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आत्मकथा

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ना मै किसी को अपना आदि बनाना चाहती हूँ और ना हीकिसी की बनना चाहती हूं। . जब आप किसी के आदि हो जाते हो और वो आपसे दूर जाता है तो बड़ा दुख होता है । मुझे ज्यादा दुख ना हो किसी के जाने का इसलिए मै ना ही

एहसान फरामोश मौकापरस्तमतलब परस्त बदतमीजबद दिमाग बेमुरव्वतबेरहम बेहयाबेहिसबा -मुलाइजाबा -अदबरितिका सिंह तसरिफ ला रहीं हैं . . . . .रुकिये - रुकिये ज्यादा मत सोचिए🤔आपलोग सोच रहे हो

मेरा नाम प्रविंद्र कुमार है मैं झज्जर हरियाणा का रहने वाला हूं । मेरा जन्म रोहतक जिले के एक एक गांव में हुआ था जो कि अब झज्जर जिले का हिस्सा है ।बचपन बहुत अच्छे से गुजरा फिर किशोर अवस्था में आते ही अप

बेटियां ही नहीं बेटे भी पराए होते हैं। बेटियां ही नहीं बेटे भी घर छोड़ कर जाते है उठकर पानी तक ना पीने वाले,,,,। आज अपने कपड़े खुद ही धो लेते हैं,वह जो कल तक घर के लाडले थे आज अकेले में रोते हैं ! सिर्

    पापा जी घर आए लेकिन उन्होंने किसी को कुछ भी नहीं बताया । ना मेरी दादीजी को ,ना बुआ जी को और ना दादा जी को ही । मेरी नानी जी ने किसी के यहाँ जाकर टेलीफोन से फोन किया और बताई कि मेरी दादी

जो मेरे 4 मिनट छोटी है ।😊💞जब जन्म प्रमाण पत्र बनवाने का कार्य शुरू हुआ । तब नर्स ने नाम पूछा  तो मेरी मम्मी ने जल्दी ही नाम बता दिया , क्योंकि वो तो पहले से हि हम दोनों बहनों का 

मेरा बचपन बहुत आश्चर्यजनक रहा। मेरे जीवन मे कुछभी अचानक से हो जाता है। पहले से किसी बात की जानकारी नहीं होती है । मेरा जन्म हथुआ के बंगाली लाइन में डॉ अमरेश कुमार के यहाँ हुआ था। मेरे ज

इन दिनों गुमसुम सी है कुछ चहचहाटें , बेरंग सी लगती है ये धूप जिनमें कभी इंद्रधनुष के सातों रंग नृत्यरत हो उठते थे । दिन का दोलन जो दरियाई फितरत रखता था पहाड़ सा सध गया हो जैसे । कुछ आवाज़ें जिनमें जीवन

 विश्व  एक बहुत बड़ी महामारी से गुजर रहा हैं इसके चलते हमारे शहर में भी धारा 144 लगी हैं ,चार साथी एक जगह इकठ्ठा नहीं हो सकते ।  जरूरत पड़ने पर बाहर जाने की अनुमति है, वरना अनुमति नहीं है

भजन​​ – दीनानाथ मेरी बात छानी कोणी तेरे से लिरिक्स दीनानाथ मेरी बात, छानी कोणी तेरे से, आँखड़ली चुराकर बाबा, जासी कठे मेरे से || खाटू वाले श्याम तेरी, शरण में आ गयो, श्याम प्रभु रूप तेरो,

सर्दी की वो रात जब बैठे-बैठे भोर हो गयी।सोच बस यही की– "आखिर कौन है वो"। पेड़ों पर बैठे विहग के तरह उनको निहारते ही रहे जब उनकी पहली तस्वीर मेरे नैनों के सामने आई। नीली साड़ी में अपने होठों पर प्या

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क्या बताएं हमें क्या- क्या दिखाया है ज़िन्दगी ने।कसम से बहुत ही जादा तड़पाया है ज़िन्दगी ने।जिन गलत रास्तों से दूर रहना चाहते थे हम।उन्हीं रास्तों में बार बार चलाया है ज़िन्दगी ने।।जो ना करने को जमाने को

नमस्कार मित्रो। आज 31अगस्त 2022 को मैं प्रमोद अवस्थी आप सभी के बीच इस सम्मानित मंच के माध्यम से उपस्थित हूं। कहते है कि व्यक्ति को कभी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि असफलताएं ही हमे सिखाती है कि हमारे प

ऐक किताब ऐक किताब का पना ही सही ओर कुछ है ही नही 

माँ सूरज की पहली "किरण" हो तुम... कड़ी धूप में घनी "छाँव" हो तुम... ममता की जीवित "मूरत" हो तुम... आँखों से झलकाती "प्यार" हो तुम... जग में सबसे "प्यारी" हो तुम... प्यार का बह

बात है सन 2016 की मैं और अवि वह अपनी सहेलियों के साथ घर जा रही थी और मैं उनके पीछे पीछे थोड़ी दूर चलने के बाद बारिश शुरू हो गई और हम सब ने उस पाक के बने दरवाजे की छत का सहारा लिया और इसके नीचे खड़े हो

 (1)             मै हार मे भी जीत का आनंद ले रहा हूँ             मै कॉटो मे भी फूलों की सुगंध ले रहा हूँ     

बेटियां नसीब से तोबेटे दुआओं के बाद आते हैं, अजी हम लड़के है जनाबहम कुछ जिम्मेदारियो के साथ आते है।आधी उम्र जिम्मेदारियांसमझने में गुजर जाती हैतो आधी उसे निभाने में,पूरा बचपन किताबो मेंगुजर जाता है तो

(1)  कहां-कहां ना भटका मैं एक हसीन शाम की खा़तिर        जैसे भटका था भरत कभी अपने राम की खातिर        एक वो ना मिला मुझे अरे वाह री ऐ तक़दीर मेरी

राहतों की नींद-औ-सुकून मेरे सफर में कहाँतुझे पा लूँ दो घड़ी ही को मेरे मुकद्दर में कहाँमुझे उलझा के ही गया है इश्क़ का धागा औरजा के तेरी ही गली में खोजू मेरा घर है कहाँहर आते जाते अजनबी काफ़िले का हिस्सा

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