परिस्थितियां चाहे जो भी हो उन्हें स्वीकार कर लेना ही उत्तम विकल्प होता है।
इच्छाओ ओर उमीदों का कोई अंत नही होता, हमे यह मान लेना चाहिए की जीवन से जुड़े हमारे जो भी स्वप्न होते है, उन सभी का परिपूर्ण होना मुमकिन नही।।
क्योकि नियति जो भी घटित करती है, उसको परिवर्तित कर पाना किसी के लिए भी सम्भव नही, इसका तात्पर्य यह नही की हम हताश ओर निराश होकर अपना जीवन बाधित करे, बल्कि हमे विषम परिस्थितियों से उभारकर स्वयं को योग्य एवं सामर्थ्यवान बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।