दिनांक : 14.02.2022
समय : सुबह 8 बजे
आपको क्या लगता है? मरते समय, हम क्या सोचते है? हमे खुशी होती है, दुख होता है या पछतावा होता है?
ऑस्ट्रेलिया की एक रिटायर्ड नर्स हैं, ब्रॉनी वेयर। इनकी बेस्ट सेलर किताब 'द टॉप फाइव रिग्रेट्स ऑफ डाइंग' को प्रकाशन के पहले ही साल में दुनिया भर के करीब 30 लाख लोगों ने पढ़ा।
उन्होंने पैलियाटिव केयर(जहां कैंसर जैसी लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त मरीजों की पीड़ा को कम कर उन्हें राहत पहुंचाने पर ध्यान दिया जाता है) में काम किया। उनमें से कुछ मरीज ऐसे थे, जो मौत की दहलीज तक पहुंच जाने के बाद सिर्फ अलविदा कहने के लिए घर गए थे।
ऐसे लोगों से ब्रानी ने पूछा था कि क्या उन्हें अपनी जिंदगी में किसी बात का अफसोस है या कोई ऐसी बात जिसे वे मौका मिलने पर कुछ अलग तरह से करना चाहेंगे। ?
जवाब में काफी कुछ एक जैसा था। इनमें सबसे कॉमन पांच बातें ये थीं:
1. काश, मैंने अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जी होती, न कि उस तरह जैसा दूसरों ने मुझसे उम्मीद की! यह सबसे कॉमन अफसोस था। ज्यादातर लोगों ने अपने सपनों में से किसी एक को आधा भी नहीं जिया था और अब उन्हें लग रहा था कि ऐसा उनके अपने फैसलों के कारण हुआ।
हममे से ज्यादातर लोग, खासकर महिलाएं, दूसरों की खुशी के लिए अपने आप को ढाल लेते हैं। अपनी जिंदगी नहीं , हम दुसरे की जिंदगी जीते हैं।
2. काश, मैंने इतनी ज्यादा मेहनत नहीं की होती!
हमने अपने बच्चों को बड़े होते नहीं देखा, अपनी खुशियों को परिवार के साथ नहीं जी पाए और अपनी पत्नी के साथ वक्त नहीं बिताया। काम के चक्कर में उन्होंने अपनी जिंदगी में आए खुशियों के तमाम पल खो दिए।
महिलाएं तो अपना स्वास्थ्य भी खो देतीं हैं।
3. काश, मैंने अपनी भावनाएं जताने की हिम्मत की होती!
कई लोगों ने दूसरों के साथ रिश्ता बनाए रखने की खातिर अपनी भावनाएं दबा ली थीं। नतीजतन, वे मामूली इंसान ही बनकर रह गए और उस ऊंचाई को हासिल नहीं कर सके, जिसके वे हकदार थे। कई लोगों ने अपने पसंद के व्यक्ति से शादी नहीं की।
4. काश, मैंने अपने दोस्तों से संपर्क नहीं खत्म किया होता!
ज्यादातर मामलों में लोगों ने पुराने दोस्तों की अहमियत को तब तक महसूस नहीं किया, जब तक मौत उनके बिल्कुल करीब आकर खड़ी नहीं हो गई। लेकिन इस मोड़ पर उनके लिए पुराने दोस्तों को खोज निकालना मुमकिन नहीं था। कई अपनी जिंदगियों में इतने मसरूफ थे कि उन्होंने अपने बेहद प्यारे दोस्तों की भी सालों तक खोज-खबर नहीं ली। सबने मौत के वक्त अपने दोस्तों को बहुत मिस किया।
प्रतिलिपी पर जितने दोस्त बने है, उनसे जुड़े रहें।
5. काश, मैंने अपने को खुश रखा होता!
आश्चर्यजनक तौर पर, यह अफसोस लगभग सबमें दिखा। कई अंत तक यह नहीं समझ सके कि खुशी हासिल करना दरअसल उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर था। बदलाव के डर से उन्होंने खुद से यह झूठ बोला कि वे संतुष्ट हैं, जबकि अपने दिल की गहराइयों में वे एक बार फिर ढंग से हंसना और कुछ बेवकूफियां करना चाहते थे।
जिंदगी एक चॉइस है। यह आपकी जिंदगी है। सावधानी से चुनिए, समझदारी से चुनिए, ईमानदारी से चुनिए। खुशी को चुनिए।
जब आप की मौत नजदीक होगी, तो आप ये सोचेंगे, कि आपने क्या -क्या नहीं कर पाया। लेकिन ना तो आपके पास वक्त होगा, ना शरीर में जान। तो अभी वो सब करो जो आपकी ख्वाहिश है। आपकी जिंदगी है, तो फैसला भी आपका है।
गीता भदौरिया