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आत्मकथा

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सर्दी की वो रात जब बैठे-बैठे भोर हो गयी।सोच बस यही की– "आखिर कौन है वो"। पेड़ों पर बैठे विहग के तरह उनको निहारते ही रहे जब उनकी पहली तस्वीर मेरे नैनों के सामने आई। नीली साड़ी में अपने होठों पर प्या

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क्या बताएं हमें क्या- क्या दिखाया है ज़िन्दगी ने।कसम से बहुत ही जादा तड़पाया है ज़िन्दगी ने।जिन गलत रास्तों से दूर रहना चाहते थे हम।उन्हीं रास्तों में बार बार चलाया है ज़िन्दगी ने।।जो ना करने को जमाने को

नमस्कार मित्रो। आज 31अगस्त 2022 को मैं प्रमोद अवस्थी आप सभी के बीच इस सम्मानित मंच के माध्यम से उपस्थित हूं। कहते है कि व्यक्ति को कभी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि असफलताएं ही हमे सिखाती है कि हमारे प

ऐक किताब ऐक किताब का पना ही सही ओर कुछ है ही नही 

माँ सूरज की पहली "किरण" हो तुम... कड़ी धूप में घनी "छाँव" हो तुम... ममता की जीवित "मूरत" हो तुम... आँखों से झलकाती "प्यार" हो तुम... जग में सबसे "प्यारी" हो तुम... प्यार का बह

बात है सन 2016 की मैं और अवि वह अपनी सहेलियों के साथ घर जा रही थी और मैं उनके पीछे पीछे थोड़ी दूर चलने के बाद बारिश शुरू हो गई और हम सब ने उस पाक के बने दरवाजे की छत का सहारा लिया और इसके नीचे खड़े हो

 (1)             मै हार मे भी जीत का आनंद ले रहा हूँ             मै कॉटो मे भी फूलों की सुगंध ले रहा हूँ     

बेटियां नसीब से तोबेटे दुआओं के बाद आते हैं, अजी हम लड़के है जनाबहम कुछ जिम्मेदारियो के साथ आते है।आधी उम्र जिम्मेदारियांसमझने में गुजर जाती हैतो आधी उसे निभाने में,पूरा बचपन किताबो मेंगुजर जाता है तो

(1)  कहां-कहां ना भटका मैं एक हसीन शाम की खा़तिर        जैसे भटका था भरत कभी अपने राम की खातिर        एक वो ना मिला मुझे अरे वाह री ऐ तक़दीर मेरी

राहतों की नींद-औ-सुकून मेरे सफर में कहाँतुझे पा लूँ दो घड़ी ही को मेरे मुकद्दर में कहाँमुझे उलझा के ही गया है इश्क़ का धागा औरजा के तेरी ही गली में खोजू मेरा घर है कहाँहर आते जाते अजनबी काफ़िले का हिस्सा

हाल गर्दिश के सितारों सा हैदिल उलझें हुए तारों सा हैइक तरफ सांस बोझिल है मिरी दूसरी तरफ बेफिक्र आवारों सा हैउनकी हवाओं का रुख ना करवो शहर इश्क़ के मारो का हैकिसकी बनी है जो तू बना लेगाइश्क़ उतरते-च

हमें जिंदगी की हसरतें कम ही चाहिएख़ुशी को ख़ुशी नहीं इन्हें गम ही चाहिएतेरे रूखे मिजाजों से तंग हैं ऐ जिंदगीतू जो भी अंदाज दे मगर नरम ही चाहिएतेरी गर्दिशों की धूल से लिपटा हूँ ऐसेमेरे आईने को भी मेरी आँ

सखि, न्याय की चाल कितनी धीमी है , यह आज मुझे प्रत्यक्ष अनुभव हुआ । मैं सन 2009 से 2012 की अवधि में जिला रसद अधिकारी , अजमेर के पद पर,पदस्थापित रहा था । इस अवधि में राजस्थान सरकार ने "शुद्ध के लिए

मेरा पहला प्यार वो आँचल तेरा"ये मौसम ये बादल और ये बूँदों के मेले, कितना अनोखा सा है न इनका मिलन" होस्टल के कमरे की जाली लगी खिड़की के पार देखता हुआ रोहित बोला।कमरे में हल्की रोशनी थी, शाम का वक़्त और ब

बस एक छोटी सी प्रेम कहानी, शायद आपकी और मेरी प्रेम कहानी जैसी,,,,

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आज रीट का इम्तेहान है हम दोस्त खुश है पर मेरी खुशी अलग ही है क्योंकि आज हम 7 महीने बाद मिलने वाले है क्योंकि हमारा परीक्षा केंद्र एक ही जगह आया है हनुमानगढ़। बाकी हम जाके देखेंगे केसा होगा मिलन!

मुँह पर बखूबी मुस्कुराना जानते हैं लोग लगाना पीठ पर निशाना जानते हैं लोग जो चलना नहीं जानता दुनियाँ की चाल को सिखा के उसको गिराना जानते हैं लोग साँसे बहुत भारी होती हैं जिंदगी की शायद मुर्दा होते ही

सखि, ये क्या हो गया है सांसदों, राजनीतिक दलों को ? जब देखो तब संसद में हंगामा खड़ा कर संसद को स्थगित करवा देते हैं । ना तो कोई काम करते हैं और ना ही करने देते हैं । इनको लगता है कि यदि काम हुआ तो

डायरी सखि, आजकल मैं थोड़ा व्यस्त चल रहा हूं । इसलिए समय पर न तो डायरी ही लिख पा रहा हूं और ना ही मैं अपने धारावाहिकों जैसे "बहू पेट से है", "रात्रि चौपाल", "भुतहा मकान" और अन्य रचनाओं को भी पूर्ण

थोड़ा बीमार क्या हुए हजारों था कि उसने मन्नत के बांध दिएतुम्हारे होने की खुशी में गांव के हर हिस्से में ढिंढोरा पीट दिए तुम्हारी हर शरारत को हंसी हंसी में टाल दियाऔर तुम किसके हिस्से में हो मां पूछकर

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