shabd-logo

पहला दृश्य

11 फरवरी 2022

160 बार देखा गया 160

प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों भी फूल रही है। शीत-बिंदु पौधों पर चमक रहे हैं।
हलधर : अब और कोई बाधा न पड़े तो अबकी उपज अच्छी होगी। कैसी मोटी-मोटी बालें निकल रही हैं।
राजेश्वरी : यह तुम्हारी कठिन तपस्या का फल है।
हलधर : मेरी तपस्या कभी इतनी सफल न हुई थी। यह सब तुम्हारे पौरे की बरकत है।
राजेश्वरी : अबकी से तुम एक मजूर रख लेना। अकेले हैरान हो जाते हो।
हलधर : खेत ही नहीं है। मिलें तो अकेले इसके दुगुने जोत सकता हूँ।
राजेश्वरी : मैं तो गाय जरूर लूंगी। गऊ के बिना घर सूना मालूम होता है।
हलधर : मैं पहले तुम्हारे लिए कंगन बनवाकर तब दूसरी बात करूंगा। महाजन से रूपये ले लूंगा। अनाज तौल दूंगा।
राजेश्वरी : कंगन की इतनी क्या जल्दी है कि महाजन से उधर लो।अभी पहले का भी तो कुछ देना है।
हलधर : जल्दी क्यों नहीं है। तुम्हारे मैके से बुलावा आएगा ही। किसी नए गहने बिना जाओगी तो तुम्हारे गांव-घर के लोग मुझे हंसेंगे कि नहीं ?
राजेश्वरी : तो तुम बुलावा फेर देना। मैं करज लेकर कंगन न बनवाऊँगी। हां, गाय पालना जरूरी है। किसान के घर गोरस न हो तो किसान कैसा तुम्हारे लिए दूध-रोटी का कलेवा लाया करूंगी। बड़ी गाय लेना, चाहे दाम कुछ बेशी देना पड़ जाए।
हलधर : तुम्हें और हलकान न होना पड़ेगा। अभी कुछ दिन आराम कर लो, फिर तो यह चक्की पीसनी ही है।
राजेश्वरी : खेलना-खाना भाग्य में लिखा होता तो सास-ससुर क्यों सिधार जाते ? मैं अभागिन हूँ। आते-ही-आते उन्हें चट कर गई। नारायण दें तो उनकी बरसी धूम से करना।
हलधर : हां, यह तो मैं पहले ही सोच चुका हूँ, पर तुम्हारा कंगन बनना भी जरूरी है। चार आदमी ताने देने लगेंगे तो क्या करोगी ?
राजेश्वरी : इसकी चिंता मत करो, मैं उनका जवाब दे लूंगी लेकिन मेरी तो जाने की इच्छा ही नहीं है। जाने और बहुएं कैसे मैके जाने को व्याकुल होती हैं, मेरा तो अब वहां एक दिन भी जी न लगेगी। अपना घर सबसे अच्छा लगता है। अबकी तुलसी का चौतरा जरूर बनवा देना, उसके आस-पास बेला, चमेली, गेंदा और गुलाब के फूल लगा दूंगी तो आंगन की शोभा कैसी बढ़ जाएगी!
हलधर : वह देखो, तोतों का झुंड मटर पर टूट पड़ा।
राजेश्वरी : मेरा भी जी एक तोता पालने को चाहता है। उसे पढ़ाया करूंगी।
हलधर गुलेल उठाकर तोतों की ओर चलाता है।
राजेश्वरी : छोड़ना मत, बस दिखाकर उड़ा दो।
हलधर : वह मारा ! एक फिर गया।
राजेश्वरी : राम-राम, यह तुमने क्या किया? चार दानों के पीछे उसकी जान ही ले ली। यह कौन-सी भलमनसी है ?
हलधर : (लज्जित होकर) मैंने जानकर नहीं मारा।
राजेश्वरी : अच्छा तो इसी दम गुलेल तोड़कर फेंक दो। मुझसे यह पाप नहीं देखा जाता। किसी पशु-पक्षी को तड़पते देखकर मेरे रोयें खड़े हो जाते हैं। मैंने तो दादा को एक बार बैल की पूंछ मरोड़ते देखा था, रोने लगी। तब दादा ने वचन दिया कि अब कभी बैलों को न मारूंगा। तब जाके चुप हुई मेरे गांव में सब लोग औंगी से बैलों को हांकते हैं। मेरे घर कोई मजूर भी औंगी नहीं चला सकता।
हलधर : आज से परन करता हूँ कि कभी किसी जानवर को न मारूंगा।
फत्तू मियां का प्रवेश।
फत्तू : हलधर, नजर नहीं लगाता, पर अबकी तुम्हारी खेती गांव भर से उसपर है। तुमने जो आम लगाए हैं वे भी खूब बौरे हैं।
हलधर : दादा, यह सब तुम्हारा आशीर्वाद है। खेती न लगती तो काका की बरसी कैसे होती ?
फत्तू : हां बेटा, भैया का काम दिल खोलकर करना।
हलधर : तुम्हें मालूम है दादा, चांदी का क्या भाव है। एक कंगन बनवाना था।
फत्तू : सुनता हूँ अब रूपये की रूपये-भर हो गई है। कितने की चांदी लोगे ?
हलधर : यही कोई चालीस-पैंतालीस रूपये की।
फत्तू : जब कहना चलकर ले दूंगा। हां, मेरा इरादा कटरे जाने का है। तुम भी चलो तो अच्छा। एक अच्छी भैंस लाना । गुड़ के रूपये तो अभी रखे होंगे न ?
हलधर : कहां दादा, वह सब तो कंचनसिंह को दे दिए । बीघे-भर भी तो न थी, कमाई भी अच्छी न हुई थी, नहीं तो क्या इतनी जल्दी पेल-पालकर छुट्टी पा जाता ?
फत्तू : महाजन से तो कभी गला ही नहीं छूटता।
हलधर : दो साल भी तो लगातार खेती नहीं जमती, गला कैसे छूटे!
फत्तू : यह घोड़े पर कौन आ रहा है ? कोई अफसर है क्या ?
हलधर : नहीं, ठाकुर साहब तो हैं। घोड़ा नहीं पहचानते ? ऐसे सच्चे पानी का घोड़ा दस-पांच कोस तक नहीं है।
फत्तू : सुना, एक हजार दाम लगते थे पर नहीं दिया ।
हलधर : अच्छा जानवर बड़े भागों से मिलता है। कोई कहता था। अबकी घुड़दौड़ में बाजी जीत गया। बड़ी-बड़ी दूर से घोड़े आए थे, पर कोई इसके सामने न ठहरा । कैसा शेर की तरह गर्दन उठा के चलता है।
फत्तू : ऐसे सरदार को ऐसा ही घोड़ा चाहिए । आदमी हो तो ऐसा हो, अल्लाह ने इतना कुछ दिया है, पर घमंड छू तक नहीं गया। एक बच्चा भी जाए तो उससे प्यार से बातें करते हैं। अबकी ताऊन के दिनों में इन्होंने दौड़-धूप न की होती तो सैकड़ों जानें जातीं ।
हलधर : अपनी जान को तो डरते ही नहीं इधर ही आ रहे हैं। सबेरे-सबेरे भले आदमी के दर्शन हुए।
फत्तू : उस जन्म के कोई महात्मा हैं, नहीं तो देखता हूँ जिसके पास चार पैसे हो गए वह यही सोचने लगता है कि किसे पीस के पी जाऊँ। एक बेगार भी नहीं लगती, नहीं तो पहले बेगार देते-देते धुर्रे उड़ जाते थे। इसी गरीबपरवर की बरकत है कि गांवों में न कोई कारिंदा है, न चपरासी, पर लगान नहीं रूकता। लोग मीयाद के पहले ही दे आते हैं। बहुत गांव देखे पर ऐसा ठाकुर नहीं देखा ।
सबलसिंह घोड़े पर आकर खड़ा हो जाता है। दोनों आदमी झुक-झुककर सलाम करते हैं। राजेश्वरी घूंघट निकाल लेती है।
सबल : कहो बड़े मियां, गांव में सब खैरियत है न ?
फत्तू : हुजूर के अकबाल से सब खैरियत है।
सबल : फिर वही बात । मेरे अकबाल को क्यों सराहते हो, यह क्यों नहीं कहते कि ईश्वर की दया से या अल्लाह के फजल से खैरियत है। अबकी खेती तो अच्छी दिखाई देती है ?
फत्तू : हां सरकार, अभी तक तो खुदा का फजल है।
सबल : बस, इसी तरह बातें किया करो। किसी आदमी की खुशामद मत करो, चाहे वह जिले का हाकिम ही क्यों न हो, हां, अभी किसी अफसर का दौरा तो नहीं हुआ ?
फत्तू : नहीं सरकार, अभी तक तो कोई नहीं आया।
सबल : और न शायद आएगी। लेकिन कोई आ भी जाए तो याद रखना, गांव से किसी तरह की बेगार न मिले। साफ कह देना, बिना जमींदार के हुक्म के हम लोग कुछ नहीं दे सकते। मुझसे जब कोई पूछेगा तो देख लूंगा। (मुस्कराकर) हलधर ! नया गौना लाए हो, हमारे घर बैना नहीं भेजा ?
हलधर : हुजूर, मैं किस लायक हूँ।
सबल : यह तो तुम तब कहते जब मैं तुमसे मोतीचूर के लड्डू या घी के खाजे मांगता। प्रेम से शीरे और सत्तू के लड्डू भेज देते तो मैं उसी को धन्य-भाग्य कहता। यह न समझो कि हम लोग सदा घी और मैदे खाया करते हैं। मुझे बाजरे की रोटियां और तिल के लड्डू और मटर के चबेना कभी-कभी हलवा और मुरब्बे से भी अच्छे लगते हैं। एक दिन मेरी दावत करो, मैं तुम्हारी नयी दुलहिन के हाथ का बनाया हुआ भोजन करना चाहता हूँ। देखें यह मैके से क्या गुन सीख कर आई है। मगर खाना बिल्कुल किसानों का-सा हो, अमीरों का खाना बनवाने की फिक्रमत करना।
हलधर : हम लोगों के लिट्टे सरकार को पसंद आएंगे ?
सबल : हां, बहुत पसंद आएंगे।
हलधर : जब हुक्म हो,
सबल : मेहमान के हुक्म से दावत नहीं होती। खिलाने वाला अपनी मर्जी से तारीख और वक्त ठीक करता है। जिस दिन कहो, आऊँ। फत्तू, तुम बतलाओ, इसकी बहू काम-काज में चतुर है न ? जबान की तेज तो नहीं है ?
फत्तू : हुजूर, मुंह पर क्या बखान करूं, ऐसी मेहनतिन औरत गांव में और नहीं है। खेती का तार-तौर जितना यह समझती है उतना हलधर भी नहीं समझता। सुशील ऐसी है कि यहां आए आठवां महीना होता है, किसी पड़ोसी ने आवाज नहीं सुनी।
सबल : अच्छा तो मैं अब चलूंगा, जरा मुझे सीधे रास्ते पर लगा दो, नहीं तो यह जानवर खेतों को रौंद डालेगा। तुम्हारे गांव से मुझे साल में पंद्रह सौ रूपये मिलते हैं। इसने एक महीने में पांच हजार रूपये की बाजी मारी। हलधर, दावत की बात भूल न जाना।
फत्तू और सबलसिंह जाते हैं।
राजेश्वरी : आदमी काहे को है, देवता हैं। मेरा तो जी चाहता था। उनकी बातें सुना करूं। जी ही नहीं भरता था।एक हमारे गांव का जमींदार है कि प्रजा को चैन नहीं लेने देता। नित्य एक-न -एक बेगार, कभी बेदखली, कभी जागा, कभी कुड़की, उसके सिपाहियों के मारे छप्पर पर कुम्हड़े-कद्दू तक नहीं बचने पाते। औरतों को राह चलते छेड़ते हैं। लोग रात-दिन मनाया करते हैं कि इसकी मिट्टी उठे। अपनी सवारी के लिए हाथी लाता है, उसका दाम असामियों से वसूल करता है। हाकिमों की दावत करता है, सामान गांव वालों से लेता है।
हलधर : दावत सचमुच करूं कि दिल्लगी करते थे ?
राजेश्वरी : दिल्लगी नहीं करते थे, दावत करनी होगी। देखा नहीं, चलते-चलते कह गए। खाएंगे तो क्या, बड़े आदमी छोटों का मान रखने के लिए ऐसी बातें किया करते हैं, पर आएंगे जरूर।
हलधर : उनके खाने लायक भला हमारे यहां क्या बनेगा ?
राजेश्वरी : तुम्हारे घर वह अमीरी खाना खाने थोड़े ही आएंगी। पूरी-मिठाई तो नित्य ही खाते हैं। मैं तो कुटे हुए जौ की रोटी, सावां की महेर, बथुवे का साफ, मटर की मसालेदार दाल और दो-तीन तरह की तरकारी बनाऊँगी। लेकिन मेरा बनाया खाएंगे ? ठाकुर हैं न ?
हलधर : खाने-पीने का इनको कोई विचार नहीं है। जो चाहे बना दे। यही बात इनमें बुरी है। सुना है अंग्रेजों के साथ कलपघर में बैठकर खाते हैं।
राजेश्वरी : ईसाई मत में आ गए ?
हलधर : नहीं, असनान, ध्यान सब करते हैं। गऊ को कौरा दिए बिना कौर नहीं उठाते। कथा-पुराण सुनते हैं। लेकिन खाने-पीने में भ्रष्ट हो गए हैं।
राजेश्वरी : उह, होगा, हमें कौन उनके साथ बैठकर खाना है। किसी दिन बुलावा भेज देना । उनके मन की बात रह जाएगी।
हलधर : खूब मन लगा के बनाना।
राजेश्वरी : जितना सहूर है उतना करूंगी। जब वह इतने प्रेम से भोजन करने आएंगे तो कोई बात उठा थोड़े ही रखूंगी। बस, इसी एकादशी को बुला भेजो, अभी पांच दिन हैं।
हलधर : चलो, पहले घर की सगाई तो कर डालें। 

37
रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
1

पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
5
0
0

प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

2

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

3

तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

4

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

5

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

6

छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

7

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

8

संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
1
0
0

पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

9

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

10

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

11

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

12

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

13

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

14

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

15

आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

16

नवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

17

दसवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

18

संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

19

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

20

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

21

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

22

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

23

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

24

आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

25

नवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

26

संग्राम (नाटक) अंक-4

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

27

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

28

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

29

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

30

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

31

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

32

संग्राम (नाटक) अंक-5

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

33

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

34

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

35

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

36

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

37

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए