दिनाँक : 7.02.2022
समय : रात 11:30 बजे
प्रिय डायरी जी,
किसी भी देश का इतिहास उनका गौरव होता है। कभी-कभी जब सत्ता बदलती थी तो इतिहास के साथ छेड़-छाड़ की खबरें आतीं थीं। लेकिन आजकल पॉकेट नावेल और पॉकेट फोन के युग में, इतिहास भी लोग जेब में लेकर घूम रहे हैं। इतिहास को बस छेड़ना क्यों? नेस्तनाबूद करके, नया इतिहास रचने की कवायद चल रही है। बचपन से लेकर जवानी तक हमारा विकास ही नहीं हुआ था इसलिए हम किसी को नजर ही नहीं आते थे। हम अविकसित ही रह गए! अभी कुछ 6-7 सालों से विकास आया तो हमारा विकास हुआ और लोग हमें जानने लगे। अब हम भी शायद भविष्य में इतिहास का हिस्सा बन जाएं, जब तक कोई और आकर हमें अविकसित कहकर दुत्कारने ना लगे।
दिल्ली में आप किसी ऐसे व्यक्ति से बात करेंगे जो आज सरकारी या प्राइवेट नौकरी या फिर किसी अच्छे खासे बिजनेस में है और उन्हें 15 साल से ऊपर हो चुके हैं, तो 70% संभावना है कि वह दिल्ली के सरकारी स्कूल से पढ़ा होगा। उनमे से एक मैं भी हूँ। मैने भी 12वी तक सरकारी स्कूल और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। हालांकि उस समय के स्कूल की बिल्डिंग और सुविधाएं आज के जैसी नहीं थीं, पर टीचर और साइंस लैब, आज के प्राइवेट स्कूलों से भी अच्छे थे।
हालांकि आज तो दिल्ली के सरकारी स्कूलों की काया पलट ही हो गई है जिसे देखकर बड़ी खुशी होती है। नीट 2022 के रिजल्ट में तो दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों ने कमाल ही कर दिया है। सरकारी स्कूलों के 500 बच्चों ने परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। इससे पता चलता है कि सफलता में मातापिता के परिवेश से ज्यादा बच्चे की मेहनत काम करती है। कहने का मतलब यह है कि पहले और अभी के दिल्ली के सरकारी स्कूल न.1 हैं।
पर ज्ञानी लोग इसका मतलब कतई आप यही निकालें कि विकास की गंगा बह रही है। जल्दी से डुबकी लगा लें, कहीं ऐसा ना हो गंगा का नाम बदल जाये और आप वैतरणी पार ना कर पाएं।
अब मैं यह सोचती हूँ कि काश! मैं भी इसी सतयुग में पैदा होती, तो सुबह-शाम जो रिक्तियां निकल रहीं है, वे नियोक्ता मेरे दरवाजे पर लाइन लगाए होते कि "मैडम! आपका सेलेक्शन 6 पदों पर हो गया है, बताएं कहाँ जॉइन करेंगी?"
गीता भदौरिया