नववर्ष सा उल्लास हो उस आहट का अहसास हो, प्रकृति का आह्वान हो अस्तित्व का विकास हो, पृकंपन का प्रवात हो उर में तुम्हारा वास हो, सामर्थ्य प्रभाव उदित हो नव उमंग भर तरंगित हो, उषा लालिमा लोचन
अजन्मा गर्भस्थ शिशु था , किलकारियां मारते आया | बचपन खेलते - कूदते बीता और जवानी मस्ती में | जवानी जिम्मेदारियां भी लेकर आईं और जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी | ........ लेकिन इन्हीं जवानी की
फालतू बात यही है, फालतू खून बहा है।आपकी आँखों से भी, फालतू नीर बहा है।।वास्ता हमसे नहीं तो, दर्द क्यों तुमको हुआ।फालतू बात यही है, तुमको अपना जो कहा है।।फालतू बात यही है-----------------।।अच्छा होता आ
Mera naam Arun Kumar hai main ek garib parivaar se sambandh rakhta hoon.Mera janm 01/jan/2000 ko hua thaMere parivaar main kul five members hai.Main teen bhai hoon. Ek Bhai ki sadi ho chuki hai.Mere f
"रानी का स्टोर मे जाना &nbs
"सवालो का बौछार " &nb
इतिहास गवाह,जब लिखा है तो, तव तव नारी की वाणी परमेथिले कुमारी सीता मां के स्वयंवर की वात हैं,रावण ज्ञानी राजा जनक के साथ सत्संग में हार गया था,वही रावण कैलाश पर्वत को उठाने वाला धनुष को उठा नहीं
______*****______* " नीतु बोली भाभी चलिए मै आपको कमरे तक छोड देती हूं ,भैया अभी घर पर नही है वो कही बाहर गऐ है ,इसलिए अभी आपको कोई नही रोकेगा ,बो
रानी और राज का फस्ट नाइट" ___________*****___________ &n
मन की व्यथा " एक ऐसी कहानी है जो वास्तविक घटनाओ पर अधारित है ,इस कहानी की पात्र रानी जो हमेशा अपने मन से बाते करती रहती है ,क्युकि ससुराल मे सबके होने के बावजू
दुनिया में मैथिल ब्राह्मण ही भविष्य और वर्तमान और भूतकाल की पद्धति जानते थे,इसका प्रमाण रामायण से मिलता है राजा विधेयक यानी जन जी,रावण से भी महा ज्ञानी रावण उनके सामने सत्संग में हार गया था,इससे यह सा
लगबग दोपहर का समय हो गया है, सुबह भी थोडी आलसाई सी हुँवी, रात को सच मोबाईल देखते कब सुबह हुँवी पता ही ना चला,जानती हूँ की अच्छी नींद बहुत जरुरी है, पर मेरा मन भी उस जिद्दी बच्चे की तरह है
मैंने जब होश संभाला तब हमारे घर में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी था। उस समय कई लोगों पर लकड़ी के शटर वाले टीवी थे। कई लोग टीवी पर प्लास्टिक की रंगीन स्क्रीन लगाकर उसे रंगीन टीवी बना लेते थे। ये स्क्रीन पारदर
वफा के बदले , ज़फा मिली . क्याइश्क़ करने की सज़ा मिली । अपनी यादों का घर बसाकर , इस दिल से,, चले गए तुम . एक बार किये गुनाह की सज़ा , हमें कई दफ़ा मिली । ज़ख्म जो सूखे भी नहीं थे अब
बात है उन दिनों की जब मैं कालेज में थी। फतेहपुर में BSc फाइनल year मे थी चूँकि मेरा घर यही था इसलिए मैं अपने घर से ही अपने कालेज आना जाना करती थी लेकिन मेरी कुछ सहेलियाँ जो फतेहपुर से बाहर के गांव से
प्यार तो सभी लोग करते हैं, लेकिन सच्चा प्यार मिल पाना बहुत आसान नहीं होता। सच्चे प्यार को दुर्लभ कहा गया है। आजकल लोगों के रिश्ते जितनी जल्दी बनते हैं, उतनी जल्दी टूट भी जाते हैं। अगर किसी रिश्ते क
एक असमंजस प्रेम.. हम अक्सर कई लोगो से बात करते हैं जिनमें से कुछ लोंगो से हमें बाते करना अच्छा लगता हैं कभी - कभी हमारे विचार कुछ लोंगो से मिलने लगते हैं तो कभी किसी की शैतानियाँ, नादानिय