दिनाँक : 19.02.2022
समय : रात 11 बजे
प्रिय डायरी जी,
रेडियो के विषय में मेरी यादें जुदा है, सभी की अपनी यादें होती हैं।
रेडियो के साथ मेरी आत्मा जुड़ी है। बचपन में जब से होश संभाला, रेडियो मेरा आत्मिक साथी रहा। दरअसल, मेरे पापाजी को फ़िल्म और डांस का बहुत शौक था। ब्लैक एंड वाइट के दूरदर्शन वाले जमाने में हम बच्चे केवल, जितेंद्र, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन रेखा , जया और हेमामालिनी को ही पहचानते थे। लेकिन पापाजी मुकरी, प्राण, सुनील दत्त , दिलीप कुमार और साधना की बात करते थे और रेडियो प्रचारित की जाने वाली फिल्म की आवाजों को झट से पहचान लेते थे। रेडियो पर आने वाले गानों में हमें केवल किशोर कुमार, लता मंगेशकर और आशा भोंसले की आवाज समझ आती थी। जबकि वह सुरैया, मीना, सरदारी और हेमा की आवाजें भी जानते थे।
पापाजी से कॉम्पटीशन करने के चक्कर में रेडियो से ऐसी दोस्ती हुई कि मैं पढ़ाई भी रेडियो चला कर करने लगी थी, खासकर मैथ। बीच-बीच में जब कोई डांस वाला गाना आता तो मैं पढ़ाई बंद करके, डांस करने लगती। यही मेरा पढ़ाई ब्रेक होता था। अमीन सयानी की आवाज में फिल्मों का प्रचार और बिनाका संगीतमाला आजकल के सीरियल से ज्यादा मज़ेदार थे।
सुबह 5 बजे पापाजी रेडियो पर भक्ति संगीत लगा देते थे, जोकि हमारा अलार्म होता था।
आज भी यदि आपको अंताक्षरी खेलने को कहा जाए तो आप 70-80-90s के गाने ही गाते हैं। पता है क्यों? क्योंकि आपने उन गानों को रेडियो पर संगीत और आवाज से सुना था, जो आपके मन मे रच-बस गए है। आज के गाने आप भागते सीन्स के साथ देखते हैं, तो चेहरे याद रहते हैं, आवाज खो जाती है। पर आज के अरिजीत की बात जुदा है।
गीता भदौरिया