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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा।
समय : दोपहर।
लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है।
राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ?
लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है।
राजेश्वरी : पूछा नहीं कौन है, क्या कहता है, किस मतलब से आया है ? संदेशा लेकर दौड़ चली, कैसे मजे का सपना देख रही थी।
लौंडी : ठाकुर साहब ने तो कह दिया है कि कोई कितना ही पुकारे, कोई हो, किवाड़ न खोलना, न कुछ जवाब देना। इसीलिए मैंने कुछ पूछताछ नहीं की।
राजेश्वरी : मैं कहती हूँ जाकर पूछो, कौन है ?
महरी जाती है और एक क्षण में लौट आती है।
लौंडी : अरे बाईजी, बड़ा गजब हो गया। यह तो ठाकुर साहब के छोटे भाई बाबू कंचनसिंह हैं। अब क्या होगा?
राजेश्वरी : होगा क्या, जाकर बुला ला।
लौंडी : ठाकुर साहब सुनेंगे तो मेरे सिर का बाल भी न छोड़ेंगे।
राजेश्वरी : तो ठाकुर साहब को सुनाने कौन जाएगा ! अब यह तो नहीं हो सकता कि उनके भाई द्वार पर आएं और मैं उनकी बात तक न पूछूं। वह अपने मन में क्या कहेंगे ! जाकर बुला ला और दीवानखाने में बिठला। मैं आती हूँ।
लौंडी : किसी ने पूछा तो मैं कह दूंगी, अपने बाल न नुचवाऊँगी।
राजेश्वरी : तेरा सिर देखने से तो यही मालूम होता है कि एक नहीं कई बार बाल नुच चुके हैं। मेरी खातिर से एक बार और नुचवा लेना । यह लो, इससे बालों के बढ़ाने की दवा ले लेना।
लौंडी चली जाती है।
राजेश्वरी : (मन में) इनके आने का क्या प्रयोजन है ? कहीं उन्होंने जाकर इन्हें कुछ कहा-सुना तो नहीं ? आप ही मालूम हो जाएगी। अब मेरा दांव आया है। ईश्वर मेरे सहायक हैं । मैं किसी भांति आप ही इनसे मिलना चाहती थी। वह स्वयं आ गए। (आईने में सूरत देखकर) इस वक्त किसी बनाव चुनाव की जरूरत नहीं, यह अलसाई मतवाली आंखें सोलहों सिंगार के बराबर हैं। क्या जानें किस स्वभाव का आदमी है। अभी तक विवाह नहीं किया है, पूजा-पाठ, पोथी-पत्रे में रात-दिन लिप्त रहता है। इस पर मंत्र चलना कठिन है। कठिन हो सकता है, पर असाध्य नहीं है। मैं तो कहती हूँ, कठिन भी नहीं है। आदमी कुछ खोकर तब सीखता है। जिसने खोया ही नहीं वह क्या सीखेगी। मैं सचमुच बड़ी अभागिन हूँ। भगवान् ने यह रूप दिया था। तो ऐसे पुरूष का संग क्यों दिया जो बिल्कुल दूसरों की मुट्ठी में था। ! यह उसी का फल है कि जिनके सज्जनों की मुझे पूजा करनी चाहिए थी, आज मैं उनके खून की प्यासी हो रही हूँ। क्यों न खून की प्यासी होऊँ ? देवता ही क्यों न हो, जब अपना सर्वनाश कर दे तो उसकी पूजा क्यों करूं ! यह दयावान हैं, धर्मात्मा हैं, गरीबों का हित करते हैं पर मेरा जीवन तो उन्होंने नष्ट कर दिया । दीन-दुनिया कहीं का न रखा। मेरे पीछे एक बेचारे भोले-भाले, सीधे-सादे आदमी के प्राणों के घातक हो गए। कितने सुख से जीवन कटता था।अपने घर में रानी बनी हुई थी। मोटा खाती थी, मोटा पहनती थी, पर गांव-भर में मरजाद तो थी। नहीं तो यहां इस तरह मुंह में कालिख लगाए चोरों की तरह पड़ी हूँ जैसे कोई कैदी कालकोठरी में बंद हो, आ गए कंचनसिंह, चलूं। (दीवानखाने में आकर) देवरजी को प्रणाम करती हूँ।

कंचन : (चकित होकर मन में) मैं न जानता था कि यह ऐसी सुंदरी रमणी है। रम्भा के चित्र से कितनी मिलती-जुलती है ! तभी तो भाई साहब लोट-पोट हो गए। वाणी कितनी मधुर है। (प्रकट) मैं बिना आज्ञा ही चला आया, इसके लिए क्षमा मांगता हूँ। सुना है भाई साहब का कड़ा हुक्म है कि यहां कोई न आने पाए।
राजेश्वरी : आपका घर है, आपके लिए क्या रोक-टोक ! मेरे लिए तो जैसे आपके भाई साहब, वैसे आपब मेरे धन्य भाग कि आप जैसे भक्त पुरूष के दर्शन हुए ।
कंचन : (असमंजस में पड़कर मन में) मैंने काम जितना सहज समझा था। उससे कहीं कठिन निकला। सौंदर्य कदाचित् बुद्वि-शक्तियों को हर लेता है। जितनी बातें सोचकर चला था। वह सब भूल गई, जैसे कोई नया पत्ता अखाड़े में उतरते ही अपने सारे दांव-पेंच भूल जाए। कैसै बात छेड़ू ? (प्रकट) आपको यह तो मालूम ही होगा कि भाई साहब आपके साथ कहीं बाहर जाना चाहते हैं ?
राजेश्वरी : (मुस्कराकर) जी हां, यह निश्चय हो चुका है।
कंचन : अब किसी तरह नहीं रूक सकता ?
राजेश्वरी : हम दोनों में से कोई एक बीमार हो जाए तो रूक सके
कंचन : ईश्वर न करें, ईश्वर न करें, पर मेरा आशय यह था। कि आप भाई साहब को रोकें तो अच्छा हो, वह एक बार घर से जाकर फिर मुश्किल से लौटेंगी। भाभी जी को जब से यह बात मालूम हुई है वह बार-बार भाई साहब के साथ चलने पर जिद कर रही हैं। अगर भैया छिपकर चले गए तो भाभी के प्राणों ही पर बन जाएगी।
राजेश्वरी : इसका तो मुझे भी भय है, क्योंकि मैंने सुना है, ज्ञानी देवी उनके बिना एक छन भी नहीं रह सकती। पर मैं भी तो आपके भैया ही के हुक्म की चेरी हूँ, जो कुछ वह कहेंगे उसे मानना पड़ेगा। मैं अपना देश, कुल, घर-बार छोड़कर केवल उनके प्रेम के सहारे यहां आई हूँ। मेरा यहां कौन है ? उस प्रेम का सुख उठाने से मैं अपने को कैसे रोकूं ? यह तो ऐसा ही होगा कि कोई भोजन बनाकर भूखों तड़पा करे, घर छाकर धूप में जलता रहै। मैं ज्ञानीदेवी से डाह नहीं करती, इतनी ओछी नहीं हूँ कि उनसे बराबरी करूं । लेकिन मैंने जो यह लोक-लाज, कुल-मरजाद तजा है वह किसलिए !
कंचन : इसका मेरे पास क्या जवाब है ?
राजेश्वरी : जवाब क्यों नहीं है, पर आप देना नहीं चाहते।
कंचन : दोनों एक ही बात है, भय केवल आपके नाराज होने का है।
राजेश्वरी : इससे आप निश्चिंत रहिए। जो प्रेम की आंच सह सकता है, उसके लिए और सभी बातें सहज हो जाती हैं।
कंचन : मैं इसके सिवा और कुछ न कहूँगा कि आप यहां से न जाएं।
राजेश्वरी : (कंचन की ओर तिरछी चितवनों से ताकते हुए) यह आपकी इच्छा है ?
कंचन : हां, यह मेरी प्रार्थना है। (मन में) दिल नहीं मानता, कहीं मुंह से कोई बात निकल न पड़े।
राजेश्वरी : चाहे वह रूठ ही जाएं ?
कंचन : नहीं-नहीं, अपने कौशल से उन्हें राजी कर लो।
राजेश्वरी : (मुस्कराकर) मुझमें यह गुण नहीं है।
कंचन : रमणियों में यह गुण बिल्ली के नखों की भांति छिपा रहता है। जब चाहें उसे काम में ला सकती हैं।
राजेश्वरी : उनसे आपके आने की चरचा तो करनी ही होगी।
कंचन : नहीं, हरगिज नहीं मैं तुम्हें ईश्वर की कसम दिलाता हूँ। भूलकर भी उनसे यह जिक्र न करना, नहीं तो मैं जहर खा लूंगा, फिर तुम्हें मुंह न दिखाऊँगा।
राजेश्वरी : (हंसकर) ऐसी धमकियों का तो प्रेम-बर्ताव में कुछ अर्थ नहीं होता, लेकिन मैं आपको उन आदमियों में नहीं समझती। मैं आपसे कहना नहीं चाहती थी, पर बात पड़ने पर कहना ही पड़ा कि मैं आपके सरल स्वभाव और आपकी निष्कपट बातों पर मोहित हो गई हूँ। आपके लिए मैं सब कष्ट सहने को तैयार हूँ। पर आपसे यही बिनती है कि मुझ पर कृपादृष्टि बनाए रखिएगा और कभी-कभी दर्शन देते रहिएगी।
राजेश्वरी गाती है।
क्या सो रहा मुसाफिर बीती है रैन सारी।
अब जाग के चलन की कर ले सभी तैयारी।
तुझको है दूर जाना, नहीं पास कुछ खजाना,
आगे नहीं ठिकाना होवे बड़ी खुआरी। (टेक)
पूंजी सभी गमाई, कुछ ना करी कमाई,
क्या लेके घर को जाई करजा किया है भारी।
क्या सो रहा।
कंचन चला जाता है। 

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रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
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पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

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तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

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छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

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सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

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संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

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दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
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समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

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तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

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चौथा दृश्य

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स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

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सातवाँ दृश्य

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समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

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आठवाँ दृश्य

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समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

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नवाँ दृश्य

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स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

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दसवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

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संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
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पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

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दूसरा दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

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छठा दृश्य

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स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

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सातवाँ दृश्य

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स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

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आठवाँ दृश्य

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स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

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नवाँ दृश्य

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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

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संग्राम (नाटक) अंक-4

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पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

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दूसरा दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

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चौथा दृश्य

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स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

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पाँचवाँ दृश्य

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स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

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सातवाँ दृश्य

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स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

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संग्राम (नाटक) अंक-5

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पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

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दूसरा दृश्य

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स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

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तीसरा दृश्य दृश्य

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स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

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चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

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पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

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छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
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स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

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