संगति का बहुत जल्दी असर होता है। हमेशा तमोगुण और रजोगुण में रहने वाला व्यक्ति भी थोड़ी देर आकर सत्संग में बैठ जाये तो उसमें भी सकारात्मक और सात्विक ऊर्जा का संचार होने लगेगा।
चेतना एक गति है। वह पूरे दिन बहती रहती है। उसे जैसा माहौल मिलेगा वह उसी में ढलने के लिए तैयार होने लगती हैं। आदमी पूरे दिन बदल रहा है। अच्छे आदमी से मिलकर अच्छे होने का सोचने लगता है तो बुरे आदमी से मिलकर बुरे होने के बिचार आने लगते हैं।
मन भिखारी की तरह है यह पूरे दिन भटकता रहता है। इसे सात्विक ही बने रहने देना। रजोगुण बढ़ा तो लोभ बढ़ेगा और लोभ बढ़ा तो ज्यादा भाग दौड़ होगी। ज्यादा दौड़ने से अशांति तो फिर आएगी ही आएगी।