दिनांनक 11.02.2022
समय : शाम 7 बजे
प्रिय डायरी जी,
एक बात बताऊं! आजकल मेरे बेड की साइड टेबल पर अरुंधति रॉय की उपन्यास "The God of small things" रखी है, जिसे मैंने लाइब्रेरी से चौथी या पाचवीं बार इशू कराया है। क्या है कि हम थोड़े मंदबुद्धि टाइप के हैं बिल्कुल इस नावेल की नायिका की तरह। इस उपन्यास को 1997 का बुकर प्राइज मिला था।
यह जातिवाद एवं समाज की पुरुष प्रधानता पर आधारित है। इस की कहानी केरल के Ayemenem नाम के कस्बे में है। और सन 1969 के आसपास घटित होती है। Ammu Ipe नाम की युवती अपने माता -पिता से बहुत परेशान रहती है। उनकी अचार की फैक्ट्री थी। जिस से काफी इनकम होती थी लेकिन अम्मू के पिता उसे हमेशा डाँटते और मारते-पीटते रहते थे और माँ हमेशा जलीकटी सुनाती रहती थी। इस सब से वह तंग आ चुकी थी। और उस घर को हमेशा के लिए छोड़ देना चाहती थी।
एक बार गर्मी की छुट्टियां हुईं। अम्मू ने अपने माँ – बाप से कहा कि उसे छुट्टियाँ बिताने कलकत्ता वाली मौसी के पास भेज दें। वे लोग इसके लिए मान गए और वह खुश होकर कलकत्ता चली गयी। वहाँ उसे चाय बागान के एक मैनेजर से शादी कर ली। लेकिन जल्दी ही उसे पता चला कि वह आदमी शराबी था। वह अक्सर शराब पीकर गालियाँ बकता था और उसके साथ मार -पीट करता था।
इसमे Estha और Rahel नाम के किरदार भी हैं जो 31 साल के हो जाते हैं, तो Ayemenem (केरल) में दुबारा एक -दूसरे से मिलते हैं। एक दूसरे से बात करके दोनों को लगता है कि आज तक जिंदगी में उन्हें कोई ऐसा मिला ही नहीं है, जो उनको समझ सके। और वे दोनों कितने अधूरे रह गए हैं। वे बातें करते हैं और सोचते हैं कि अगर जातिवाद नहीं होता, तो उनकी और उनकी माँ की जिंदगी इतनी दुखभरी नहीं होती।
इस कहानी को में कई बार पढ़ चुकी हूँ पर इतनी ही समझ आई है। कई बार तो डिक्शनरी खोलनी पड़ती है, जबकि मेरी इंग्लिश ठीक-ठाक है। नामो के जेंडर को समझने के लिए पीछे के पेज पलटने पड़तें थे, अब याद हो गए। अब फिरसे पढ़ रहीं हूँ, की इस नावेल को बुकर क्यों मिला था, शायद इंग्लिश के शब्द ज्ञान पर?
सख़ी अगर आपने इसे पढ़ा है तो कमेंट जरूर करें।
आपकी नासमझ सखी,
गीता भदौरिया