दिनाँक : 03.2.2022
समय : रात 10 बजे
प्रिय डायरी जी,
क्या बचपन के मित्रों से आज भी मुलाकात होती है?
इसका मतलब अभी हम बुढ़ा नहीं गये हैं, जो बचपन के मित्रों को याद करेंगे! मतलब यह है कि हमारा बचपना गया ही नहीं और बचपन का तो पूछों ही मत ! दुबारा लौट कर आ गया है। बच्चे पढ़ाई में व्यस्त हैं तो उनके खिलौनों से हम ही खेलते हैं, कभी हाउस ब्लॉक, कभी रूबिक क्यूब सॉल्व करना और कभी उनके बचे हुए कलर से मॉडर्न पेंटिंग बनाना (क्योंकि वो किसी और को समझ ही नहीं आती, पेंटर को बताना पड़ता है)।
चलो हम अपने फ्रेंड्स का बता ही देतें है! प्राइमरी स्कूल की केवल एक सहेली कभी-कभी मिलती है। जब मैंने 6th क्लास में कहीं दूर एडमिशन ले लिया था तब वो इतना रोई थी कि दो दिनों तक खाना नहीं खाया था, बस अपने पापा की लाई चॉकलेट और आइसक्रीम ही खाई थी। आखिरी दिन जब मिलने आई थी तो 'कुट्टी' करके गई थी कि उस दिन के बाद कभी किसी को भी अपनी बेस्ट फ्रेंड नहीं बनाएगी। आज फेसबुक पर उसके 500 से ज्याफ फ्रेंड हैं और ट्विटर पर 100 से ज्यादा फॉलोवर। रोज़ एक नई फ्रेंड के साथ फोटो शेयर करते हुए लिखती है, 'my bestiii'. मुझसे मिलने का वक्त ही नहीं मिलता। मेरे पास कौन सा उसके लिए फालतू वक्त है? हं!
सीनियर स्कूल फ्रेंडस का 10-12 सहेलियों का ग्रुप है, और हम अधिकांशतः: मिलते हैं। जो हाउसमेकर है वो हमसे ज्यादा अमीर और खुशदिल है। खैर खुश रहने का दिखावा हम भी कर लेते हैं। हमारे टूर की फ़ोटो देखकर जलती रहती हैं सारी। फिर अपनी बालकनी में जाकर गेंदे के फूल के साथ सेल्फी लेकर व्हाट्सएप पर डीपी में लगाकर हमे कोई फालतू सा मेसैज भेज देतीं है ताकि हम उनकी डीपी देख लें।
बताना तो एक और मजेदार वाकया था, पर डरती हूँ कि कहीं पढ़कर हम पर फाइन लगा देंगी कि अगली मीटिंग का बिल तू भरेगी।
गीता भदौरिया