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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022

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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं।
सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदालतों का खर्च इतना बढ़ गया है कि कोई गरीब आदमी वहां न्याय के लिए जा ही नहीं सकता। जार-सी भी कोई बात कहनी हो तो स्टाम्प के बगैर काम नहीं चल सकता। उसका कितना सुडौल शरीर है, ऐसा जान पड़ता है कि एक-एक अंग सांचे में ढला है। रंग कितना प्यारा है, न इतना गोरा कि आंखों को बुरा लगे, न इतना सांवला होगा, मुझे इससे क्या मतलबब वह परायी स्त्री है, मुझे उसके रूप-लावण्य से क्या वास्ता। संसार में एक-से-एक सुंदर स्त्रियां हैं, कुछ यही एक थोड़ी है? ज्ञानी उससे किसी बात में कम नहीं, कितनी सरल ह्रदया, कितनी मधुर-भाषिणी रमणी है। अगर मेरा जरा-सा इशारा हो तो आग में कूद पड़े। मुझ पर उसकी कितनी भक्ति, कितना प्रेम है। कभी सिर में दर्द भी होता है तो बावली हो जाती है। अब उधर मन को जाने ही न दूंगा।
कुर्सी से उठकर आल्मारी से एक ग्रंथ निकालते हैं, उसके दो-चार पन्ने इधर-उधर से उलटकर पुस्तक को मेज पर रख देते हैं और फिर कुर्सी पर जा बैठते हैं। अचलसिंह हाथ में एक हवाई बंदूक लिए दौड़ा आता है।
अचल : दादाजी, शाम हो गई। आज घूमने न चलिएगा ?
सबल : नहीं बेटा ! आज तो जाने का जी नहीं चाहता। तुम गाड़ी जुतवा लो।यह बंदूक कहां पाई ?
अचल : इनाम में. मैं दौड़ने में सबसे अव्वल निकला। मेरे साथ कोई पच्चीस लड़के दौड़े थे।कोई कहता था।, मैं बाजी मारूंगा, कोई अपनी डींग मार रहा था।जब दौड़ हुई तो मैं सबसे आगे निकला, कोई मेरे गर्द को भी न पहुंचा, अपना-सा मुंह लेकर रह गए। इस बंदूक से चाहूँ तो चिड़िया मार लूं।
सबल : मगर चिड़ियों का शिकार न खेलना।
अचल : जी नहीं, यों ही बात कहता था। बेचारी चिड़ियों ने मेरा क्या बिगाड़ा है कि उनकी जान लेता गिरूं। मगर जो चिड़ियां
दूसरी चिड़ियों का शिकार करती हैं उनके मारने में तो कोई पाप नहीं है।
सबल : (असमंजस में पड़कर) मेरी समझ में तो तुम्हें शिकारी चिड़ियों को भी न मारना चाहिए । चिड़ियों में कर्म-अकर्म का ज्ञान नहीं होता। वह जो कुछ करती हैं केवल स्वभाव-वश करती हैं, इसलिए वह दण्ड की भागी नहीं हो सकती।
अचल : कुत्ता कोई चीज चुरा ले जाता है तो क्या जानता नहीं कि मैं बुरा कर रहा हूँ। चुपके-चुपके, पैर दबाकर इधर-उधर चौकन्नी आंखों से ताकता हुआ जाता है, और किसी आदमी की आहट पाते ही भाग खड़ा होता है। कौवे का भी यही हाल है। इससे तो मालूम होता है कि पशु-पक्षियों को भी भले-बुरे का ज्ञान होता है¼ तो फिर उनको दंड क्यों न दिया जाए ?
सबल : अगर ऐसा ही हो तो हमें उनको दंड देने का क्या अधिकार है? हालांकि इस विषय में हम कुछ नहीं कह सकते कि शिकारी चिड़ियों में वह ज्ञान होता है, जो कुत्ते या कौवे में है या नहीं
अचल : अगर हमें पशु-पक्षी, चोरों को दंड देने का अधिकार नहीं है तो मनुष्य में चोरों को क्यों ताड़ना दी जाती है ? वह जैसा करेंगे उसके फल आप पाएंगे, हम क्यों उन्हें दंड दें ?
सबल : (मन में) लड़का है तो नन्हा-सा बालक मगर तर्क खूब करता है। (प्रकट) बेटा ! इस विषय में हमारे प्राचीन ऋषियों ने बड़ी मार्मिक व्यवस्थाएं की हैं, अभी तुम न समझ सकोगी। जाओ सैर कर आओ, ओरवरकोट पहन लेना, नहीं तो सर्दी लग जाएगी।
अचल : मुझे वहां कब ले चलिएगा जहां आप कल भोजन करने गए थे? मैं भी राजेश्वरी के हाथ का बनाया हुआ खाना खाना चाहता हूँ। आप चुपके से चले गए, मुझे बुलाया तक नहीं, मेरा तो जी चाहता है कि नित्य गांव ही में रहता, खेतों में घूमा करता।
सबल : अच्छा, अब जब वहां जाऊँगा तो तुम्हें भी साथ ले लूंगा।
अचलसिंह चला जाता है।
सबल : (आप-ही-आप) लेख का दूसरा पाइंट (मुद्रा) क्या होगा? अदालतें सबलों के अन्याय की पोषक हैं। जहां रूपयों के द्वारा फरियाद की जाती हो, जहां वकीलों?बैरिस्टरों के मुंह से बात की जाती हो, वहां गरीबों की कहां पैठ ? यह अदालत नहीं, न्याय की बलिवेदी है। जिस किसी राज्य की अदालतों का यह हाल हो। जब वह थाली परस कर मेरे सामने लाई तो मुझे ऐसा मालूम होता था। जैसे कोई मेरे ह्रदय को खींच रहा हो, अगर उससे मेरा स्पर्श हो जाता तो शायद मैं मूर्च्र्छित हो जाता। किसी उर्दू कवि के शब्दों में यौवन फटा पड़ता था। कितना कोमल गात है, न जाने खेतों में कैसे इतनी मेहनत करती है। नहीं, यह बात नहीं खेतों में काम करने ही से उसका चम्पई रंग निखर कर कुंदन हो गया है। वायु और प्रकाश ने उसके सौंदर्य को चमका दिया है। सच कहा है हुस्न के लिए गहनों की आवश्यकता नहीं उसके शरीर पर कोई आभूषण न था।, किंतु सादगी आभूषणों से कहीं ज्यादा मनोहारिणी थी। गहने सौंदर्य की शोभा क्या बढ़ाएंगे, स्वयं अपनी शोभा बढ़ाते हैं। उस सादे व्यंजन में कितना स्वाद था ? रूप-लावण्य ने भोजन को भी स्वादिष्ट बना दिया था। मन फिर उधर गया, यह मुझे क्या हो गया है। यह मेरी युवावस्था नहीं है कि किसी सुंदरी को देखकर लट्टू हो जाऊँ, अपना प्रेम हथेली पर लिए प्रत्येक सुंदरी स्त्री की भेंट करता गिरूं। मेरी प्रौढ़ावस्था है, पैंतीसवें वर्ष में हूँ। एक लड़के का बाप हूँ जो छ: -सात वर्षों में जवान होगी। ईश्वर ने दिए होते तो चार-पांच संतानों का पिता हो सकता था।यह लोलुपता है, छिछोरापन है। इस अवस्था में, इतना विचारशील होकर भी मैं इतना मलिन-ह्रदय हो रहा हूँ। किशोरावस्था में तो मैं आत्मशुद्वि पर जान देता था।, फूंक-फूंककर कदम रखता था।, आदर्श जीवन व्यतीत करता था। और इस अवस्था में जब मुझे आत्मचिंतन में मग्न होना चाहिए, मेरे सिर पर यह भूत सवार हुआ है। क्या यह मुझसे उस समय के संयम का बदला लिया जा रहा है। अब मेरी परीक्षा की जा रही है ?
ज्ञानी का प्रवेश।
ज्ञानी : तुम्हारी ये सब किताबें कहीं छुपा दूं ? जब देखो तब एक-न -एक पोथा। खोले बैठे रहते हो, दर्शन तक नहीं होते।
सबल : तुम्हारा अपराधी मैं हूँ, जो दंड चाहे दो। यह बेचारी पुस्तकें बेकसूर हैं।
ज्ञानी : गुलबिया आज बगीचे की तरफ गई थी। कहती थी, आज वहां कोई महात्मा आए हैं। सैकड़ों आदमी उनके दर्शनों को जा रहे हैं। मेरी भी इच्छा हो रही है कि जाकर दर्शन कर आऊँ।
सबल : पहले मैं आकर जरा उनके रंग-ढ़ंग देख लूं तो फिर तुम जाना। गेरूए कपड़े पहनकर महात्मा कहलाने वाले बहुत हैं।
ज्ञानी : तुम तो आकर यही कह दोगे कि वह बना हुआ है, पाखण्डी है, धूर्त है, उसके पास न जाना। तुम्हें जाने क्यों महात्माओं से चिढ़ है।
सबल : इसीलिए चिढ़ है कि मुझे कोई सच्चा साधु नहीं दिखाई देता।
ज्ञानी : इनकी मैंने बड़ी प्रशंसा सुनी है। गुलाबी कहती थी कि उनका मुंह दीपक की तरह दमक रहा था।सैकड़ों आदमी घेरे हुए थे पर वह किसी से बात तक न करते थे।
सबल : इससे यह तो साबित नहीं होता कि वह कोई सिद्व पुरूष हैं। अशिष्टता महात्माओं का लक्षण नहीं है।
ज्ञानी : खोज में रहने वाले को कभी-कभी सिद्व पुरूष भी मिल जाते हैं। जिसमें श्रद्वा नहीं है उसे कभी किसी महात्मा से साक्षात् नहीं हो सकता। तुम्हें संतान की लालसा न हो पर मुझे तो है। दूध-पूत से किसी का मन भरते आज तक नहीं सुना।
सबल : अगर साधुओं के आशीर्वाद से संतान मिल सकती तो आज संसार में कोई निस्संतान प्राणी खोजने से भी न मिलता। तुम्हें भगवान् ने एक पुत्र दिया है। उनसे यही याचना करो कि उसे कुशल से रखें। हमें अपना जीवन अब सेवा और परोपकार की भेंट करना चाहिए ।
ज्ञानी : (चिढ़कर) तुम ऐसी निर्दयता से बातें करने लगते हो इसी से कभी इच्छा नहीं होती कि तुमसे अपने मन की बात कहूँ। लो, अपनी किताबें पढ़ो इनमें में तुम्हारी जान बसती है, जाती हूँ
सबल : बस रूठ गई।चित्रकारों ने क्रोध की बड़ी भयंकर कल्पना की है, पर मेरे अनुभव से यह सिद्व होता है कि सौंदर्य क्रोध ही का रूपांतर है। कितना अनर्थ है कि ऐसी मोहिनी मूर्ति को इतना विकराल स्वरूप दे दिया जाए ?
ज्ञानी : (मुस्कराकर) नमक-मिर्च लगाना कोई तुमसे सीख ले मुझे भोली पाकर बातों में उड़ा देते हो,लेकिन आज मैं न मानूंगी
सबल : ऐसी जल्दी क्या है ? मैं स्वामीजी को यहीं बुला लाऊँगा, खूब जी भरकर दर्शन कर लेना। वहां बहुत से आदमी जमा होंगे, उनसे बातें करने का भी अवसर न मिलेगी। देखने वाले हंसी उड़ाएंगे कि पति तो साहब बना गिरता है और स्त्री साधुओं के पीछे दौड़ा करती है।
ज्ञानी : अच्छा, तो कब बुला दोगे ?
सबल : कल पर रखो
ज्ञानी चली जाती है।
सबलसिंह : (आज-ही-आप) संतान की क्यों इतनी लालसा होती है ? जिसके संतान नहीं है वह अपने को अभागा समझता है, अहर्निश इसी क्षोभ और चिंता में डूबा रहता है। यदि यह लालसा इतनी व्यापक न होती तो आज हमारा धार्मिक जीवन कितना शिथिल, कितना नीरव होता। न तीर्थयात्राओं की इतनी धूम होती, न मंदिरों की इतनी रौनक, न देवताओं में इतनी भक्ति, न साधु-महात्माओं पर इतनी श्रद्वा, न दान और व्रत की इतनी धूम। यह सब कुछ संतान-लालसा का ही चमत्कार है ! खैर कल चलूंगा, देखूं इन स्वामीजी के क्या रंग-ढ़ंग हैं। अदालतों की बात सोच रहा था।यह आक्षेप किया जाता है कि पंचायतें यथार्थ न्याय न कर सकेंगी¼ पंच लोग मुंह?देखी करेंगे और वहां भी सबलों की ही जीत होगी। इसका निवारण यों हो सकता है कि स्थायी पंच न रखे जाएं। जब जरूरत हो, दोनों पक्षों के लोग अपने?अपने पंचों को नियत कर देंबकिसानों में भी ऐसी कामिनियां होती हैं, यह मुझे न मालूम था।यह निस्संदेह किसी उच्च कुल की लड़की है। किसी कारणवश इस दुरवस्था में आ फंसी है। विधाता ने इस अवस्था में रखकर उसके साथ अत्याचार किया है। उसके कोमल हाथ खेतों में कुदाल चलाने के लिए नहीं बनाए गए हैं, उसकी मधुर वाणी खेतों में कौवे हांकने के लिए उपयुक्त नहीं है, जिनके केशों से झूमर का भार भी न सहा जाए उन पर उपले और अनाज के टोकरे रखना महान् अनर्थ है, माया की विषम लीला है। भाग्य का द्रूर रहस्य है। वह अबला है, विवश है, किसी से अपने ह्रदय की व्यथा। कह नहीं सकती। अगर मुझे मालूम हो जाये कि वह इस हालत में सुखी है, तो मुझे संतोष हो जाएगी। पर वह कैसे मालूम हो, कुलवती स्त्रियां अपनी विपत्ति?कथा। नहीं कहतीं, भीतर-ही-भीतर जलती हैं पर ाबान से हाय नहीं करती।मैं फिर उसी उधेड़-बुन में पड़ गया। समझ में नहीं आता मेरे चित्त की यह दशा क्यों हो रही है। अब तक मेरा मन कभी इतना चंचल नहीं हुआ था।मेरे युवाकाल के सहवासी तक मेरी अरसिकता पर आश्चर्य करते थे।अगर मेरी इस लोलुपता की जरा भी भनक उनके कान में पड़ जाए तो मैं कहीं मुंह दिखाने लायक न रहूँ। यह आग मेरे ह्रदय में ही जले, और चाहे ह्रदय जलकर राख हो जाए पर उसकी कराह किसी के कान में न पड़ेगी। ईश्वर की इच्छा के बिना कुछ नहीं होता। यह प्रेम-ज्योति उद्दीप्त करने में भी उसकी कोई-न-कोई मसलहत जरूर होगी।

घंटी बजाता है।
एक नौकर : हुजूर हुकुम ?
सबल : घोड़ा खींचो।
नौकर : बहुत अच्छा। 

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रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
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पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

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तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

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छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

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संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

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चौथा दृश्य

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स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

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छठा दृश्य

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सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

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सातवाँ दृश्य

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समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

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आठवाँ दृश्य

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समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

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नवाँ दृश्य

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स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

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दसवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

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संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

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दूसरा दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

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छठा दृश्य

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स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

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सातवाँ दृश्य

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स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

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आठवाँ दृश्य

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स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

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नवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

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संग्राम (नाटक) अंक-4

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पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

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दूसरा दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

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चौथा दृश्य

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स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

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सातवाँ दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

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संग्राम (नाटक) अंक-5

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पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

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दूसरा दृश्य

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स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

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चौथा दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

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