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भाग 11

18 जुलाई 2022

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से

नहीं तोरा पास में तीर जी !...

एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार।

...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से

कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया के

धरती लोटाबेला बेपीर जी ईईई।...

यह सुनकर जो औरत सदाब्रिज पर मोहित थी, बोली-

...सासू मोरा मरे हो, मरे मोरा बहिनी से,

मरे ननद जेठ मोर जी!

मरे हमर सबकुछ पलिबरवा से,

फसी गइली परेम के डोर जी !..

इतना कहकर वह सदाब्रिज के पास आई और पानी पिलाकर प्रेम की बातें करने लगी।...

...आजु की रतिया हो प्यारे, यहीं बिताओ जी! ।

तन्त्रिमाटोली में सुरंगा-सदाब्रिज की कथा हो रही है। मँहगूदास के घर के पास लोग जमा हैं। पुरैनिया टीसन से एक मेहमान आया है, रेलवे में काज करता है। तन्त्रिमाटोली के लोग कहते हैं-खलासी जी ! खलासी जी सरकारी आदमी हैं। खलासी जी यदि लाल पत्तखा दिखला दें तो डाक-गाड़ी भी रुक जाए। रुकेगी नहीं ? लाल पत्तखा देखते ही रेलगाड़ी रुक जाती है। लाल ओढ़ना ओढ़कर गाड़ी पर चढ़ने जाओ तो !...गाड़ी रुक जाएगी और ओढ़ना जप्पत हो जाएगा। खलासी जी बहुत गुनी आदमी हैं। पक्का ओझा हैं। चक्कर पूजते हैं, भूत-प्रेत को पेड़ में काँटी ठोंककर बस में करते हैं। बाँझ-निपुत्तर को तुकताक (टोटका) कर देते हैं। कुमर विज्जैभान, लोरिका और सुरंगा-सदाब्रिज का गीत जानते हैं। गला कितना तेज है !...उस बार सुराजी हूलमाल (आन्दोलन) में खलासी जी ने लिख दिया था-'बैगनबाड़ी के जमींदार के लड़के ने रेल का लैन उखाड़ा है।' बस, फाँसी हो गई ! हैकोठ और नन्दन (लन्दन) तक फाँसी बहाल रही। लेकिन मँहगूदास को कौन समझाए ? बेचारे खलासी जी एक साल से दौड़ रहे हैं मँहगूदास की बेवा बेटी फुलिया से पच्छिम की बातचीत पक्की करने के लिए। हर बार खलासी जी झोरी में मोरंगिया (नेपाली) गाँजा लाते हैं, तन्त्रिमाटोली के पंचों को पिलाते हैं, सुरंगा-सदाब्रिज गाते हैं, गाँव के बीमार लोगों को झाड़-फूंक देते हैं। उस बार उचितदास की डेरावाली को तुकताक कर दिया, परने के चार दिन पहले बूढ़ा उचितदास सन्तान का मुँह देख गया।...लेकिन मँहगूदास को कौन समझावे ? फिर खलासी जी लेन-देन की बात भी करते हैं। एक कौड़ी नगद न देंगे, जाति-बिरादरी को एक साम भोज कबूलते हैं। और क्या चाहिए ? सरकारी आदमी जमाई होगा। कभी तीरथ करने के लिए जाएँगे तो रेल में टिकस भी नहीं लगेगा।

रमजूदास की स्त्री तन्त्रिमाटोली की औरतों की सरदारिन है। हाट-बाजार जाने के समय, मालिकों के खेतों में धान रोपने और काटने के समय और गाँव में शादी-ब्याह के समय टोले-भर की औरतें उसकी सरदारी में रहती हैं। राजपूत, बाभन और मालिकटोले सभी बाबू-बबुआन से मुँहामुंही बात करती है, दिल्लगी का जवाब हँसकर देती है। और समय पड़ने पर हाथ चमका-चमकाकर झगड़ा भी करती है। एक बार तो सिंघ जी की भी सीसी सटका दिया था-'ऊँह बूढ़ा हो गया है, चाट लगी हुई है। सिर के बाल सादा हो गए हैं, मन का रंग नहीं उतरा है।...हमारा मुँह मत खुलवाइए सिंघ जी !...उससे सभी डरते हैं। न जाने कब किसका भेद खोल दे ! सभी उसकी खुशामद करते हैं; टोले-भर की जवान लड़कियाँ उसकी मुट्ठी में रहती हैं। उससे कोई बाहर नहीं। खलासी जी इस बार लालबाग मेला से उसके लिए असली गिलट का कंगना ले आए हैं। चाँदी की तरह चमक है। "...मौसी, किसी तरह फुलिया से चुमौना (सगाई) ठीक कर दो।"

अरे सूते ले देबौ हो प्यारे लाली पलँगिया से...

खाए ले गुआ खिल्ली पान जी!...

खलासी जी आज दिल खोलकर गा रहे हैं। उन्हें आज ऐसा लग रहा है कि वे खुद सदाब्रिज हैं ! लेकिन न तो उसकी फुलिया उसे रहने के लिए बिनती करती है और न मँहगूदास चुमौना की बात मंजूर करता है !..."अरे सूते ले देबौ हो प्यारे लाली पलँगिया से...!"

फुलिया क्या करे ? माँ-बाप के रहते वह क्या बोल सकती है ! अन्दर-ही-अन्दर मन जलकर खाक हो रहा है, लेकिन मुँह नहीं खोल सकती। लोग क्या कहेंगे !...रमजूदास की स्त्री फुलिया के जलते हुए दिल की बात जानती है। उस दिन फुलिया कह रही थी-“मामी, काली किरिया, किसी से कहना मत। खलासी जी इतने दिनों से दौड़ रहे हैं। बाबा कोई बात साफ-साफ नहीं कहते हैं। आखिर वह बेचारा कब तक दौड़ेगा ? यहाँ नहीं तो कहीं और ढूँढ़ेगा। दुनिया में कहीं और तन्त्रिमा की बेटी नहीं है क्या ?...जब एक दिन कुछ हो जाएगा तो सहदेब मिसर देह पर माछी भी नहीं बैठने देगा। तब करो खुशामद नककट्टी चमाइन की और चिचाय की माँ की ! मुसब्बर चबाओ और ऐंडी से पेट को आँटा की तरह गुँथवाओ। उस बार जोतखी जी का बेटा नामलरैन ने क्या दिया ? अन्त में नककट्टी को गाभिन बकरी देकर पीछा छुड़ाया..."

याद जो आवे है प्यारी तोहरी सुरतिया से

शाले करेजवा में तीर जी...!

खलासी जी का तीर खाया हुआ दिल तड़प रहा है। फुलिया क्या करे ? लेकिन रमजूदास की स्त्री का मुँह कौन बन्द कर सकता है ?..."अरे फुलिया की माये ! तुम लोगों को न तो लाज है और न धरम। कब तक बेटी की कमाई पर लाल किनारीवाली साड़ी चमकाओगी ? आखिर एक हद होती है किसी बात की ! मानती हूँ कि जवान बेवा बेटी दुधार गाय के बराबर है। मगर इतना मत दूहो कि देह का खून भी सूख जाए।"

"अरे हाँ-हाँ, बेटा-बेटी केकरो, घीढारी करे मंगरो। चालनी कहे सूई से कि तेरी पेंदी में छेद ! हाथ में कंगना तो चमका रही हो, खलासी को एक पुड़िया सिन्दूर नहीं जुटता है ?" फुलिया की माँ ने जब से रमजूदास की स्त्री के हाथ कंगना देखा है, उसका कलेजा जल रहा है। मँहगूदास पर गुस्सा करने से कोई फायदा नहीं। खलासी की बुद्धि ही मारी गई है। रमजू की स्त्री को कुटनी बहाल किया है, कंगना दिया है। रमजू की स्त्री काली माई है जो लोग उसकी बात को मान लेंगे।

"मुँह सँभालकर बात कर लेंगड़ी ! बात बिगड़ जाएगी। खलासी हमारा बहन-बेटा है। बहन-बेटा लगाकर गाली देती है ? गाली हमारे देह में नहीं लगेगी। तेरे देह में तो लगी हुई है। अपने खास भतीजा तेतरा के साथ भागी तू और गाली देती है हमको ? सरम नहीं आती है तुझको ! बेसरमी, बेलज्जी ! भरी पंचायत में जो पीठ पर झाड़ की मार लगी थी सो भूल गई ? गुअरटोली के कलरू के साथ रात-भर भैंस पर रसलील्ला करती थी सो कौन नहीं जानता है। तूं बात करेगी हमसे ?"

"रे, सिंघवा की रखेली ! सिंघवा के बगान का बम्बै आम का स्वाद भूल गई। तरबन्ना में रात-रात-भर लुकाचोरी मैं ही खेलती थी रे ? कुरअँखा बच्चा जब हुआ था तो कुरअँखा सिंघवा से मुँह-देखौनी में बाछी मिली थी, सो कौन नहीं जानता ?"

"...एतना बात सुनते ही सदाब्रिज फिर मूर्च्छित होकर धरती पर गिर पड़ा।..."

मँहगूदास के घर के पास होनेवाली सुरंगा-सदाब्रिज की कथा में औरतों के झगड़े से कोई बाधा नहीं पहुँचती है। औरतों के झगड़े पर यदि मर्द लोग आँख-कान देने लगें तो हुआ ! औरतों के झगड़े का क्या ? अभी झगड़ा किया, एक-दूसरे को गालियाँ सुनाईं, हाथ चमका-चमकाकर, गला फाड़-फाड़कर एक-दूसरे के गड़े हुए मुर्दे उखाड़े गए, जीभ की धार से बेटा-बेटी की गर्दन काटी गई, काली माई को काला पाठा कबूला गया, हाथ और मुँह को कोढ़-कुष्ठ से गलाने की प्रार्थना की गई और एक-दो घंटे के बाद ही सफाई। मेल-मिलाप हो गया। एक-दूसरे के हाथ से हुक्का लेकर गुड़गुड़ाने लगीं। साग 'माँगकर ले गईं और बदले में शकरकन्द भेज दिया-“कल साम को मालिक के खेत से अँधेरे में उखाड़ लाया है लड़के ने। मालिक देखते तो पीठ की चमड़ी खींच लेते।"

पहले झगड़ा का सिरगनेस दो ही औरतों से होता है। झगड़े के सिलसिले में एक-एक कर पास-पड़ोस की औरतों के प्रसंग आते-जाते हैं और झगड़नेवालियों की संख्या बढ़ती जाती है। झगड़े से उनके कामकाज में भी कोई बाधा नहीं पहुँचती है। काम के साथ-साथ झगड़ा भी चल रहा है। जब सारे गाँव की औरतें झगड़ने लगती हैं, तब कोई किसी की बात नहीं सुनतीं; सब अपना-अपना चरखा ओंटने लगती हैं...लेकिन फुलिया आज झगड़े में हिस्सा नहीं ले रही है। वह टट्टी की आड़ में खड़ी होकर सुरंगा-सदाब्रिज की कथा सुन रही है।...खलासी जी के गले में जादू है। ओझा गुनी आदमी है। कथा और गीत में फुलिया यह ही भूल जाती है कि सहदेब मिसर शाम से ही कोठी के बगीचे में उसके इन्तजार में मच्छड़ कटवा रहा है।...खलासी के गले में जादू है।

"मामी"

“क्या है रे ? बोल ना ! सहदेब मिसरवा के पास जाएगी क्या ?"

"नहीं मामी, एक बात कहने आई हूँ। काली किरिया, किसी से कहना मत।... खलासी जी तो तुम्हारे गुहाल में सोते हैं न ? काली किरिया !"

सुरंगा-सदाब्रिज की कथा समाप्त हो गई है। झगड़ा लंकाकांड तक पहुँचकर शेष हो गया। सहदेब मिसर मच्छड़ों से कब तक देह का खून चुसवाते ?...साला खलसिया ! साली हरामजादी !...अच्छा, कल देखूँगा।

गाँव में सन्नाटा छाया हुआ है और रमजू की स्त्री के गुहाल में सुरंगा कह रही है सदाब्रिज से, "अभी नहीं, जब बाबा चुमौना के लिए राजी नहीं होंगे तब मैं तुम्हारे के साथ भाग चलूंगी।"

"उनको राजी कैसे किया जाए ? कौन एक मिसर है, सुना है...।" सदाब्रिज बेचारा कहता है।

"सब झूठी बात है। तुम बालदेव जी से कहो।"

"कौन बालदेव ! पुरैनियाँ आसरमवाला ?"

"हाँ। सभी उनकी बात मानते हैं ! बाबू-बबुआन भी उनसे बाहर नहीं। तुम बन्दगी मत करना, जै हिन्न कहना।"

"लेकिन वह तो हम पर बड़ा नाराज है। देश दुरोहित' के फिरिस में नाम दे दिया है।

"...माँ के लिए नाक की बुलाकी ले आना, असली पीतल की बुलाकी।"

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

18 जुलाई 2022
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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

18 जुलाई 2022
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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

18 जुलाई 2022
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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

18 जुलाई 2022
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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

18 जुलाई 2022
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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

18 जुलाई 2022
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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

18 जुलाई 2022
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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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