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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी।
समय: संध्या।
चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस चाल से यहां उसका खूब अपमान होगी। पर वह अनुमान ठीक न निकला। दो घंटे पहले शहर में सबल की जितनी प्रतिष्ठा थी, अब उससे सतगुनी है। अधिकारियों की दृष्टि में चाहे वह फिर गया हो, पर नगरवासियों की दृष्टि में अब वह देव-तुल्य है। यह काम हलधर ही पूरा करेगी। मुझे उसके पीछे का रास्ता साफ करना चाहिए ।
ज्ञानी का प्रवेश।
ज्ञानी : महाराज, आप उस समय इतनी जल्दी चले आए कि मुझे आपसे कुछ कहने का अवसर ही न मिला। आप यदि सहाय न होते तो आज मैं कहीं की न रहती। पुलिस वाले किसी दूसरे व्यक्ति की जमानत न लेते। आपके योगबल ने उन्हें परास्त कर दिया ।
चेतनदास : माई, सब ईश्वर की महिमा है। मैं तो केवल उसका तुच्छ सेवक हूँ।
ज्ञानी : आपके सम्मुख इस समय मैं बहुत निर्लज्ज बनकर आई हूँ।
मैं अपराधिनी हूँ, मेरा अपराध क्षमा कीजिए। आपने मेरे
पतिदेव के विषय में जो बातें कहीं थीं वह एक-एक अक्षर सच निकलीं। मैंने आप पर अविश्वास किया। मुझसे यह घोर अपराध हुआ। मैं अपने पति को देव-तुल्य समझती थी।
मुझे अनुमान हुआ कि आपको किसी ने भ्रम में डाल दिया है। मैं नहीं जानती थी कि आप अंतर्यामी हैं। मेरा अपराध क्षमा कीजिए।
चेतनदास : तुझे मालूम नहीं है, आज तेरे पति ने कैसा पैशाचिक काम कर डाला है। मुझे इसके पहले कहने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ।
ज्ञानी : नहीं महाराज, मुझे मालूम है। उन्होंने स्वयं मुझसे सारा वृत्तांत कह सुनाया। भगवान् यदि मैंने पहले ही आपकी चेतावनी पर ध्यान दिया होता तो आज इस हत्याकांड की नौबत न आती। यह सब मेरी अश्रद्वा का दुष्परिणाम है। मैंने आप जैसे महात्मा पुरूष का अविश्वास किया, उसी का यह दंड है। अब मेरा उद्वार आपके सिवा और कौन कर सकता है। आपकी दासी हूँ, आपकी चेरी हूँ। मेरे अवगुणों को न देखिए। अपनी विशाल दया से मेरा बेड़ा पार लगाइए।
चेतनदास : अब मेरे वश की बात नहीं मैंने तेरे कल्याण के लिए, तेरी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए बड़े-बड़े अनुष्ठान किए थे।मुझे निश्चय था। कि तेरा मनोरथ सिद्व होगी। पर इस पापाभिनय ने मेरे समस्त अनुष्ठानों को विफल कर दिया । मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह कुकर्म तेरे कुल का सर्वनाश कर देगी।
ज्ञानी : भगवान्, मुझे भी यही शंका हो रही है। मुझे भय है कि मेरे पतिदेव स्वयं पश्चात्ताप के आवेग में अपना प्राणांत न कर देंब उन्हें इस समय अपनी दुष्कृति पर अत्यंत ग्लानि हो रही है। आज वह बैठे-बैठे देर तक रोते रहै। इस दु:ख और निराशा की दशा में उन्होंने प्राणों का अंत कर दिया तो कुल का सर्वनाश हो जाएगी। इस सर्वनाश से मेरी रक्षा आपके सिवा और कौन कर सकता है ? आप जैसा दयालु स्वामी पाकर अब किसकी शरण जाऊँ ? ऐसा कोई यत्न कीजिए कि उनका चित्त शांत हो जाए। मैं अपने देवर का जितना आदर और प्रेम करती थी वह मेरा ह्रदय ही जानता है। मेरे पति भी अपने भाई को पुत्र के समान समझते थे।वैमनस्य का लेश भी न था।पर अब तो जो कुछ होना था।, हो चुका। उसका शोक जीवन-पर्यंत रहेगी। अब कुल की रक्षा कीजिए। मेरी आपसे यही याचना है।
चेतनदास : पाप का दण्ड ईश्वरीय नियम है। उसे कौन भंग कर सकता है?
ज्ञानी : योगीजन चाहें तो ईश्वरीय नियमों को भी झुका सकते हैं।
चेतनदास : इसका तुझे विश्वास है ?
ज्ञानी : हां, महाराज ! मुझे पूरा विश्वास है।
चेतनदास : श्रद्वा है ?
ज्ञानी : हां, महाराज, पूरी श्रद्वा है।
चेतनदास : भक्त को अपने गुरू के सामने अपना तन-मन-धन सभी समर्पण करना पड़ता है। वही अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष के प्राप्त करने का एकमात्र साधन है। भक्त गुरू की बातों पर, उपदेशों पर, व्यवहारों पर कोई शंका नहीं करता। वह अपने गुरू को ईश्वर-तुल्य समझता है। जैसे कोई रोगी अपने को वैद्य के हाथों में छोड़ देता है, उसी भांति भक्त भी अपने शरीर को, अपनी बुद्वि को और आत्मा को गुरू के हाथों में छोड़ देता है। तू अपना कल्याण चाहती है तो तुझे भक्तों के धर्म का पालन करना पड़ेगा।
ज्ञानी : महाराज, मैं अपना तन-मन-धन सब आपके चरणों पर समर्पित करती हूँ।
चेतनदास : शिष्य का अपने गुरू के साथ आत्मिक संबंध होता है। उसके और सभी संबंध पार्थिव होते हैं। आत्मिक संबंध के सामने पार्थिव संबंधों का कुछ भी मूल्य नहीं होता। मोक्ष के सामने सांसारिक सुखों का कुछ भी मूल्य नहीं है। मोक्षपद-प्राप्ति ही मानव-जीवन का उद्देश्य है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्राणी को ममत्व का त्याग करना चाहिए । पिता-माता, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, शत्रु-मित्र यह सभी संबंध पार्थिव हैं। यह सब मोक्षमार्ग की बाधाएं हैं। इनसे निवृत्त होकर ही मोक्ष-पद प्राप्त हो सकता है। केवल गुरू की कृपा-दृष्टि ही उस महान् पद पर पहुंचा सकती है। तू अभी तक भ्रांति में पड़ी हुई है। तू अपने पति और पुत्र, धन और संपत्ति को ही जीवन सर्वस्व समझ रही है। यही भ्रांति तेरे दु: ख और शोक का मूल कारण है। जिस दिन तुझे इस भ्रांति से निवृत्ति होगी उसी दिन तुझे मोक्ष मार्ग दिखाई देने लगेगी। तब इन सासांरिक सुखों से तेरा मन आप-ही-आप हट जाएगा। तुझे इनकी असारता प्रकट होने लगेगी। मेरा पहला उपदेश यह है कि गुरू ही तेरा सर्वस्व है। मैं ही तेरा सब कुछ हूँ।
ज्ञानी : महाराज, आपकी अमृतवाणी से मेरे चित्त को बड़ी शांति मिल रही है।
चेतनदास : मैं तेरा सर्वस्व हूँ। मैं तेरी संपत्ति हूँ, तेरी प्रतिष्ठा हूँ, तेरा पति हूँ, तेरा पुत्र हूँ, तेरी माता हूँ, तेरा पिता हूँ, तेरा स्वामी हूँ, तेरा सेवक हूँ, तेरा दान हूँ, तेरा व्रत हूँ। हां, मैं तेरा स्वामी हूँ और तेरा ईश्वर हूँ। तू राधिका है, मैं तेरा कन्हैया हूँ,तू सती है, मैं तेरा शिव हूँ,तू पत्नी है, मैं तेरा पति हूँ,तू प्रकृति है, मैं तेरा पुरूष हूँ,तू जीव है, मैं आत्मा हूँ, तू स्वर है, मैं उसका लालित्य हूँ, तू पुष्प है, मैं उसकी सुगंध हूँ।
ज्ञानी : भगवन्, मैं आपके चरणों की रज हूँ। आपकी सुधा-वर्षा से मेरी आत्मा तृप्त हो गई।
चेतनदास : तेरा पति तेरा शत्रु है, जो तुझे अपने कुकृत्यों का भागी बनाकर तेरी आत्मा का सर्वनाश कर रहा है।
ज्ञानी : (मन में) वास्तव में उनके पीछे मेरी आत्मा कलुषित हो रही है। उनके लिए मैं अपनी मुक्ति क्यों बिगाडूं। अब उन्होंने अधर्म-पथ पर पग रखा है, मैं उनकी सहगामिनी क्यों बनूं ? (प्रकट) स्वामीजी, अब मैं आपकी शरण आई हूँ, मुझे उबारिए।
चेतनदास : प्रिये, हम और तुम एक हैं, कोई चिंता मत करो। ईश्वर ने तुम्हें मंझधार में डूबने से बचा लिया। वह देखो सामने ताक पर बोतल है। उसमें महाप्रसाद रखा हुआ है। उसे उतारकर अपने कोमल हाथों से मुझे पिलाओ और प्रसाद-स्वरूप स्वयं पान करो। तुम्हारा अंत: करण आलोकमय हो जाएगी। सांसारिकता की कालिमा एक क्षण में कट जाएगी और भक्ति का उज्ज्वल प्रकाश प्रस्फुटित हो जाएगा। यह वह सोमरस है जोर ऋषिगण पान करके योगबल प्राप्त किया करते थे।
ज्ञानी बोतल उतारकर चेतनदास के कमंडल में उंड़ेलती है, चेतनदास पी जाते हैं।
चेतनदास : यह प्रसाद तुम भी पान करो।
ज्ञानी : भगवन्, मुझे क्षमा कीजिए।
चेतनदास : प्रिये, यह तुम्हारी पहली परीक्षा है।
ज्ञानी : (कमंडल मुंह से लगाकर पीती है। तुरंत उसे अपने शरीर में एक विशेष स्फूर्ति का अनुभव होता है।) स्वामी, यह तो कोई अलौकिक वस्तु है।
चेतनदास : प्रिये, यह ऋषियोंका पेय पदार्थ है। इसे पीकर वह चिरकाल तक तरूण बने रहते थे।उनकी शक्तियां कभी क्षीण न होती थीं।थोड़ा-सा और दो। आज बहुत दिनों के बाद यह शुभअवसर प्राप्त हुआ है।
ज्ञानी बोतल उठाकर कमंडल में ड़ड़ेलती है। चेतनदास पी जाते हैं। ज्ञानी स्वयं थोड़ा-सा निकालकर पीती है।
चेतनदास : (ज्ञानी के हाथों को पकड़कर) प्रिये, तुम्हारे हाथ कितने कोमल हैं, ऐसा जान पड़ता है मानो फूलकी पंखड़ियां हैं। (ज्ञानी झिझककर हाथ खींच लेती है) प्रिये, झिझको नहीं, यह वासनाजनित प्रेम नहीं है। यह शुद्व, पवित्र प्रेम है। यह तुम्हारी दूसरी परीक्षा है।
ज्ञानी : मेरे ह्रदय में बड़े वेग से धड़कन हो रही है।
चेतनदास : यह धड़कन नहीं है, विमल प्रेम की तरंगें हैं जो वक्ष के किनारों से टकरा रही हैं। तुम्हारा शरीर फूल की भांति कोमल है। उस वेग को सहन नहीं कर सकता। इन हाथों के स्पर्श से मुझे वह आनंद मिल रहा है जिसमें चंद्र का निर्मल प्रकाश, पुष्पों की मनोहर सुगंध, समीर के शीतल मंद झोंके और जल-प्रवाह का मधुर गान सभी समाविष्ट हो गए हैं।
ज्ञानी : मुझे चक्कर-सा आ रहा है। जान पड़ता है लहरों में बही जाती हूँ।
चेतनदास : थोड़ा-सा सोमरस और निकालो।संजीवनी है।
ज्ञानी बोतल से कमंडल में उंड़ेलती है, चेतनदास पी जाता है, ज्ञानी भी दो-तीन घूंट पीती है।
चेतनदास : आज जीवन सफल हो गया। ऐसे सुख के एक क्षण पर समग्र जीवन भेंट कर सकता हूँ (ज्ञानी के गले में बांहें डालकर आलिंगन करना चाहता है, ज्ञानी झिझककर पीछे हट जाती है।) प्रिये, यह भक्ति मार्ग की तीसरी परीक्षा है !
ज्ञानी अलग खड़ी होकर रोती है।
चेतनदास : प्रिये!
ज्ञानी : (उच्च स्वर से) कोचवान, गाड़ी लाओ।
चेतनदास : इतनी अधीर क्यों हो रही हो ? क्या मोक्षपद के निकट पहुंचकर फिर उसी मायावी संसार में लिप्त होना चाहती हो ? यह तुम्हारे लिए कल्याणकारी न होगा।
ज्ञानी : मुझे मोक्षपद प्राप्त हो या न हो, यह ज्ञान अवश्य प्राप्त हो गया कि तुम धूर्त, कुटिल, भ्रष्ट, दुष्ट, पापी हो, तुम्हारे इस भेष का अपमान नहीं करना चाहती, पर यह समझ रखो कि तुम सरला स्त्रियों को इस भांति दगा देकर अपनी आत्मा को नर्क की ओर ले जा रहे हो, तुमने मेरे शरीर को अपने कलुषित हाथों से स्पर्श करके सदा के लिए विकृत कर दिया । तुम्हारे मनोविकारों के संपर्क से मेरी आत्मा सदा के लिए दूषित हो गई। तुमने मेरे व्रत की हत्या कर डाली। अब मैं अपने ही को अपना मुंह नहीं दिखा सकती। सतीत्व जैसी अमूल्य वस्तु खोकर मुझे ज्ञात हुआ कि मानव-चरित्र का कितना पतन हो सकता है। अगर तुम्हारे ह्रदय में मनुष्यत्व का कुछ भी अंश शेष है तो मैं उसी को संबोधित करके विनय करती हूँ कि अपनी आत्मा पर दया करो और इस दुष्टाचरण को त्याग कर सद्वृत्तियों का आवाफ्न करो।
कुटी से बाहर निकलकर गाड़ी में बैठ जाती है।
कोचवान : किधर से चलूं ?
ज्ञानी : सीधे घर चलो। 

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रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
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पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

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तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

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पाँचवाँ दृश्य

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प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

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छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

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संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

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छठा दृश्य

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सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

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सातवाँ दृश्य

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समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

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आठवाँ दृश्य

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समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

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नवाँ दृश्य

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स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

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दसवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

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संग्राम (नाटक) अंक-3

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पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

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दूसरा दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

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छठा दृश्य

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स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

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सातवाँ दृश्य

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स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

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आठवाँ दृश्य

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स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

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नवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

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संग्राम (नाटक) अंक-4

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पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

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दूसरा दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

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चौथा दृश्य

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स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

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सातवाँ दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

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संग्राम (नाटक) अंक-5

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पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

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दूसरा दृश्य

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स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

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चौथा दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

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