पाप करना न चाहते हुए भी मनुष्य ‘कामना’ के कारण पापो में लगता है। पाप करने की इच्छा न हो तो भी भोगो की कामना तो है ही। जैसे भोजन भूख के कारण अच्छा लगता है, ऐसे ही कामना के कारण भोग अच्छे लगते हैं, अन्यथा भोगों में अच्छा लगने की ताकत ही नहीं है।
बिना दोष के भोग अच्छे लगते ही नहीं। लोभ रूपी दोष के कारण ही धन अच्छा लगता है। भोग भोगना और संग्रह करना इन दो में ही सब पाप, ताप, नरक, रोग आदि भरे पड़े हैं। बच्चा नहीं चाहते हो तो गर्भपात न करके उस बच्चे को सन्तों को दे दो।*
मन में अशान्ति, हलचल हो तो मन लगाकर पन्द्रह-बीस मिनट हरे कृष्ण का महामंत्र का जप शुरू कर दो तो हलचल मिट जायगी। सीताजी पर दुःख क्यों आया ? यह शिक्षा देने के लिये आया कि बहनों ! कितना ही दुःख, कष्ट आ जाय, तुम अपने धर्म को मत छोड़ो।