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अध्याय 6: प्रायश्चित्त

13 अगस्त 2023

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अगर कबरी बिल्ली घर-भर में किसीसे प्रेम करती थी तो रामू की बहू से, और अगर रामू की बहू घर-भर में किसी से घृणा करती थी तो कबरी बिल्ली से । रामू की बहू दो महीना हुआ, मायके से प्रथम बार ससुराल आई थी, पति की प्यारी और सास की दुलारी, चौदह वर्ष की बालिका । भंडार - घर की चाबी उसकी करधनी में लटकने लगी, नौकरों पर उसका हुक्म चलने लगा और रामू की बहू घर में सब कुछ । सासजी ने माला लिया और पूजा-पाठ में मन लगाया ।

लेकिन ठहरी चौदह वर्ष की बालिका, कभी भण्डार-घर खुला है तो कभी भण्डार-घर में बैठे-बैठे सो गई। कबरी बिल्ली को मौका मिला, घी-दूध पर अब वह जुट गई । रामू की बहू की जान आफत में और कबरी बिल्ली के छक्के पंजे । रामू की बहू हांड़ी में घी रखते-रखते ऊंघ गई और बचा हुआ घी कबरी के पेट में । रामू की बहू दूध ढक कर मिसरानी को जिन्स देने गई और दूध नदारद । अगर बात यहीं तक रह जाती तो भी बुरा न था, कबरी रामू की बहू से कुछ ऐसा परक गई थी कि रामू की बहू के लिए खाना-पीना दुश्वार ।

रामू की बहू के कमरे में रबड़ी से भरी कटोरी पहुंची और रामू जब आये तब कटोरी साफ चटी हुई । बाज़ार से बालाई आई और जब तक रामू की बहू ने पान लगाया, बालाई गायब । रामू की बहू ने तय कर लिया कि या तो वही घर में रहेगी या फिर कबरी बिल्ली ही । मोरचाबन्दी हो गई और दोनों सतर्क । बिल्ली फंसाने का कटघरा आया, उसमें दूध, बालाई, चूहे, और भी बिल्ली को स्वादिष्ट लगनेवाले विविध प्रकार के व्यंजन रखे गये, लेकिन बिल्ली ने उधर निगाह तक न डाली । इधर कबरी ने सरगर्मी दिखलाई। अभी तक तो वह रामू की बहू से डरती थी; पर अब वह साथ लग गई, लेकिन इतने फासले पर कि रामू की बहू उसपर हाथ न लगा सके | 

कबरी के हौंसले बढ़ जाने से रामू की बहू को घर में रहना मुश्किल हो गया । उसे मिलती थी सास की मीठी झिड़कियां, और पति देव को मिलता था रूखा-सूखा भोजन ।

एक दिन रामू की बहू ने रामूं के लिए खीर बनाई । पिश्ता, बादाम, मखाने और तरह-तरह के मेवे दूध में औटाए गये, सोने का वर्क चिपकाया गया और खीर से भर कर कटोरा कमरे के एक ऐसे ऊँचे ताक पर रखा गया, जहां बिल्ली न पहुंच सके । रामू की बहू इसके बाद पान लगाने में लग गई ।

उधर कमरे में बिल्ली आई, ताक के नीचे खड़े होकर उसने ऊपर कटोरे की ओर देखा, सूंघा, माल अच्छा है, ताक की ऊँचाई अन्दाज़ी और रामू की बहू पान लगा रही है । पान लगाकर रामू की बहू सासजी को पान देने चली गई और कबरी ने छलांग मारी, पंजा कटोरे में लगा और कटोरा झनझनाहट की आवाज़ के साथ फर्श पर आवाज़ रामू की बहू के कान में पहुंची, सास के सामने पान फेंक कर वह दौड़ी, क्या देखती है कि फूल का कटोरा टुकड़े-टुकड़े, खीर फर्श पर और विल्ली डट कर खीर उड़ा रही है । रामू की बहू को देखते ही कबरी चम्पत ।

रामू की बहू पर खून सवार हो गया, न रहे बांस न बजे बाँसुरी । रामू की बहू ने कबरी की हत्या पर कमर कस ली। रात भर उसे नींद न आई, किस दांव से कबरी पर वार किया जाय कि फिर जिन्दा न बचे, यही पड़े-पड़े सोचती रही । सुबह हुई और वह देखती है कि कबरी देहरी पर बैठी बड़े प्रेम से उसे देख रही है ।

रामू की बहू ने कुछ सोचा, इसके बाद मुस्कराती हुई वह उठी, कबरी रामू की बहू के उठते ही खिसक गई । रामू की बहू एक कटोरा दूध कमरे के दरवाज़े की देहरी पर रखकर चली गई। हाथ में पाटा लेकर वह लौटी तो देखती है कि कबरी दूध पर जुटी हुई है । मौका हाथ में आ गया । सारा बल लगाकर पाटा उसने बिल्ली पर पटक दिया । कबरी न हिली न डुली, न चीखी न चिल्लाई, बस एक दम उलट गई ।

आवाज़ जो हुई तो महरी झाडू छोड़कर, मिसरानी रसोई छोड़कर और सास पूजा छोड़कर घटनास्थल पर उपस्थित हो गईं। रामू की बहू सर झुकाए अपराधिनी की भांति बातें सुन रही है ।

महरी बोली—“अरे राम बिल्ली तो मर गई। मांजी बिल्ली की हत्या बहू से हो गई, यह तो बुरा हुआ ।”

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मिसरानी बोली – “माँजी, बिल्ली की हत्या और आदमी की हत्या बराबर है । हम तो रसोई न बनावेंगी, जबतक बहू के सिर हत्या रहेगी ।"

सासजी बोली—“हां ठीक तो कहती हो, अब जबतक बहू के सर से हत्या न उतर जाय तबतक न कोई पानी पी सकता है, न खाना खा सकता है। बहू यह क्या कर डाला ?"

महरी ने कहा - " फिर क्या हो, कहो तो पण्डितजी को बुलाय लाई ।”

·

सास की जान-में-जान आई - "अरे हां, जल्दी दौड़ के पंडितजी को बुला ला ।” बिल्ली की हत्या की ख़बर बिजली की तरह पड़ोस में फैल गई । पड़ोस की औरतों का रामू के घर में तांता बंध गया। चारों तरफ से प्रश्नों की बौछार और रामू की बहू सिर झुकाये बैठी ।

पंडित परमसुख को जब यह ख़बर मिली उस समय वे पूजा कर रहे थे । खबर पाते ही वे उठ पड़े— पंडिताइन से मुस्कराते हुए बोले – “भोजन न बनाना । लाला घासीराम की पतोहू ने बिल्ली मार डाली । प्रायश्चित्त होगा, पकवानों पर हाथ लगेगा ।"

पंडित परमसुख चौबे छोटे-से मोटे-से आदमी थे । लम्बाई चार फीट दस इंच और तोंद का घेरा अट्ठावन इंच । चेहरा गोल-मटोल, मूँछ बड़ी-बड़ी, रंग गोरा, चोटी कमर तक पहुंचती हुई ।

कहा जाता है कि मथुरा में जब पंसेरी खुराक वाले पंडितों को ढूंढा जाता था तो पंडित परमसुखजी को उस लिस्ट में प्रथम स्थान दिया जाता था ।

पंडित परमसुख पहुंचे, और कोरम पूरा हुआ। पंचायत बैठी — सासजी, मिसरानी, किसनू की मां, छन्नू की दादी और पंडित परमसुख । बाकी स्त्रियां बहू से सहानुभूति प्रकट कर रही थीं ।

किसनू की मां ने कहा—“पंडितजी, बिल्ली की हत्या करने से कौन नरक मिलता है ?"

पंडित परमसुख ने पन्ना देखते हुए कहा - " बिल्ली की हत्या अकेले से तो नरक का नाम नहीं बतलाया जा सकतां, वह महूरत भी मालूम हो जब बिल्ली की हत्या हुई तब नरक का पता लग सकता है ।"

"यही कोई सात बजे सुबह " - मिसरानीजी ने कहा । 

पंडित परमसुख ने पन्ने के पन्ने उलटे अक्षरों पर उंगलियां चलाई, मत्थे पर हाथ लगाया और 'कुछ सोचा । चेहरे पर धुंधलापन आया । माथे पर बल पड़े, नाक कुछ सिकुड़ी और स्वर गम्भीर हो गया, "हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! बड़ा बुरा हुआ, प्रातःकाल ब्रह्म-मुहूर्त में बिल्ली की हत्या ! घोर कुम्भीपाक नरक का विधान है ! रामू की मां यह तो बड़ा बुरा हुआ ।"

रामू की मां की आंखों में आंसू आ गए, "तो फिर पंडितजी अब क्या होगा, आप ही बतलायें ?"

पंडित परमसुख मुस्कराये - " रामू की मां, चिन्ता की कौन-सी बात है, हम पुरोहित फिर कौन दिन के लिए हैं ? शास्त्रों में प्रायश्चित्त का विधान है सो प्रायश्चित्त से सब कुछ ठीक हो जायगा ।”

रामू की मां ने कहा—“पंडितजी उसी लिए तो आपको बुलवाया था, अब आगे बतलाओ कि क्या किया जाय ?"

“क्या किया जाय—यही एक सोने की बिल्ली बनवाकर बहू से दान करवा दी जाय -- जबतक बिल्ली न दे दी जायगी तबतक तो घर अपवित्र रहेगा, बिल्ली दान देने के बाद इक्कीस दिन का पाठ हो जाय ।"

छन्नू की दादी- "हां, और क्या पंडितजी ठीक कहते हैं, बिल्ली अभी दान दे दी जाय और पाठ फिर हो जाय ।"

रामू की मां ने कहा- "तो पंडितजी, कितने तोले की बिल्ली बनवाई जाय ?" पंडित परमसुख मुस्कराये, अपनी तोंद पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा – “बिल्ली कितने तोले की बनवाई जाय ? अरे रामू की मां, शास्त्रों में तो लिखा है कि बिल्ली के वज़न भर सोने की बिल्ली बनवाई जाय । लेकिन अब कलियुग आ गया है, धर्म-कर्म का नाश हो गया है, श्रद्धा नहीं रही। सो रामू की मां, बिल्ली के तौल भर की बिल्ली तो क्या बनेगी, क्योंकि बिल्ली बीस - इक्कीस सेर से कम क्या होगी; हां कम-से-कम इक्कीस तोले की बिल्ली बनवाके दान करवा दो और आगे तो अपनी-अपनी श्रद्धा ।”

रामू की मां ने आंखें फाड़कर पण्डित परमसुख को देखा - "अरे बाप रे ! इक्कीस तोला सोना ! पण्डितजी यह तो बहुत है, तोला भर की बिल्ली से काम निकलेगा ?"

पंडित परमसुख हंस पड़े- " रामू की मां ! एक तोला सोने की बिल्ली । अरे रुपए का लोभ बहू से बढ़ गया ? बहू के सिर बड़ा पाप है— इसमें इतना लोभ ठीक नहीं ।"

मोल - तोल शुरू हुआ और मामला ग्यारह तोले की बिल्ली पर ठीक हो गया ।

इसके बाद पूजा-पाठ की बात आई। पंडित परमसुख ने कहा – “उसमें क्या मुश्किल है, हम लोग किस दिन के लिए हैं ? रामू की मां, मैं पाठ कर दिया करूंगा, पूजा की सामग्री आप हमारे घर भिजवा देना ।"

" पूजा का सामान कितना लगेगा ?"

" अरे कम-से-कम सामान में हम पूजा कर देंगे, दान के लिए करीब दस मन गेहूं, एक मन चावल, एक मन दाल, मन भर तिल, पांच मन जौ और पांच मन चना, चार पसेरी घी और मन-भर नमक भी लगेगा। बस इतने से काम चल जायगा ।" "अरे बाप रे ! इतना सामान, पंडितजी इसमें तो सौ डेढ़ सौ रुपया खर्च हो जायगा ।” – रामू की मां ने रुआसी होकर कहा ।

"फिर इससे कम में तो काम न चलेगा। बिल्ली की हत्या कितना बड़ा पाप है, रामू की मां ! खर्च को देखते वक्त पहले बहू के पाप को तो देख लो। यह तो प्रायश्चित्त है, कोई हँसी-खेल थोड़े ही है और जैसी जिसकी मरजादा प्रायश्चित्त में, उसे वैसा खर्च भी करना पड़ता है। आप लोग कोई ऐसे-वैसे थोड़े हैं, अरे सौ-डेढ़ सौ रुपया आप लोगों के हाथों का मैल है । ".

पंडित परमसुख की बात से पंच प्रभावित हुए, किसनू की मां ने कहा – “पंडित जी ठीक तो कहते हैं, बिल्ली की हत्या कोई ऐसा-वैसा पाप तो है ही नहीं—बड़े पाप के लिए बड़ा खर्च भी चाहिए ।"

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छन्नू की दादी ने कहा – “और नहीं तो क्या, दान-पुत्र से ही पाप कटते हैं । दान-पुत्र में किफायत ठीक नहीं ।"

मिसरानी ने कहा – “और फिर माजी, आप लोग बड़े आदमी ठहरे। इतना खर्च कौन आप लोगों को अखरेगा ?"

रामू की मां ने अपने चारों ओर देखा - सभी पंच पंडितजी के साथ । पंडित परमसुख मुस्करा रहे थे । उन्होंने कहा – “रामू की मां, एक तरफ तो बहू के लिए कुम्भीपाक नरक है और दूसरी तरफ तुम्हारे जिम्मे थोड़ा सा खर्चा है । सो उससे मुंह न मोड़ो ।”

एक ठण्डी सांस लेते हुए रामू की मां ने कहा, “अब तो जो नाच नचाओगे नाचना ही पड़ेगा ।

पंडित परमसुख ज़रा कुछ बिगड़कर बोले - " रामू की मां ! यह तो खुशी की बात है, अगर तुम्हें यह अखरता है तो न करो - मैं चला ।” इतना कहकर पंडितजी ने पोथी - पत्रा बटोरा ।

-

"अरे पंडित जी, रामू की मां को कुछ नहीं अखरता -- बेचारी को कितना दुःख है । बिगड़ो न ।” मिसरानी, छन्नू की दादी और किसनू की मां ने एक स्वर में

कहा ।

रामू की मां ने पंडितजी के पैर पकड़े और पंडितजी ने अब जम कर आसन

जमाया ।

" और क्या हो ?"

"इक्कीस दिन के पाठ के इक्कीस रुपए और इक्कीस दिन तक दोनों वक्त ने पांच-पांच ब्राह्मणों को भोजन करवाना पड़ेगा ।" कुछ रुककर पंडित परमसुख कहा – “सो इसकी चिन्ता न करो, मैं अकेले दोनों समय भोजन कर लूंगा और मेरे अकेले भोजन करने से पांच ब्राह्मण के भोजन का फल मिल जायगा ।"

"यह तो पंडितजी ठीक कहते हैं, पंडितजी की तोंद तो देखो।”— मिसरानी ने मुस्कराते हुए पंडितजी पर व्यंग किया ।

"अच्छा तो फिर प्रायश्चित्त का प्रबन्ध करवाओ रामू की मां, ग्यारह तोला सोना निकालो, मैं उसकी बिल्ली बनवा लाऊँ-दो घण्टे में मैं बनवाकर लौटूंगा तबतक सब पूजा का प्रबन्ध कर रखो — और देखो, पूजा के लिए — "

पंडितजी की बात ख़तम भी न हुई थी कि महरी हांफती हुई कमरे में घुस आई, और सब लोग चौंक उठे । रामू की मां ने घबड़ा कर कहा-"अरी क्या हुआ री ?"

महरी ने लड़खड़ाते हुए स्वर में कहा – “माँजी, बिल्ली तो उठ कर भाग गई ।"

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