दिनांक : 24.02.2022
समय : रात 9 बजे
प्रिय सखी,
आजकल चहुं ओर माथे की बिंदिया चमचमा रही है।लगभग हर चैनल पर महिलाओं ने चुनावी आकलन की कमान संभाल रखी है। हालांकि पुरुष भी अपनी टिप्पणी करने से पीछे नहीं हैं। वो भी हाँ में हॉं मिला रहे है, चेन्नई एक्सप्रेस के शाहरुख खान के माफिक।
किसी लेखक ने बिंदी को सुहाग की निशानी बताया तो किसी ने कहा कि बिंदी लगाते समय भौहों के बीच मे दवाब पड़ता है और उससे ऊर्जा उत्पन्न होती है। कई कवियों ने विभिन्न उपमाएं दे डालीं और बड़ी मनमोहक कविताएं लिखी हैं। कई लोगों ने तो माँ का शृंगार बिंदिया पर ही भक्ति गीत लिख दिए हैं।
किसी किसी ने तो बिंदिया के महत्त्व को महिलाओं के लिए इतना जरूरी बताया कि हमने झटपट जाकर बिंदी लगा ली कहीं पता चले सारी महिलाये भारत के माथे की बिंदिया बन गई और हम यहाँ जीन्स में सड़क ही नापते रहे।
एक्चुअली हम है उल्टी बुद्धी, सीधी बात दिमाग में घुसती ही नहीं। हमे अब जाके अहसास हुआ कि हर क्षेत्र में महिलाएं क्यों आगे है। स्कूल, कॉलेज के रिजल्ट में, घर के काम में, पति बच्चों और सास-ससुर की सेवा में, UPSC के रिजल्ट में और तो और शब्द.इन हर प्रतियोगिता में।
क्योंकि माथे के बीच मे जो आज्ञा चक्र है, उस पर बिंदी लगाने से उस स्थान पर दवाब पड़ता है, अरे! एक्यूप्रेशर टाइप! तो जैसे ही बिंदी लगाते हैं, हमारे अंदर अलादीन का जिन्न आ जाता है, "क्या आज्ञा है मेरे आका!" और जो भी आका होता है, माता-पिता, पति, सास-ससुर, बच्चे, टीचर, अधिकारी या शब्द.इन, सबका आदेश मान कर काम मे लग जाते हैं, ताभिहे ना फर्स्ट, सेकंड आ पातें है।
समझे! नहीं समझे? अमा! बिंदिया लगा नहीं सकते तो उसपर लिख तो सकते हो! लिखो भैया! कहे हमारी आज्ञा का इंतज़ार कर रहे हो।
तुम्हारी आज्ञाकारी बिंदिया
गीता भदौरिया