shabd-logo

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022

45 बार देखा गया 45

स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल।
समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ।
चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं।
सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया है न ?
चपरासी : जी हां, अभी सब-की-सब घरवालों को खाना खिलाकर आई जाती हैं।
सबल : तो इस बरामदे में एक पर्दा डाल दो। स्त्रियों को पर्दे के अंदर बिठाना। घास-चारे, दूध-लकड़ी आदि का प्रबंध हो गया न ?
चपरासी : हुजूर, सभी चीजों का ढेर लगा हुआ है। जब यह चीजें बेगार में ली जाती थीं तब एक-एक मुट्ठी घास के लिए गाली और मार से काम लेना पड़ता था।हुजूर ने बेगार बंद करके सारे गांव को बिन दामों गुलाम बना लिया है। किसी ने भी दाम लेना मंजूर नहीं किया। सब यही कहते हैं कि सरकार हमारे मेहमान हैं। धन्य-भाग ! जब तक चाहें सिर और आंखों पर रहैं। हम खिदमत के लिए दिलोजान से हाजिर हैं। दूध तो इतना आ गया है कि शहर में चार रूपये को भी न मिलता।
सबल : यह सब एहसान की बरकत है। जब मैंने बेगार बंद करने का प्रस्ताव किया तो तुम लोग, यहां तक कि कंचनसिंह भी, सभी मुझे डराते थे।सबको भय था। कि असामी शोख हो जाएंगे, सिर पर चढ़ जाएंगी। लेकिन मैं जानता था। कि एहसान का नतीजा कभी बुरा नहीं होता। अच्छा, महराज से कहो कि मेरा भोजन भी जल्द बना देंब
चपरासी चला जाता है।
सबल : (मन में) बेगार बंद करके मैंने गांव वालों को अपना भक्त बना लिया। बेगार खुली रहती तो कभी-न-कभी राजेश्वरी को भी बेगार करनी ही पड़ती, मेरे आदमी जाकर उसे दिक करते। अब यह नौबत कभी न आएगी। शोक यही है कि यह काम मैंने नेक इरादों से नहीं किया, इसमें मेरा स्वार्थ छिपा हुआ है। लेकिन अभी तक मैं निश्चय नहीं कर सका कि इसका अंत क्या होगा? राजेश्वरी के उद्वार करने का विचार तो केवल भ्रांत है। मैं उसकी अनुपम रूप-छटा, उसके सरल व्यवहार और उसके निर्दोष अंग-विन्यास पर आसक्त हूँ। इसमें रत्ती-भर भी संदेह नहीं है। मैं कामवासना की चपेट में आ गया हूँ और किसी तरह मुक्त नहीं हो सकता। खूब जानता हूँ कि यह महाघोर पाप है ! आश्चर्य होता है कि इतना संयमशील होकर भी मैं इसके दांव में कैसे आ पड़ा। ज्ञानी को अगर जरा भी संदेह हो जाय तो वह तो तुरंत विष खा ले। लेकिन अब परिस्थिति पर हाथ मलना व्यर्थ है। यह विचार करना चाहिए कि इसका अंत क्या होगा? मान लिया कि मेरी चालें सीधी पड़ती गई और वह मेरा कलमा पढ़ने लगी तो? कलुषित प्रेम ! पापाभिनय ! भगवन् ! उस घोर नारकीय अग्निकुंड में मुझे मत डालना। मैं अपने मुख को और उस सरलह्रदय बालिका की आत्मा को इस कालिमा से वेष्ठित नहीं करना चाहता। मैं उससे केवल पवित्र प्रेम करना चाहता हूँ, उसकी मीठी-मीठी बातें सुनना चाहता हूँ, उसकी मधुर मुस्कान की छटा देखना चाहता हूँ, और कलुषित प्रेम क्या हैजो हो, अब तो नाव नदी में डाल दी है, कहीं-न-कहीं पार लगेगी ही। कहां ठिकाने लगेगी ? सर्वनाश के घाट पर ? हां, मेरा सर्वनाश इसी बहाने होगी। यह पाप?पिशाच मेरे कुल का भक्षण कर जाएगी। ओह ! यह निर्मूल शंकाएं हैं। संसार में एक-से-एक कुकर्मी व्यभिचारी पड़े हुए हैं, उनका सर्वनाश नहीं होता। कितनों ही को मैं जानता हूँ जो विषय-भोग में लिप्त हो रहे हैं। ज्यादा-से-ज्यादा उन्हें यह दंड मिलता है कि जनता कहती है, बिगड़ गया, कुल में दाफजलगा दिया । लेकिन उनकी मान-प्रतिष्ठा में जरा भी अंतर नहीं पड़ता। यह पाप मुझे करना पड़ेगा। कदाचित मेरे भाग्य में यह बदा हुआ है। हरि इच्छा। हां, इसका प्रायश्चित करने में कोई कसर न रखूंगी। दान, व्रत, धर्म, सेवा इनके पर्दे में मेरा अभिनय होगी। दान, व्रत, परोपकार, सेवा ये सब मिलकर कपट-प्रेम की कालिमा को नहीं धो सकते। अरे, लोग अभी से तमाशा देखने आने लगे। खैर, आने दूं। भोजन में देर हो जाएगी। कोई चिंता नहीं बारह बजे सब गिल्म खत्म हो जाएंगी। चलूं सबको बैठाऊँ। (प्रकट) तुम लोग यहां आकर फर्श पर बैठो, स्त्रियां पर्दे में चली जाएं। (मन में) है, वह भी है ! कैसा सुंदर अंग-विन्यास है ! आज गुलाबी साड़ी पहने हुए है। अच्छा, अब की तो कई आभूषण भी हैं। गहनों से उसके शरीर की शोभा ऐसी बढ़ गई है मानो वृक्ष में फूल लगे हों।
दर्शक यथास्थान बैठ जाते हैं, सबलसिंह चित्रों को दिखाना शुरू करते हैं।
पहला चित्र : कई किसानों का रेलगाड़ी में सवार होने के लिए धक्कम-धक्का करना, बैठने का स्थान न मिलना, गाड़ी में खड़े रहना, एक कुली को जगह के लिए घूस देना, उसका इनको एक मालगाड़ी में बैठा देना। एक स्त्री का छूट जाना और रोना। गार्ड का गाड़ी को न रोकना।
हलधर : बेचारी की कैसी दुर्गति हो रही है। लो, लात-घूंसे चलने लगे। सब मार खा रहे हैं।
फत्तू : यहां भी घूस दिए बिना नहीं चलता। किराया दिया, घूस उसपर सेब लात-घूंसे खाए उसकी कोई गिनती नहीं बड़ा अंधेर है। रूपये बड़े जतन से रखे हुए हैं। कैसा जल्दी निकाल रहा है कि कहीं गाड़ी न खुल जाए।
राजेश्वरी : (सलोनी से) हाय-हाय, बेचारी छूट गई ! गोद में लड़का भी है। गाड़ी नहीं रूकी। सब बड़े निर्दयी हैं। हाय भगवन्, उसका क्या हाल होगा?
सलोनी : एक बेर इसी तरह मैं भी छूट गई थी। हरदुआर जाती थी।
राजेश्वरी : ऐसी गाड़ी पर कभी न सवार हो, पुण्य तो आगे-पीछे मिलेगा, यह विपत्ति अभी से सिर पर आ पड़ीब
दूसरा चित्र : गांव का पटवारी खाट पर बस्ता खोले बैठा है। कई किसान आस-पास खड़े हैं। पटवारी सभी से सालाना नजर वसूल कर रहा है।
हलधर : लाला का पेट तो फूलके कुप्पा हो गया है। चुटिया इतनी बड़ी है जैसे बैल की पगहिया।
फत्तू : इतने आदमी खड़े गिड़गिड़ा रहे हैं, पर सिर नहीं उठाते, मानो कहीं के राजा हैं ! अच्छा, पेट पर हाथ धरकर लोट गया। पेट अगर रहा है, बैठा नहीं जाता। चुटकी बजाकर दिखाता है कि भेंट लाओ। देखो, एक किसान कमर से रूपया निकालता है। मालूम होता है, बीमार रहा है, बदन पर मिरजई भी नहीं है। चाहे तो छाती के हाड़ गिन लो।वाह, मुंशीजी ! रूपया फेंक दिया, मुंह फेर लिया, अब बात न करेंगी। जैसे बंदरिया रूठ जाती है और बंदर की ओर पीठ फेरकर बैठ जाती है।
बेचारा किसान कैसे हाथ जोड़कर मना रहा है, पेट दिखाकर कहता है, भोजन का ठिकाना नहीं, लेकिन लाला साहब कब सुनते हैं।
हलधर : बड़ी गलाकाटू जात है।
फत्तू : जानता है कि चाहे बना दूं, चाहे बिगाड़ दूं। यह सब हमारी ही दशा तो दिखाई जा रही है।
तीसरा चित्र : थानेदार साहब गांव में एक खाट पर बैठे हैं।
चोरी के माल की तगतीश कर रहे हैं। कई कांस्टेबल वर्दी पहने हुए खड़े हैं। घरों में खानातलाशी हो रही है। घर की
सब चीजें देखी जा रही हैं। जो चीज जिसको पसंद आती है, उठा लेता है। औरतों के बदन पर के गहने भी उतरवा लिए
जाते हैं।
फत्तू : इन जालिमों से खुदा बचाए।
एक किसान : आए हैं अपने पेट भरनेब बहाना कर दिया कि चोरी के माल का पता लगाने आए हैं।
फत्तू : अल्लाह मियां का कहर भी इन पर नहीं गिरता। देखो बेचारों की खानातलाशी हो रही है।
हलधर : खानातलाशी काहे की है, लूट है। उस पर लोग कहते हैं कि पुलिस तुम्हारे जान?माल की रक्षा करती है।
फत्तू : इसके घर में कुछ नहीं निकला।
हलधर : यह दूसरा घर किसी मालदार किसान का है। देखो हांडी
में सोने का कंठा रखा हुआ है। गोप भी है। महतो इसे पहनकर नेवता खाने जाते होंगे।चौकीदार ने उड़ा लिया। देखो, औरतें आंगन में खड़ी की गई हैं। उनके गहने उतारने को कह रहा है।
फत्तू : बेचारा महतो थानेदार के पैरों पर फिर रहा है और अंजुली भर रूपये लिए खड़ा है।
राजेश्वरी : (सलोनी से) पुलिसवाले जिसकी इज्जत चाहें ले लें।
सलोनी : हां, देखते तो साठ बरस हो गए। इनके उसपर तो जैसे कोई है ही नहीं
राजेश्वरी : रूपये ले लिए, बेचारियों की जान बचीब मैं तो इन सभी के सामने कभी न खड़ी हो सयं चाहे कोई मार ही डाले।
सलोनी : तस्वीरें न जाने कैसे चलती हैं।
राजेश्वरी : कोई कल होगी और क्या !
हलधर : अब तमाशा बंद हो रहा है।
एक किसान : आधी रात भी हो गई। सबेरे ऊख काटनी है।
सबल : आज तमाशा बंद होता है। कल तुम लोगों को और भी अच्छे?अच्छे चित्र दिखाए जाएंगे, जिससे तुम्हें मालूम होगा कि बीमारी से अपनी रक्षा कैसे की जा सकती है। घरों की और गांवों की सगाई कैसे होनी चाहिए, कोई बीमार पड़ जाए तो उसकी देख?रेख कैसे करनी चाहिए । किसी के घर में आगजलग जाए तो उसे कैसे बुझाना चाहिए । मुझे आशा है कि आज की तरह तुम लोग कल भी आओगी।
सब लोग चले जाते हैं। 

37
रचनाएँ
संग्राम (नाटक)
0.0
प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। अमरकथा शिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने इस नाटक में किसानों के संघर्ष का बहुत ही सजीव चित्रण किया है। इस नाटक में लेखक ने पाठकों का ध्यान किसान की उन कुरीतियों और फिजूल-खर्चियों की ओर भी दिलाने की कोशिश की है जिसके कारण वह सदा ही कर्जे के बोझ से दबा रहता है। और जमींदार और साहूकार से लिए गए कर्जे का सूद चुकाने के लिए उसे अपनी फसल मजबूर होकर औने-पौने बेचनी पड़ती है।... मुंशी प्रेमचन्द द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट!
1

पहला दृश्य

11 फरवरी 2022
5
0
0

प्रभात का समय। सूर्य की सुनहरी किरणें खेतों और वृक्षों पर पड़ रही हैं। वृक्षपुंजों में पक्षियों का कलरव हो रहा है। बसंत ऋतु है। नई-नई कोपलें निकल रही हैं। खेतों में हरियाली छाई हुई है। कहीं-कहीं सरसों

2

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

सबलसिंह अपने सजे हुए दीवानखाने में उदास बैठे हैं। हाथ में एक समाचार-पत्र है, पर उनकी आंखें दरवाजे के सामने बाग की तरफ लगी हुई हैं। सबलसिंह : (आप-ही-आप) देहात में पंचायतों का होना जरूरी है। सरकारी अदा

3

तीसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय: आठ बजे दिन। स्थान: सबलसिंह का मकान। कंचनसिंह अपनी सजी हुई बैठक में दुशाला ओढ़े, आंखों पर सुनहरी ऐनक चढ़ाए मसनद लगाए बैठे हैं, मुनीमजी बही में कुछ लिख रहे हैं। कंचन : समस्या यह है कि सूद की दर क

4

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। सबलसिंह का चौपाल। समय : आठ बजे रात। फाल्गुन का आरंभ। चपरासी : हुजूर, गांव में सबसे कह आया है। लोग जादू के तमाशे की खबर सुनकर उत्सुक हो रहे हैं। सबल : स्त्रियों को भी बुलावा दे दिया ह

5

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

प्रात: काल का समय। राजेश्वरी अपनी गाय को रेवड़ में ले जा रही है। सबलसिंह से मुठभेड़। सबल : आज तीन दिन से मेरे चंद्रमा बहुत बलवान हैं। रोज एक बार तुम्हारे दर्शन हो जाते हैं। मगर आज मैं केवल देवी के दर

6

छठा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन गांव। समय : गागुन का अंत, तीसरा पहर, गांव के लोग बैठे बातें कर रहे हैं। एक किसान : बेगार तो सब बंद हो गई थी। अब यह दहलाई की बेगार क्यों मांगी जाती है ? फत्तू : जमींदार की मर्जी। उसी न

7

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

समय: संध्या। स्थान: मधुबन। ओले पड़ गए हैं। गांव के स्त्री-पुरूष खेतों में जमा हैं। फत्तू: अल्लाह ने परसी?-परसायी थाली छीन ली। हलधर: बना-बनाया खेल बिगड़ गया। फत्तू : छावत लागत छह बरस और छिन में होत

8

संग्राम (नाटक) अंक-2

11 फरवरी 2022
1
0
0

पहला दृश्य स्थान : चेतनदास की कुटी, गंगातट। समय : संध्या। सबल : महाराज, मनोवृत्तियों के दमन करने का सबसे सरल उपाय क्या है ? चेतनदास : उपाय बहुत हैं, किंतु मैं मनोवृत्तियों के दमन करने का उपदेश नही

9

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : संध्या। स्थान : सबलसिंह की बैठक। सबल : (आप-ही-आप) मैं चेतनदास को धूर्त समझता था।, पर यह तो ज्ञानी महात्मा निकले। कितना तेज और शौर्य है ! ज्ञानी उनके दर्शनों को लालायित है। क्या हर्ज है ! ऐसे आ

10

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

स्थान : मधुबन गांव। समय : बैशाख, प्रात: काल। फत्तू : पांचों आदमियों पर डिगरी हो गई। अब ठाकुर साहब जब चाहें उनके बैल-बधिये नीलाम करा लें। एक किसान : ऐसे निर्दयी तो नहीं हैं। इसका मतलब कुछ और ही है।

11

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : हलधर का घर, राजेश्वरी और सलोनी आंगन में लेटी हुई हैं। समय : आधी रात। राजेश्वरी : (मन में) आज उन्हें गए दस दिन हो गए। मंगल-मंगल आठ, बुध नौ, वृहस्पत दस। कुछ खबर नहीं मिली, न कोई चिट्ठी न पत्तर

12

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : सबलसिंह का दीवानखाना, खस की टक्रियां लगी हुई, पंखा चल रहा है। सबल शीतलपाटी पर लेटे हुए डेमोक्रेसी नामक ग्रंथ पढ़ रहे हैं, द्वार पर एक दरबान बैठा झपकियां ले रहा है। समय : दोपहर, मध्यान्ह की प्

13

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

सबलसिंह का भवन। गुलाबी और ज्ञानी फर्श पर बैठी हुई हैं। बाबा चेतनदास गालीचे पर मसनद लगाए लेटे हुए हैं। रात के आठ बजे हैं। गुलाबी : आज महात्माजी ने बहुत दिनों के बाद दर्शन दिए । ज्ञानी : मैंने समझा था

14

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : प्रात: काल, ज्येष्ठ। स्थान : गंगा का तट। राजेश्वरी एक सजे हुए कमरे में मसनद लगाए बैठी है। दो-तीन लौंडियां इधर-उधर दौड़कर काम कर रही हैं। सबलसिंह का प्रवेश। सबल : अगर मुझे उषा का चित्र खींचना ह

15

आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

समय : संध्या, जेठ का महीना। स्थान : मधुबन। कई आदमी फत्तू के द्वार पर खड़े हैं। मंगई : फत्तू, तुमने बहुत चक्कर लगाया, सारा संसार छान डाला। सलोनी : बेटा, तुम न होते तो हलधर का पता लगना मुसकिल था। हर

16

नवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुवन, हलधर का मकान, गांव के लोग जमा हैं। समय : ज्येष्ठ की संध्या। हलधर : (बाल बढ़े हुए, दुर्बल, मलिन मुख) फत्तू काका, तुमने मुझे नाहक छुड़ाया, वहीं क्यों न घुलने दिया । अगर मुझे मालूम होता

17

दसवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : गुलाबी का घर। समय : प्रात: काल। गुलाबी : जो काम करन बैठती है उसी की हो रहती है। मैंने घर में झाडू लगाई, पूजा के बासन धोए, तोते को चारा खिलाया, गाय खोली, उसका गोबर उठाया, और यह महारानी अभी पा

18

संग्राम (नाटक) अंक-3

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान : कंचनसिंह का कमरा। समय : दोपहर, खस की टट्टी लगी हुई है, कंचनसिंह सीतलपाटी बिछाकर लेटे हुए हैं, पंखा चल रहा है। कंचन : (आप-ही-आप) भाई साहब में तो यह आदत कभी नहीं थी। इसमें अब लेश-म

19

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : राजेश्वरी का सजा हुआ कमरा। समय : दोपहर। लौंडी : बाईजी, कोई नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : (नींद से चौंककर) क्या कहा - ', आग जली है ? लौंडी : नौज, कोई आदमी नीचे पुकार रहा है। राजेश्वरी : प

20

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : सबलसिंह का घर। सबलसिंह बगीचे में हौज के किनारे मसहरी के अंदर लेटे हुए हैं। समय : ग्यारह बजे रात। सबल : (आप-ही-आप) आज मुझे उसके बर्ताव में कुछ रूखाई-सी मालूम होती थी। मेरा बहम नहीं है, मैंने

21

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। समय : नौ बजे रात, बादल घिरा हुआ है, एक वृक्ष के नीचे बाबा चेतनदास मृगछाले पर बैठे हुए हैं। फत्तू, मंगई, हरदास आदि धूनी से जरा हट कर बैठे हैं। चेतनदास : संसार कपटमय है। किसी प्राणी का

22

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : शहर वाला किराये का मकान। समय : आधी रात। कंचनसिंह और राजेश्वरी बातें कर रहे हैं। राजेश्वरी : देवरजी, मैंने प्रेम के लिए अपना सर्वस्व लगा दिया । पर जिस प्रेम की आशा थी वह नहीं मयस्सर हुआ। मैंन

23

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : दीवानखाना। समय : तीन बजे रात। घटा छायी हुई है। सबलसिंह तलवार हाथ में लिये द्वार पर खड़े हैं। सबल : (मन में) अब सो गया होगा। मगर नहीं, आज उसकी आंखों में नींद कहां ! पड़ा-पड़ा प्रेमाग्नि में ज

24

आठवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : नदी का किनारा। समय : चार बजे भोर, कंचन पूजा की सामग्री लिए आता है और एक तख्त पर बैठ जाता है, फिटन घाट के उसपर ही रूक जाती है। कंचन : (मन में) यह जीवन का अंत है ! यह बड़े-बड़े इरादों और मनसूब

25

नवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : गुलाबी का मकान। समय : संध्या, चिराग जल चुके हैं, गुलाबी संदूक से रूपये निकाल रही है। गुलाबी : भाग जाग जाएंगे। स्वामीजी के प्रताप से यह सब रूपये दूने हो जाएंगे। पूरे तीन सौ रूपये हैं। लौटूंगी

26

संग्राम (नाटक) अंक-4

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान: मधुबन। थानेदार, इंस्पेक्टर और कई सिपाहियों का प्रवेश। इंस्पेक्टर : एक हजार की रकम एक चीज होती है। थानेदार : बेशक ! इंस्पेक्टर : और करना कुछ नहीं दो-चार शहादतें बनाकर खाना तलाशी क

27

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: सबलसिंह का कमरा। समय: दस बजे दिन। सबल : (घड़ी की तरफ देखकर) दस बज गए। हलधर ने अपना काम पूरा कर लिया। वह नौ बजे तक गंगा से लौट आते थे।कभी इतनी देर न होती थी। अब राजेश्वरी फिर मेरी हुई चाहे ओढू

28

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: स्वामी चेतनदास की कुटी। समय: संध्या। चेतनदास : (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे कांटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था। उस

29

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: राजेश्वरी का मकान। समय: दस बजे रात। राजेश्वरी : (मन में) मेरे ही लिए जीवन का निर्वाह करना क्यों इतना कठिन हो रहा है ? संसार में इतने आदमी पड़े हुए हैं। सब अपने-अपने धंधों में लगे हुए हैं। मैं

30

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: गंगा के करार पर एक बड़ा पुराना मकान। समय: बारह बजे रात, हलधर और उसके साथी डाकू बैठे हुए हैं। हलधर : अब समय आ गया, मुझे चलना चाहिए । एक डाकू रंगी : हम लोग भी तैयार हो जाएं न ? शिकारी आदमी है,

31

सातवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान: सबलसिंह का मकान। समय: ढाई बजे रात। सबलसिंह अपने बाग में हौज के किनारे बैठे हुए हैं। सबल : (मन में) इस जिंदगी पर धिक्कार है। चारों तरफ अंधेरा है, कहीं प्रकाश की झलक तक नहीं सारे मनसूबे, सारे इ

32

संग्राम (नाटक) अंक-5

11 फरवरी 2022
0
0
0

पहला दृश्य स्थान : डाकुओं का मकान। समय : ढाई बजे रात। हलधर डाकुओं के मकान के सामने बैठा हुआ है। हलधर : (मन में) दोनों भाई कैसे टूटकर गले मिले हैं। मैं न जानता था। कि बड़े आदमियों में भाई-भाई में भी

33

दूसरा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : शहर की एक गली। समय : तीन बजे रात, इंस्पेक्टर और थानेदार की चेतनदास से मुठभेड़। इंस्पेक्टर : महाराज, खूब मिले। मैं तो आपके ही दौलतखाने की तरफ जा रहा था।लाइए दूध के धुले हुए पूरे एक हजार, कमी

34

तीसरा दृश्य दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : राजेश्वरी का कमरा। समय : तीन बजे रात। फानूस जल रही है, राजेश्वरी पानदान खोले फर्श पर बैठी है। राजेश्वरी : (मन में) मेरे मन की सारी अभिलाषाएं पूरी हो गयीं। जो प्रण करके घर से निकली थी वह पूरा

35

चौथा दृश्य

11 फरवरी 2022
1
0
0

स्थान : गुलाबी का मकान। समय : दस बजे रातब गुलाबी : अब किसके बल पर कूदूं। पास जो जमापूंजी थी वह निकल गई। तीन-चार दिन के अन्दर क्या-से-क्या हो गया। बना-बनाया घर उजड़ गया। जो राजा थे वह रंक हो गए। जि

36

पाँचवाँ दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : स्वामी चेतनदास की कुटी समय : रात, चेतनदास गंगा तट पर बैठे हैं। चेतनदास : (आप-ही-आप) मैं हत्यारा हूँ, पापी हूँ, धूर्त हूँ। मैंने सरल प्राणियों को ठगने के लिए यह भेष बनाया है। मैंने इसीलिए योग

37

छठा दृश्य

11 फरवरी 2022
0
0
0

स्थान : मधुबन। समय : सावन का महीना, पूजा-उत्सव, ब्रह्मभोज, राजेश्वरी और सलोनी गांव की अन्य स्त्रियों के साथ गहने-कपड़े पहने पूजा करने जा रही हैं गीत जय जगदीश्वरी मात सरस्वती, सरनागत प्रतिपालनहारी।

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए