेश।
चेतनदास : (आश्चर्य से) यह क्या दुर्घटना हो गयी ? क्या तूने इनको पानी में डूबा दिया ?
हलधर : नहीं महाराज, यह तो आप नदी में कूद पड़े । मैं तो बाहर निकाल लाया हूँ ?
चेतनदास : लेकिन तू इन्हें वध करने का इरादा करके आया था।मूर्ख, मैंने तुझे पहले ही जता दिया था। कि तेरा शत्रु सबलसिंह है, कंचनसिंह नहीं पर तूने मेरी बात का विश्वास न किया। उस धूर्त सबल के बहकाने में आ गया। अब फिर कहता हूँ कि तेरा शत्रु वही है, उसी ने तेरा सर्वनाश किया है, वही राजेश्वरी के साथ विलास करता है।
हलधर : मैंने इन्हें राजेश्वरी का नाम लेते अपने कानों से सुना है।
चेतनदास : हो सकता है कि राजेश्वरी जैसी सुंदरी को देखकर इसका चित्त भी चंचल हो गया हो, सबलसिंह ने संदेहवश इसके प्राण हरण की चेष्टा की हो, बस यही बात है।
हलधर : स्वामी जी क्षमा कीजिएगा, मैं सबलसिंह की बात में आ गया। अब मुझे मालूम हो गया कि वही मेरा बैरी है। र्इश्वर ने चाहा तो वह भी बहुत दिन तक अपने पाप का सुख न भोगने पायेंगा।
चेतनदास : (मन में) अब कहां जाता है ? आज पुलिस वाले भी घर की तलाशी हुई। अगर उनसे बच गया तो यह तो तलवार निकाले बैठा ही है। ईश्वर की इच्छा हुई तो अब शीघ्र ही मनोरथ पूरे होंगे। ज्ञानी मेरी होगी और मैं इस विपुल सम्पत्ति का स्वामी हो जाऊँगा। कोई व्यवसाय, कोई विद्या, मुझे इतनी जल्द इतना सम्पत्तिशाली न बना सकती थी।
प्रस्थान।
कंचन : (होश में आकर) नहीं, तुम्हारा शत्रु मैं हूँ। जो कुछ किया है, मैंने किया है । भैया निर्दोष हैं, तुम्हारा अपराधी मैं हूँ। मेरे जीवन का अंत हो, यही मेरे पापों का दंड है। मैं तो स्वयं अपने को इस पाप-जाल से मुक्त करना चाहता था।तुमने क्यों मुझे बचा लिया ? (आश्चर्य से) अरे, यह तो तुम हो, हलधर ?
हलधर : (मन में) कैसा बेछल-कपट का आदमी है। (प्रकट) आप आराम से लेटे रहें, अभी उठिए न।
कंचन : नहीं, अब नहीं लेटा जाता । (मन में) समझ में आ गया, राजेश्वरी इसी की स्त्री है। इसीलिए भैया ने वह सारी माया रची थी। (प्रकट) मुझे उठाकर बैठा दो। वचन दो कि भैया का कोई अहित न करोगे।
हलधर : ठाकुर, मैं यह वचन नहीं दे सकता।
कंचन : किसी निर्दोष की जान लोगे ? तुम्हारा घातक मैं हूँ। मैंने तुम्हें चुपके से जेल भिजवाया और राजेश्वरी को कुटनियों द्वारा यहां बुलाया।
तीन डाकू लाठियां लिये आते हैं।
एक : क्यों गुरू, पड़ा हाथ भरपूर ?
दूसरा : यह तो खासा टैयां सा बैठा हुआ है। लाओ मैं एक हाथ दिखाऊँ।
हलधर : खबरदार, हाथ न उठाना।
दूसरा : क्या कुछ हत्थे चढ़ गया क्या ?
हलधर : हां, असर्फियों की थैली है। मुंह धो रखना ।
तीसरा : यह बहुत कड़ा ब्याज लेता है। सब रूपये इसकी तोंद में से निकाल लो।
हलधर : जबान संभालकर बात करो।
पहला : अच्छा, इसे ले चलो, दो-चार दिन बर्तन मंजवायेंगे। आराम करते-करते मोटा हो गया है।
दूसरा : तुमने इसे क्यों छोड़ दिया ?
हलधर : इसने वचन दिया कि अब सूद न लूंगा।
पहला : क्यों बच्चा, गुरू को सीधा समझकर झांसा दे दिया ।
हलधर : बक-बक मत करो। इन्हें नाव पर बैठाकर डेरे पर लेते चलो।यह बेचारे सूद-ब्याज जो कुछ लेते हैं अपने भाई के हुकुम से लेते हैं। आज उसी की खबर लेने का विचार है।
सब कंचन को सहारा देकर नाव पर बैठा देते हैं और गाते हुए नाव चलाते हैं।
नारायण का नाम सदा मन के अंदर लाना चहिए !
मानुष तन है दुर्लभ जग में इसका फल पाना चहिए!
दुर्जन संग नरक का मारग उससे दूर जाना चहिए!
सत संगत में सदा बैठ के हरि के गुण गाना चहिए!
धरम कमाई करके अपने हाथों की खाना चहिए!
परनारी को अपनी माता के समान जाना चहिए!
झूठ-कपट की बात सदा कहने में शरमाना चहिए!
कथा। पुरान संत संगत में मन को बहलाना चहिए!
नारायण का नाम सदा मन के अंदर लाना चहिए! 

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रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
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पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

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तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

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छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

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संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

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आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

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नवाँ दृश्य

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स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

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दसवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

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संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

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दूसरा दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

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छठा दृश्य

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स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

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सातवाँ दृश्य

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स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

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आठवाँ दृश्य

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स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

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नवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

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संग्राम (नाटक) अंक-4

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पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

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दूसरा दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

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चौथा दृश्य

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स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

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सातवाँ दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

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संग्राम (नाटक) अंक-5

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पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

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चौथा दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

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