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तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022

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समय: आठ बजे दिन।
स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं।
कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर कैसे घटाई जाए। भाई साहब मुझसे नित्य ताकीद किया करते हैं कि सूद कम लिया करो। किसानों की ही सहायता के लिए उन्होंने मुझे इस कारोबार में लगाया। उनका मुख्य उद्देश्य यही है। पर तुम जानते हो धन के बिना धर्म नहीं होता। इलाके की आमदनी घर के जरूरी खर्च के लिए भी काफी नहीं होती। भाई साहब ने किफायत का पाठ नहीं पढ़ा। उनके हजारों रूपये साल तो केवल अधिकारियों के सत्कार की भेंट हो जाते हैं। घुड़दौड़ और पोलो और क्लब के लिए धन चाहिए । अगर उनके आसरे रहूँ तो सैकड़ों रूपये जो मैं स्वयं साधुजनों की अतिथि-सेवा में खर्च करता हूँ, कहां से आएं ?
मुनीम : वह बुद्विमान पुरूष हैं, पर न जाने यह फजूलखर्ची क्यों करते हैं?
कंचन : मुझे बड़ी लालसा है कि एक विशाल धर्मशाला बनवाऊँ। उसके लिए धन कहां से आएगा ? भाई साहब के आज्ञानुसार नाम-मात्र के लिए ब्याज लूं तो मेरी सब कामनाएं धरी ही रह जाएं। मैं अपने भोग-विलास के लिए धन नहीं बटोरना चाहता, केवल परोपकार के लिए चाहता हूँ। कितने दिनों से इरादा कर रहा हूँ कि एक सुंदर वाचनालय खोल दूं। पर पर्याप्त धन नहीं यूरोप में केवल एक दानवीर ने हजारों वाचनालय खोल दिए हैं। मेरा हौसला इतना तो नहीं पर कम-से-कम एक उत्तम वाचनालय खोलने की अवश्य इच्छा है। सूद न लूं तो मनोरथ पूरे होने के और क्या साधन हैं ? इसके अतिरिक्त यह भी तो देखना चाहिए कि मेरे कितने रूपये मारे जाते हैं? जब असामी के पास कुछ जायदाद ही न हो तो रूपये कहां से वसूल हों। यदि यह नियम कर लूं कि बिना अच्छी जमानत के किसी को रूपये ही न दूंगा तो गरीबों का काम कैसे चलेगा ? अगर गरीबों से व्यवहार न करूं तो अपना काम नहीं चलता। वह बेचारे रूपये चुका तो देते हैं। मोटे आदमियों से लेन-देन कीजिए तो अदालत गए बिना कौड़ी नहीं वसूल होती।
हलधर का प्रवेश।
कंचन : कहो हलधर, कैसे चले ?
हलधर : कुछ नहीं सरकार, सलाम करने चला आया।
कंचन : किसान लोग बिना किसी प्रयोजन के सलाम करने नहीं चलते। फारसी कहावत है: सलामे दोस्ताई बगैर नेस्तब
हलधर : आप तो जानते ही हैं फिर पूछते क्यों हैं ? कुछ रूपयों का काम था।
कंचन : तुम्हें किसी पंडित से साइत पूछकर चलना चाहिए था।यहां आजकल रूपयों का डौल नहीं क्या करोगे रूपये लेकर?
हलधर : काका की बरसी होने वाली है। और भी कई काम हैं।
कंचन : स्त्री के लिए गहने भी बनवाने होंगे ?
हलधर : (हंसकर) सरकार, आप तो मन की बात ताड़ लेते हैं।
कंचन : तुम लोगों के मन की बात जान लेना ऐसा कोई कठिन काम नहीं, केवल खेती अच्छी होनी चाहिए । यह फसल अच्छी है, तुम लोगों को रूपये की जरूरत होना स्वाभाविक है। किसान ने खेत में पौधे लहराते हुए देखे और उनके पेट में चूहे कूदने लगे नहीं तो ऋण लेकर बरसी करने या गहने बनवाने का क्या काम, इतना सब्र नहीं होता कि अनाज घर में आ जाए तो यह सब मनसूबे बांधें। मुझे रूपयों का सूद दोगे, लिखाई दोगे, नजराना दोगे, मुनीमजी की दस्तूरी दोगे, दस के आठ लेकर घर जाओगे, लेकिन यह नहीं होता कि महीने-दो-महीने रूक जाएं। तुम्हें तो इस घड़ी रूपये की धुन है, कितना ही समझाऊँ, ऊँच-नीच सुझाऊँ मगर कभी न मानोगे। रूपये न दूं तो मन में गालियां दोगे और किसी दूसरे महाजन की चिरौरी करोगी।
हलधर : नहीं सरकार, यह बात नहीं है, मुझे सचमुच ही बड़ी जरूरत है।
कंचन : हां-हां, तुम्हारी जरूरत में किसे संदेह है, जरूरत न होती तो यहां आते ही क्यों, लेकिन यह ऐसी जरूरत है जो टल सकती है, मैं इसे जरूरत नहीं कहता, इसका नाम ताव है, जो खेती का रंग देखकर सिर पर सवार हो गया है।
हलधर : आप मालिक हैं जो चाहे कहैं। रूपयों के बिना मेरा काम न चलेगा। बरसी में भोज-भात देना ही पड़ेगा, गहना-पाती बनवाए बिना बिरादरी में बदनामी होती है, नहीं तो क्या इतना मैं नहीं जानता कि करज लेने से भरम उठ जाता है। करज करेजे की चीर है। आप तो मेरी भलाई के लिए इतना समझा रहे हैं, पर मैं बड़ा संकट में हूँ।
कंचन : मेरी रोकड़ उससे भी ज्यादा संकट में है। तुम्हारे लिए बंकधर से रूपये निकालने पड़ेंगी। कोई और कहता तो मैं उसे सूखा जवाब देता, लेकिन तुम मेरे पुराने असामी हो, तुम्हारे बाप से भी मेरा व्यवहार था।, इसलिए तुम्हें निराश नहीं करना चाहता। मगर अभी से जताए देता हूँ कि जेठी में सब रूपया सूद समेत चुकाना पड़ेगा। कितने रूपये चाहते हो ?
हलधर : सरकार, दो सौ रूपये दिला दें।
कंचन : अच्छी बात है, मुनीमजी लिखा-पढ़ी करके रूपये दे दीजिए। मैं पूजा करने जाता हूँ। (जाता है)
मुनीम : तो तुम्हें दो सौ रूपये चाहिए न। पहिले पांच रूपये सैकड़े नजराना लगता था।अब दस रूपये सैकड़े हो गया है।
हलधर : जैसी मर्जी।
मुनीम : पहले दो रूपये सैकड़े लिखाई पड़ती थी, अब चार रूपये सैकड़े हो गई है।
हलधर : जैसा सरकार का हुकुम।
मुनीम : स्टाम्प के पांच रूपये लगेंगी।
हलधर : सही है।
मुनीम : चपरासियों का हक दो रूपये होगी।
हलधर : जो हुकुम।
मुनीम : मेरी दस्तूरी भी पांच रूपये होती है, लेकिन तुम गरी। आदमी हो, तुमसे चार रूपये ले लूंगा। जानते ही हो मुझे यहां से कोई तलब तो मिलती नहीं, बस इसी दस्तूरी पर भरोसा है।
हलधर : बड़ी दया है।
मुनीम : एक रूपया ठाकुर जी को चढ़ाना होगी।
हलधर : चढ़ा दीजिए। ठाकुर तो सभी के हैं।
मुनीम : और एक रूपया ठकुराइन के पान का खर्च।
हलधर : ले लीजिए। सुना है गरीबों पर बड़ी दया करती हैं।
मुनीम : कुछ पढ़े हो ?
हलधर : नहीं महाराज, करिया अच्छर भैंस बराबर है।
मुनीम : तो इस स्टाम्प पर बाएं अंगूठे का निशान करो।
सादे स्टाम्प पर निशान बनवाता है।
मुनीम : (संदूक से रूपये निकालकर) गिन लो।
हलधर : ठीक ही होगी।
मुनीम : चौखट पर जाकर तीन बार सलाम करो और घर की राह लो।
हलधर रूपये अंगोछे में बांधता हुआ जाता है। कंचनसिंह का प्रवेश।
मुनीम : जरा भी कान?पूंछ नहीं हिलाई।
कंचन : इन मूखोऊ पर ताव सवार होता है तो इन्हें कुछ नहीं सूझता, आंखों पर पर्दा पड़ जाता है। इन पर दया आती है, पर करूं क्या? धन के बिना धर्म भी तो नहीं होता। 

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रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
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पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

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दूसरा दृश्य

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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

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तीसरा दृश्य

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समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

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चौथा दृश्य

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स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

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पाँचवाँ दृश्य

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प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

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छठा दृश्य दृश्य

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स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

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संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

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दूसरा दृश्य

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समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

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चौथा दृश्य

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स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

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छठा दृश्य

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सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

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सातवाँ दृश्य

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समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

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आठवाँ दृश्य

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समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

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नवाँ दृश्य

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स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

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दसवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

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संग्राम (नाटक) अंक-3

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पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

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दूसरा दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

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छठा दृश्य

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स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

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सातवाँ दृश्य

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स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

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आठवाँ दृश्य

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स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

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नवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

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संग्राम (नाटक) अंक-4

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पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

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दूसरा दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

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चौथा दृश्य

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स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

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सातवाँ दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

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संग्राम (नाटक) अंक-5

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पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

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दूसरा दृश्य

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स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

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चौथा दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

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छठा दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

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