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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022

15 बार देखा गया 15

समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ।
स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश।
सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना हो तो तुम्हीं को नमूना बनाऊँ। तुम्हारे मुख पर मंद समीरण से लहराते हुए केश ऐसी शोभा दे रहे हैं मानो...
राजेश्वरी : दो नागिनें लहराती चली जाती हों, किसी प्रेमी को डसने के लिए।
सबल : तुमने हंसी में उड़ा दिया, मैंने बहुत ही अच्छी उपमा सोची थी।
राजेश्वरी : खैर, यह बताइए तीन दिन तक दर्शन क्यों नहीं दिया ।
सबल : (असमंजस में पड़कर) मैंने समझा शायद मेरे रोज आने से किसी को संदेह हो जाए।
राजेश्वरी : मुझे इसकी कुछ परवाह नहीं है। आपको यहां नित्य आना होगी। आपको क्या मालूम है कि यहां किस तरह तड़प?तड़पकर दिन काटती हूँ।
सबल : राजेश्वरी, मैं अपनी दशा कैसे दर्शाऊँ। बस, यही समझ लो जैसे पानी बिना मछली के तड़पती हो, न सैर करने को जी चाहता है, न घर से निकलने का, न किसी से मिलने-जुलने को यहां तक कि सिनेमा देखने को भी जी नहीं चाहता। जब यहां आने लगता हूँ तो ऐसी प्रबल उत्कंठा होती है कि उड़कर आ पहुंचूं। जब यहां से चलता हूँ तो ऐसा जान पड़ता है कि मुकदमा हार आया हूँ। राजेश्वरी, पहले मेरी केवल यही इच्छा थी कि तुम्हें आंखों से देखता रहूँ, तुम्हारी मधुर वाणी सुनता रहूँ। तुम्हें अपनी देवी बनाकर पूजना चाहता था।, पर जैसे ज्वर में जल से तृप्ति नहीं होती, जैसे नई सभ्यता में विलास की वस्तुओं से तृप्ति नहीं होती, वैसे ही प्रेम का भी हाल है¼ वह सर्वस्व देना और सर्वस्व लेना चाहता है। इतना यत्न करने पर भी घर के लोग मुझे चिंतित नेत्रों से देखने लगे हैं। उन्हें मेरे स्वभाव में कोई ऐसी बात नजर आती है जो पहले नहीं आती थी। न जाने इसका क्या अंत होगा!
राजेश्वरी : इसका जो अंत होगा वह मैं जानती हूँ और उसे जानते हुए मैंने इस मार्ग पर पांव रखा है। पर उन चिंताओं को छोड़िए। जब ओखली में सिर दिया है तो मूसलों का क्या डर ! मैं यही चाहती हूँ कि आप दिन में किसी समय अवश्य आ जाया करें। आपको देखकर मेरे चित्त की ज्वाला शांत हो जाती है, जैसे जलते हुए घाव पर मरहम लग जाए। अकेले मुझे डर भी लगता है कि कहीं वह हलजोत किसान मेरी टोह लगाता हुआ आ न पहुंचे। यह भय सदैव मेरे ह्रदय पर छाया रहता है। उसे क्रोध आता है तो वह उन्मत्त हो जाता है। उसे जरा भी खबर मिल गई तो मेरी जान की खैरियत नहीं है।
सबल : उसकी जरा भी चिंता मत करो। मैंने उसे हिरासत में रखवा दिया है। वहां छह महीने तक रखूंगा। अभी तो एक महीने से कुछ ही उसपर हुआ है। छह महीने के बाद देखा जाएगी। रूपये कहां हैं कि देकर छूटेगा!
राजेश्वरी : क्या जाने उसके गाय-बैल कहां गए ? भूखों मर गए होंगी।
सबल : नहीं, मैंने पता लगाया था।वह बुङ्ढा मुसलमान फत्तू उसके सब जानवरों को अपने घर ले गया है और उनकी अच्छी तरह सेवा करता है।
राजेश्वरी : यह सुनकर चिंता मिट गई। मैं डरती थी कहीं सब जानवर मर गए हों तो हमें हत्या लगे।
सबल : (घड़ी देखकर) यहां आता हूँ तो समय के पर-से लग जाते हैं। मेरा बस चलता तो एक-एक मिनट के एक-एक घंटे बना देता।
राजेश्वरी : और मेरा बस चलता तो एक-एक घंटे के एक-एक मिनट बना देती। जब प्यास-भर पानी न मिले तो पानी में मुंह ही क्यों लगाए। जब कपड़े पर रंग के छींटे ही डालने हैं तो उसका उजला रहना ही अच्छा। अब मन को समेटना सीखूंगी।
सबल : प्रिय
राजेश्वरी : (बात काटकर) इस पवित्र शब्द को अपवित्र न कीजिए।
सबल : (सजल नयन होकर) मेरी इतनी याचना तुम्हें स्वीकार करनी पड़ेगी। प्रिये, मुझे अनुभव हो रहा है कि यहां रहकर हम आनंदमय प्रेम का स्वर्ग-सुख न भोग सकेंगी। क्यों न हम किसी सुरम्य स्थान पर चलें जहां विघ्न और बाधाओं, चिंताओं और शंकाओं से मुक्त होकर जीवन व्यतीत हो, मैं कह सकता हूँ कि मुझे जलवायु परिवर्तन के लिए किसी स्वास्थ्यकर स्थान की जरूरत है¼ जैसे गढ़वाल, आबू पर्वत या रांची)
राजेश्वरी : लेकिन ज्ञानी देवी को क्या कीजिएगा? क्या वह साथ न चलेंगी?
सबल : बस यही एक रूकावट है। ऐसा कौन-सा यत्न करूं कि वह मेरे साथ चलने पर आग्रह न करे। इसके साथ ही कोई संदेह भी न हो।
राजेश्वरी : ज्ञानी सती हैं, वह किसी तरह यहां न रहेंगी। यूं आप दस-पांच दिन, या एक-दो महीने के लिए कहीं जाएं तो वह साथ न जाएंगी, लेकिन जब उन्हें मालूम होगा कि आपका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तब वह किसी तरह न रूकेंगी। और यह बात भी है कि ऐसी सती स्त्री को मैं दु: खी नहीं करना चाहती। मैं तो केवल आपका प्रेम चाहती हूँ। उतना ही जितना ज्ञानी से बचे। मैं उनका अधिकार नहीं छीनना चाहती। मैं उनके पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूँ। मैं उनके घर में चोर की भांति घुसी हूँ। उनसे मेरी क्या बराबरी। आप उन्हें दु: खी किए बिना मुझ पर जितनी कृपा कर सकते हैं उतनी कीजिए।
सबल : (मन में) कैसे पवित्र विचार हैं ! ऐसा नारी-रत्न पाकर मैं उसके सुख से वंचित हूँ। मैं कमल तोड़ने के लिए क्यों पानी में घुसा जब जानता था कि वहां दलदल है। मदिरा पीकर चाहता हूँ कि उसका नशा न हो।
राजेश्वरी : (मन में) भगवन्, देखूं अपने व्रत का पालन कर सकती हूँ या नहीं कितने पवित्र भाव हैं¼ कितना अगाध प्रेम!
सबल : (उठकर) प्रिये, कल इसी वक्त फिर आऊँगा। प्रेमालिंगन के लिए चित्त उत्कंठित हो रहा है।
राजेश्वरी : यहां प्रेम की शांति नहीं, प्रेम की दाह है। जाइए। देखूं, अब यह पहाड़-सा दिन कैसे कटता है। नींद भी जाने कहां भाग गई!
सबल : (छज्जे के जीने से लौटकर) प्रिये, गजब हो गया, वह देखो, कंचनसिंह जा रहे हैं। उन्होंने मुझे यहां से उतरते देख लिया। अब क्या करूं ?
राजेश्वरी : देख लिया तो क्या हरज हुआ ? समझे होंगे आप किसी मित्र से मिलने आए होंगे।जरा मैं भी उन्हें देख लूं।
सबल : जिस बात का मुझे डर था। वही हुआ। अवश्य ही उन्हें कुछ टोह लग गई है। नहीं तो इधर उनके आने का कोई काम न था।यह तो उनके पूजा?पाठ का समय है। इस वक्त कभी बाहर नहीं निकलते। हां, गंगास्नान करने जाते हैं, मगर घड़ी रात रहै। इधर से कहां जाएंगी। घरवालों को संदेह हो गया।
राजेश्वरी : आपसे स्वरूप बहुत मिलता हुआ है। सुनहरी ऐनक खूब खिलती है।
सबल : अगर वह सिर झुकाए अपनी राह चले जाते तो मुझे शंका न होती¼ पर वह इधर-उधर, नीचे-उपर इस भांति ताकते जाते थे जैसे शोहदे कोठों की ओर झांकते हैं। यह उनका स्वभाव नहीं है। बड़े ही धर्मज्ञ, सच्चरित्र, ईश्वरभक्त पुरूष हैं। सांसारिकता से उन्हें घृणा है। इसीलिए अब तक विवाह नहीं किया।
राजेश्वरी : अगर यह हाल है तो यहां पूछताछ करने जरूर आएंगी।
सबल : मालूम होता है इस घर का पता पहले लगा लिया है। इस समय पूछताछ करने ही आए थे।मुझे देखा तो लौट गए। अब मेरी लज्जा, मेरा लोक-सम्मान, मेरा जीवन तुम्हारे अधीन है। तुम्हीं मेरी रक्षा कर सकती हो।
राजेश्वरी : क्यों न कोई दूसरा मकान ठीक कर लीजिए।
सबल : इससे कुछ न होगी। बस यही उपाय है कि जब वह यहां आएं तो उन्हें चकमा दिया जाए। कहला भेजो, मैं सबलसिंह को नहीं जानती। वह यहां कभी नहीं आते। दूसरा उपाय यह है कि उन्हें कुछ दिनों के लिए यहां से टाल दूं। कह देता हूँ कि जाकर लायलपुर से गेहूँ खरीद लाओ। तब तक हम लोग यहां से कहीं और चल देंगी।
राजेश्वरी : यही तरकीब अच्छी है।
सबल : अच्छी तो है, पर हुआ बड़ा अनर्थ। अब पर्दा ढका रहना कठिन है।
राजेश्वरी : (मन में) ईश्वर, यही मेरी प्रतिज्ञा के पूरे होने का अवसर है। मुझे बल प्रदान करो। (प्रकट) यह सब मुसीबतें मेरी लाई हुई हैं। मैं क्या जानती थी कि प्रेम-मार्ग में इतने कांटे हैं।
सबल : मेरी बातों का ध्यान रखना। मेरे होश ठिकाने नहीं हैं। चलूं, देखूं, मुआमला अभी कंचनसिंह ही तक है या ज्ञानी को भी खबर हो गई।
राजेश्वरी : आज संध्या समय आइए। मेरा जी उधर ही लगा रहेगा।
सबल : अवश्य आऊँगा। अब तो मन लागि रह्यो होनी हो सो होई। मुझे अपनी कीर्ति बहुत प्यारी है। अब तक मैंने मान-प्रतिष्ठा ही को जीवन का आधार समझ रखा था।, पर अब अवसर आया तो मैं इसे प्रेम की वेदी पर उसी तरह चढ़ा दूंगा जैसे उपासक पुष्पों को चढ़ा देता है, नहीं जैसे कोई ज्ञानी पार्थिव वस्तुओं को लात मार देता है।
जाता है। 

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रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
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पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

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तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

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छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

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संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

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आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

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नवाँ दृश्य

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स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

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दसवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

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संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

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दूसरा दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

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छठा दृश्य

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स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

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आठवाँ दृश्य

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स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

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नवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

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संग्राम (नाटक) अंक-4

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

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दूसरा दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

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चौथा दृश्य

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स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

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सातवाँ दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

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संग्राम (नाटक) अंक-5

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

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दूसरा दृश्य

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स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

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छठा दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

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