दिनाँक : 06.2.2022
समय : रात 11 बजे
प्रिय डायरी जी,
हम कल ही वीणावादिनी सरस्वती माँ के घर आगमन पर खुशियां मना रहे थे और आज इतनी जल्दी सरस्वती सम, सुर-सम्रागी लता दी को अग्नि विसर्जित करना अश्रुपूर्ण कर गया।
अतिव्यस्त दिन की वजह से घर वापिसी के रास्ते में ही कुछ पंक्तियां लिखीं, पर इससे भी मन अशांत ही रहा।
आजादी पूर्व बीसवीं सदी की इक कन्या का
भारत की धरती पर सुर-साम्रागी बन जाना,
गायकों के वर्चस्व वाले समय की लड़की का,
सुरों का परचम लहराकर भारत रत्न पा जाना,
अबलाओं की धरा पर इस सबला का, दो चोटी लहराकर
आसां नहीं है गीता, इक लता का यों वटवृक्ष बन जाना।।
वास्तव में बचपन से ही एक अनदेखा सा स्नेहसूत्र मुझे लता दी से बांधे हुए है। लता दी ने 13 वर्ष की उम्र से अपने परिवार के लिए बहुत मेहनत की। मैंने भी 13 वर्ष की उम्र में अपना ट्यूशन सेन्टर खोल लिया था जहां में खुद 8वीं क्लास में होते हुए भी 8वीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। ये ट्यूशन सेन्टर मेरी आखिरी बहन की शादी तक बदस्तूर चलता रहा।
लता दी कि तरह ही मैं भी अपने घर में सबसे बड़ी दीदी हूँ। लता दी के चार छोटे बहन-भाई हैं, मेरी चार छोटी बहनें हैं।
लेकिन मैंने एम.कॉम तक पढ़ाई की, और लता दी को स्कूल जाने का अवसर ना मिल पाने पर भी 6 विश्वविद्यालयों से डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्राप्त हुई है।
मैंने अपना फ़र्ज़ निभाने के साथ-साथ अपना एक छोटा सा परिवार भी बनाया। जो आज लता दी के परिवार के सामने बहुत छोटा है। जिसमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति, खेल, राजनीति, सिनेमा जगत से लेकर समस्त संसार शामिल है।
बचपन से लेकर आज तक लता दी की जिंदगी से अपनी जिंदगी की तुलना करने वाली मैं, आज लता दी की अंतिम यात्रा में उमड़े हुजूम, सम्मान और मीडिया को देखकर अपने आप को बौना महसूस कर रहीं हूँ।
अलविदा भारत कोकिला, भारत रत्न लता दी!
तेरी आवाज ही पहचान है!
गीता भदौरिया