संसार में सबसे ज्यादा दुखी कोई है तो वह असंतोषी है। असंतोष के कारण ही मानव पाप और निम्न आचरण करता है। जगत के सारे पदार्थ मिलकर भी मानव को सन्तुष्ट नहीं कर सकते, संतोष ही प्रसन्न रख सकता है।
एक बात तो बिलकुल जान लेना कि धन के बल पर पूरे संसार के भोगों को प्राप्त करने के बाद भी तुम अतृप्त ही रहोगे। रिक्तता , खिन्नता, विषाद, अशांति तुम्हारा पीछा ना छोड़ेगी। आशा का दास तो हमेशा निराश ही रहेगा।
विषय के लिए नहीं वसुदेव के लिए जियो। और हाँ धन जीवन की आवश्यकता है उद्देश्य कदापि नहीं, इससे आज तक कोई तृप्त नहीं हुआ।
.सुख भोगनेके लिये स्वर्ग है, दुःख भोगनेके लिये नरक है और सुख-दुःख दोनोंसे ऊँचा उठकर अपना कल्याण करनेके लिये मनुष्य-शरीर है.