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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022

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समय: संध्या।
स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं।
फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली।
हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया।
फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत उजाड़ब कई साल के बाद तो अबकी खेती जरा रंग पर आई थी। कल इन खेतों को देखकर कैसी गज-भर की छाती हो जाती थी। ऐसा जान पड़ता था।, सोना बिछा दिया गया है। बित्ते-बित्ते भर की बालें लहराती थीं, पर अल्लाह ने मारा सब सत्यानाश कर दिया । बाग में निकल जाते थे तो बौर की महक से चित्त खिल उठता था।पर आज बौर की कौन कहे पत्ते तक झड़ गए।
एक वृद्व किसान: मेरी याद में इतने बड़े-बड़े ओले कभी न पड़े थे।
हलधर: मैंने इतने बड़े ओले देखे ही न थे, जैसे चट्टान काट-काटकर लुढ़का दिया गया हो,
फत्तू: तुम अभी हो कै दिन के ? मैंने भी इतने बड़े ओले नहीं देखे।
एक वृद्व किसान : एक बेर मेरी जवानी में इतने बड़े ओले गिरे थे कि सैकड़ों ढोर मर गए। जिधर देखो मरी हुई चिड़ियां गिरी मिलती थीं।कितने ही पेड़ फिर पड़े। पक्की छतें तक गट गई थीं।बखारों में अनाज सड़ गए, रसोई में बर्तन चकनाचूर हो गए। मुदा अनाज की मड़ाई हो चुकी थी। इतना नुकसान नहीं हुआ था।
सलोनी: मुझे तो मालूम होता है कि जमींदार की नीयत बिगड़ गई है, तभी ऐसी तबाही हुई है।
राजेश्वरी: काकी, भगवान न जाने क्या करने वाले हैं। बार-बार मने करती थी कि अभी महाजन से रूपये न लो।लेकिन मेरी कौन सुनता है। दौड़े-दौड़े गए दो सौ रूपये उठा लाए, जैसे धरोहर हो, देखें अब कहां से देते हैं। लगान उसपर से देना है। पेट तो मजूरी करके मर जाएगा, लेकिन महाजन से कैसे गला छूटेगा ?
हलधर: भला पूछा तो काकी, कौन जानता था। कि क्या सुदनी हैं। आगम देख के तब रूपये लिए थे।यह आगत न आ जाती तो एक सौ रूपये का तो अकेले तेलहन निकल जाता। छाती-भर गेहूँ खड़ा था।
फत्तू: अब तो जो होना था। वह हो गया। पछताने से क्या हाथ आएगा ?
राजेश्वरी: आदमी ऐसा काम ही क्यों करे कि पीछे से पछताना पड़े।
सलोनी: मेरी सलाह मानो, सब जने जाकर ठाकुर से फरियाद करो कि लगान की माफीहो जाए। दयावान आदमी हैं। मुझे तो बिस्सास है कि मांग कर देंगे। दलहाई की बेगार में हम लोगों से बड़े प्रेम से बातें करते रहै। किसी को छटांक-भर भी दाल न दलने दीब पछताते रहे कि नाहक तुम लोगों को दिक किया। मुझसे बड़ी भूल हुई मैं तो फिर कहूँगी कि आदमी नहीं देवता हैं।
फत्तू: जमींदार के माफकरने से थोड़े माफीहोती है¼ जब सरकार माफकरे तब न ? नहीं तो जमींदार को मालगुजारी घर से चुकानी पड़ेगी। तो सरकार से इसकी कोई आशा नहीं अमले लोग तहकीकात करने को भेजे जाएंगी। वह असामियों से खूब रिसवत पाएंगे तो नुकसान दिखाएंगे, नहीं तो लिख देंगे ज्यादा नकसान नहीं हुआ। सरकार बहुत करेगी चार आने की छूट कर देगी। जब बारह आने देने ही पड़ेंगे तो चार आने और सही। रिसवत और कचहरी की दौड़ से तो बच जाएंगी। सरकार को अपना खजाना भरने से मतलब है कि परजा को पालने सेब सोचती होगी, यह सब न रहेंगे तो इनके और भाई तो रहेंगे ही। जमीन परती थोड़े पड़ी रहेगी।
एक वृद्व किसान: सरकार एक पैसा भी न छोड़ेगी। इस साल कुछ छोड़ भी देगी तो अगले साल सूद समेत वसूल कर लेगी।
फत्तू: बहुत निगाह करेगी तो तकाबी मंजूर कर देगी। उसका भी सूद लेगी। हर बहाने से रूपया खींचती है। कचहरी में झूठी कोई दरखास देने जाओ तो बिना टके खर्च किए सुनाई नहीं होती। अफीम सरकार बेचे, दाई, गांजा, भांग, मदक, चरस सरकार बेचे। और तो और नोन तक बेचती है। इस तरह रूपया न खींचे तो अफसरों की बड़ी-बड़ी तलब कहां से दे ! कोई एक लाख पाता है, कोई दो लाख, कोई तीन लाख। हमारे यहां जिसके पास लाख रूपये होते हैं वह लखपती कहलाता है, मारे घमंड के सीधे ताकता नहीं सरकार के नौकरों की एक-एक साल की तलब दो-दो लाख होती है। भला वह लगान की एक पाई भी न छोड़ेगी।
हलधर: बिना सुराज मिले हमारी दसा न सुधरेगी। अपना राज होता तो इस कठिन समय में अपनी मदद करता।
फत्तू: मदद करेंगे ! देखते हो जब से दाई, अफीम की बिक्री बंद हो गई है अमले लोग नसे का कैसा बखान करते गिरते हैं। कुरान शरीफ में नसा हराम लिखा है, और सरकार चाहती है कि देस नसेबाज हो जाए। सुना है, साहब ने आजकल हुकुम दे दिया है कि जो लोग खुद अफीम-सराब पीते हों और दूसरों को पीने की सलाह देते हों, उनका नाम खैरखाहों में लिख लिया जाए। जो लोग पहले पीते थे, अब छोड़ बैठे हैं, या दूसरों को पीना मना करते हैं, उनका नाम बागियों में लिखा जाता है।
हलधर: इतने सारे रूपये क्या तलबों में ही उठ जाते हैं ?
राजेश्वरी: गहने बनवाते हैं।
फत्तू: ठीक तो कहती हैं। क्या सरकार के जोई-बच्चे नहीं हैं ? इतनी बड़ी फौज बिना रूपये के ही रखी है ! एक-एक तोप लाखों में आती है। हवाई जहाज कई-कई लाख के होते हैं। सिपाहियों को सर्च के लिए हवा-गाड़ी चाहिए । जो खाना यहां रईसों को मयस्सर नहीं होता वह सिपाहियों को खिलाया जाता है। साल में छ: महीने सब बड़े-बड़े हाकिम पहाड़ों की सैर करते हैं। देखते तो हो छोटे-छोटे हाकिम भी बादशाहों की तरह ठाट से रहते हैं, अकेली जान पर दस-पंद्रह नौकर रखते हैं, एक पूरा बंगला रहने को चाहिए । जितना बड़ा हमारा गांव है उससे ज्यादा जमीन एक बंगले के हाते में होती है। सुनते हैं, दस रूपये-बीस रूपये बोतल की शराब पीते हैं। हमको-तुमको भरपेट रोटियां नहीं नसीब होतीं, वहां रात-दिन रंग चढ़ा रहता है। हम-तुम रेलगाड़ी में धक्के खाते हैं। एक-एक डब्बे में जहां दस की जगह है वहां बीस, पच्चीस, तीस, चालीस ठूंस दिए जाते हैं। हाकिमों के वास्ते सभी सजी-सजाई गाड़ियां रहती हैं, आराम से गद्दी पर लेटे हुए चले जाते हैं। रेलगाड़ी को जितना हम किसानों से मिलता है उसका एक हिस्सा भी उन लोगों से न मिलता होगी। मगर तिस पर भी हमारी कहीं पूछ नहीं जमाने की खूबी है !
हलधर: सुना है, मेमें अपने बच्चों को दूध नहीं पिलाती।
फत्तू: सो ठीक है, दूध पिलाने से औरत का शरीर ढीला हो जाता है, वह फुरती नहीं रहती। दाइयां रख लेते हैं। वही बच्चों को पालती-पोसती हैं। मां खाली देखभाल करती रहती हैं। लूट है लूट!
सलोनी: दरखास दो¼ मेरा मन कहता है, छूट हो जाएगी।)
फत्तू: कह तो दिया, दो-चार आने की छूट हुई भी तो बरसों लग जाएंगी। पहले पटवारी कागद बनाएगा, उसको पूजो¼ तब कानूगो जांच करेगा, उसको पूजो¼ तब तहसीलदार नजर सानी करेगा, उसको पूजो¼ तब डिप्टी के सामने कागद पेस होगा, उसको पूजो¼ वहां से तब बड़े साहब के इजलास में जाएगा, वहां अहलमद और अरदली और नाजिर सभी को पूजना पड़ेगा। बड़े साहब कमसनर को रपोट देंगे, वहां भी कुछ-न-कुछ पूजा करनी पड़ेगी। इस तरह मंजूरी होते?होते एक जुग बीत जाएगी। इन सब झंझटों से तो यही अच्छा है कि:
रहिमन चुप तै बैठिए देखि दिनन को फेर।
जब नीके दिन आइहैं बनत न लगिहै बेर।।
हलधर: मुझे तो साठ रूपये लगान देने हैं। बैल-बधिया बिक जाएंगे तब भी पूरा न पड़ेगा।
किसान: बचेंगे किसके ! अभी साल-भर खाने को चाहिए । देखो, गेहूँ के दाने कैसे बिखरे पड़े हैं जैसे किसी ने मसल दिए हों।
हलधर: क्या करना होगा?
राजेश्वरी: होगा क्या, जैसी करनी वैसी भरनी होगी। तुम तो खेत में बाल लगते ही बावले हो गए। लगान तो था। ही, उसपर से महाजन का बोझ भी सिर पर लाद लिया।
फत्तू: तुम मैके चली जाना। हम दोनों जाकर कहीं मजूरी करेंगी। अच्छा काम मिल गया तो साल-भर में डोंगा पार है।
राजेश्वरी: हां, और क्या, गहने तो मैंने पहने हैं, गाय का दूध मैंने खाया है, बरसी मेरे ससुर की हुई है, अब जो भरौती के दिन आए तो मैं मैके भाग जाऊँ। यह मेरा किया न होगी। तुम लोग जहां जाना, वहीं मुझे भी लेते चलना। और कुछ न होगा तो पकी-पकाई रोटियां तो मिल जाएंगी।
सलोनी: बेटी, तूने यह बात मेरे मन की कही। कुलवंती नारी के यही लच्छन हैं। मुझे भी अपने साथ लेती चलना।
गाती है।
चलो पटने की देखो बहार, सहर गुलजार रे।
फत्तू: हां, दाई, खूब गा, गाने का यही अवसर है। सुख में तो सभी गाते हैं।
सलोनी: और क्या बेटा, अब तो जो होना था।, हो गया। रोने से लौट थोड़े ही आएगी।
गाती है।
उसी पटने में तमोलिया बसत है।
बीड़ों की अजब बहार रे।
पटना शहर गुलजार रे।।
फत्तू: काकी का गाना तानसेन सुनता तो कानों पर हाथ रखता। हां, दाई !
सलोनी: (गाती है)
उसी पटने में बजजवा बसत है।।
कैसी सुंदर लगी है बजार रे।
पटना सहर गुलजार रे।।
फत्तू : बस एक कड़ी और गा दे काकी ! तेरे हाथ जोड़ता हूँ। जी बहल गया।
सलोनी : जिसे देखो गाने को ही कहता है, कोई यह नहीं पूछता कि बुढ़िया कुछ खाती-पीती भी है या आसिरवादों से ही जीती है।
राजेश्वरी: चलो, मेरे घर काकी, क्या खाओगी ?
सलोनी : हलधर, तू इस हीरे को डिबिया में बंद कर ले, ऐसा न हो किसी की नजर लग जाए। हां बेटी, क्या खिलाएगी ?
राजेश्वरी : जो तुम्हारी इच्छा हो,
सलोनी : भरपेट ?
राजेश्वरी : हां, और क्या ?
सलोनी : बेटी, तुम्हारे खिलाने से अब मेरा पेट न भरेगी। मेरा पेट भरता था। जब रूपये का पसेरी-भर घी मिलता था।अब तो पेट ही नहीं भरता। चार पसेरी अनाज पीसकर जांत पर से उठाती थी। चार पसेरी की रोटियां पकाकर चौके से निकलती थी। अब बहुएं आती हैं तो चूल्हे के सामने जाते उनको ताप चढ़ आती है, चक्की पर बैठते ही सिर में पीड़ा होने लगती है। खाने को तो मिलता नहीं, बल-बूता कहां से आए। न जाने उपज ही नहीं होती कि कोई ढो ले जाता है। बीस मन का बीघा उतरता था।बीस रूपये भी हाथ में आ जाते थे, तो पछाई बैलों की जोड़ी द्वार पर बंध जाती थी। अब देखने को रूपये तो बहुत मिलते हैं पर ओले की तरह देखते-देखते फल जाते हैं। अब तो भिखारी को भीख देना भी लोगों को अखरता है।
फत्तू : सच कहना काकी, तुम काका को मुट्ठी में दबा लेती थी कि नहीं ?
सलोनी : चल, उनका जोड़ दस-बीस गांव में न था।तुझे तो होस आता होगा, कैसा डील-डौल था।चुटकी से सुपारी गोड़ देते थे।
गाती है।
चलो-चलो सखी अब जाना,
पिया भेज दिया परवाना। (टेक)
एक दूत जबर चल आया, सब लस्कर संग सजाया री।
किया बीच नगर के थाना,
गढ़ कोट-किले गिरवाए, सब द्वार बंद करवाए री।
अब किस विधि होय रहाना।
जब दूत महल में आवे, तुझे तुरत पकड़ ले जावे री।
तेरा चले न एक बहाना।
पिया भेज दिया परवाना।
 

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रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
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पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

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तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

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छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

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संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

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चौथा दृश्य

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स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

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आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

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नवाँ दृश्य

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स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

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दसवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

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संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

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दूसरा दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

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छठा दृश्य

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स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

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सातवाँ दृश्य

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स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

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आठवाँ दृश्य

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स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

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नवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

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संग्राम (नाटक) अंक-4

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

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दूसरा दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

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चौथा दृश्य

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स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

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सातवाँ दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

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संग्राम (नाटक) अंक-5

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पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

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दूसरा दृश्य

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स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

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