shabd-logo

संग्राम (नाटक) अंक-5

11 फरवरी 2022

21 बार देखा गया 21

पहला दृश्य

स्थान : डाकुओं का मकान।
समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है।
हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी इतना प्रेम होता है। दोनों के आंसू ही न थमते थे।बड़ी कुशल हुई कि मैं मौके से पहुंच गया, नहीं तो वंश का अंत हो जाता। मुझे तो दोनों भाइयों से ऐसा प्रेम हो गया है मानो मेरे अपने भाई हैं। मगर आज तो मैंने उन्हें बचा लिया। कौन कह सकता है वह फिर एक-दूसरे के दुश्मन न हो जायेंगी। रोग की जड़ तो मन में जमी हुई है। उसको काटे बिना रोगी की जान कैसे बचेगी। राजेश्वरी के रहते हुए इनके मन की मैल न मिटेगी। दो-चार दिन में इनमें फिर अनबन हो जाएगी। इस अभागिनी ने मेरे कुल में आग लगायी, अब इस कुल का सत्यानाश कर रही है। उसे मौत भी नहीं आ जाती। जब तक जियेगी मुझे कलंकित करती रहेगी।
बिरादरी में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। सब लोग मुझे बिरादरी से निकाल देंगे। हुक्का-पानी बंद कर देंगे।हेठी और बदनामी होगी वह घाते में । यह तो यहां महल में रानी बनी बैठी अपने कुकर्म का आनंद उठाया करे और मैं इसके कारण बदनामी उठाऊँ। अब तक उसको मारने का जी न चाहता था।औरतों पर हाथ उठाना नीचता का काम समझता था।पर अब वह नीचता करनी पड़ेगी। उसके किए बिना सब खेल बिगड़ जाएगी।
चेतनदास का प्रवेश।
चेतनदास : यहां कौन बैठा है ?
हलधर : मैं हूँ हलधर।
चेतनदास : खूब मिले। बताओ सबलसिंह का क्या हाल हुआ ? वध कर डाला ?
हलधर : नहीं, उन्हें मरने से बचा लिया
चेतनदास : (खुश होकर) बहुत अच्छा किया। मुझे यह सुनकर बड़ी खुशी हुई सबलसिंह कहां हैं ?
हलधर : मेरे घर
चेतनदास : ज्ञानी जानती है कि वह जिंदा है ?
हलधर : नहीं, उसे अब तक इसकी खबर नहीं मिली।
चेतनदास : तो उसे जल्द खबर दो नहीं तो उससे भेंट न होगी। वह घर में नहीं है। न जाने कहां गयी ? उसे यह खबर मिल जाएगी तो कदाचित् उसकी जान बच जाए। मैं उसकी टोह में जा रहा हूँ। इस अंधेरी रात में कहां खोजूं ? (प्रस्थान)
हलधर : (मन में) यह डाकन न जाने कितनी जानें लेकर संतुष्ट होगी। ज्ञानीदेवी है। उसने सबलसिंह को कमरे में न देखा होगी। समझी होगी वह गंगा में डूब मरे। कौन जाने इसी इरादे से वह भी घर से निकल खड़ी हुई हो, चलकर अपने आदमियों को उसका पता लगाने के लिए दौड़ा दूं। उसकी जान मुर्ति में चली जाएगी। क्या दिल्लगी है कि रानी तो मारी-मारी फिरे और कुलटा महल में सुख की नींद सोये।
अचल दूसरी ओर से हवाई बंदूक लिये आता है।
हलधर : कौन ?
अचल : अचलसिंह, कुंअर सबलसिंह का पुत्र।
हलधर : अच्छा, तुम खूब आ गये पर अंधेरी रात में तुम्हें डर नहीं
लगा?
अचल : डर किस बात का ? मुझे डर नहीं लगता। बाबूजी ने मुझे बताया है कि डरना पाप है`
हलधर : जाते कहां हो ?
अचल : कहीं नहीं।
हलधर : तो इतनी रात गए घर से क्यों निकले ?
अचल : तुम कौन हो ?
हलधर : मेरा नाम हलधर है।
अचल : अच्छा, तुम्हीं ने माताजी की जान बचायी थी ?
हलधर : जान तो भगवान् ने बचायी, मैंने तो केवल डाकुओं को भगा दिया था। तुम इतनी रात गए अकेले कहां जा रहे हो ?
अचल : किसी से कहोगे तो नहीं ?
हलधर : नहीं, किसी से न कहूँगा
अचल : तुम बहादुर आदमी हो, मुझे तुम्हारे उसपर विश्वास है। तुमसे कहने में शर्म नहीं है। यहां कोई वेश्या है। उसने चाचा जी को और बाबूजी को विष देकर मार डाला है। अम्मांजी ने शोक से प्राण त्याग दिए । वह स्त्री थीं, क्या कर सकती थीं । अब मैं उसी वेश्या के घर जा रहा हूँ। इसी वक्त बंदूक से उसका सिर उड़ा दूंगा। (बंदूक तानकर दिखाता है।)
हलधर : तुमसे किसने कहा?
अचल : मिसराइन ने, चाचाजी कल से घर पर नहीं हैं। बाबूजी भी दस बजे रात से नहीं हैं। न घर में अम्मां का पता है। मिसराइन सब हाल जानती हैं।
हलधर : तुमने वेश्या का घर देखा है ?
अचल : नहीं, घर तो नहीं देखा है।
हलधर : तो उसे मारोगे उसे ?
अचल : किसी से पूछ लूंगा ।
हलधर : तुम्हारे चाचाजी और बाबूजी तो मेरे घर में हैं।
अचल : झूठ कहते हो, दिखा दोगे ?
हलधर : कुछ इनाम दो तो दिखा दूं।
अचल : चलो, क्या दिखाओगे ! वह लोग अब स्वर्ग में होंगे।हां, राजेश्वरी का घर दिखा दो तो जो कहो वह दूं।
हलधर : अच्छा मेरे साथ आओ, मगर बंदूक ले लूंगा।
दोनों घर में जाते हैं, सबल और कंचन चकित होकर अचल को देखते हैं, अचल दौड़कर बाप की गरदन से चिमट जाता है।
हलधर : (मन में) अब यहां नहीं रह सकता। फिर तीनों रोने लगे ? बाहर चलूं। कैसा होनहार बालक है। (बाहर आकर मन में) यह बच्चा तक उसे वेश्या कहता है। वेश्या है ही। सारी दुनिया यही कहती होगी। अब तो और भी गुल खिलेगी। अगर दोनों भाइयों ने उसे त्याग दिया तो पेट के लिए उसे अपनी लाज बेचनी पड़ेगी। ऐसी हयादार नहीं है कि जहर खाकर मर जाए। जिसे मैं देवी समझता था। वह ऐसी कुल-कलंकिनी निकली ! तूने मेरे साथ ऐसा छल किया ! अब दुनिया को कौन मुंह दिखाऊँ। सब की एक ही दवा है । न बांस रहे न बांसुरी बजेब तेरे जीने से सबकी हानि है। किसी का लाभ नहीं तेरे मरने से सबका लाभ है, किसी की हानि नहीं उससे कुछ पूछना व्यर्थ है । रोएगी, गिड़गिड़ाएगी, पैरों पड़ेगी। जिसने लाज बेच दी
वह अपनी जान बचाने के लिए सभी तरह की चालें चल सकती है। कहेगी, मुझे सबलसिंह जबरदस्ती निकाल लाए, मैं तो आती न थी। न जाने क्या-क्या बहाने करेगी ! उससे सवाल-जवाब करने की जरूरत नहीं चलते ही काम तमाम कर दूंगा
हथियार संभालकर चल खड़ा होता है। 

37
रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
1

पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
5
0
0

प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

2

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

3

तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

4

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

5

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

6

छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

7

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

8

संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
1
0
0

पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

9

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

10

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

11

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

12

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

13

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

14

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

15

आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

16

नवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

17

दसवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

18

संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

19

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

20

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

21

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

22

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

23

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

24

आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

25

नवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

26

संग्राम (नाटक) अंक-4

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

27

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

28

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

29

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

30

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

31

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

32

संग्राम (नाटक) अंक-5

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

33

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

34

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

35

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

36

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

37

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए