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भाग 18

18 जुलाई 2022

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अठारह

"क्या नाम ?"

"सनिच्चर महतो।"

"कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।...इधर आओ।...ज़ोर से साँस लो।...एक-दो-तीन बोलो।...ज़ोर से। हाँ, ठीक है।"

"क्या नाम ?"

"दासू गोप।"

"पेट देखें ?..हूँ !..पिल्ही है। सूई लगेगी। सूई के दिन पुरजी लेकर आना। कल , खून देने के लिए सुबह ही आ जाना। समझे !"

"क्या नाम ?"

"निरमला।"

"डागडरबाबू !" एक बूढ़ा हाथ जोड़कर आगे बढ़ आता है। गिड़गिड़ाता है-"हमारी बेटी है। आज से करीब एक साल पहले भोंमरा ने एक आँख में झाँटा मारा। इसके बाद दोनों आँखें आ गईं। बहुत किस्म की जंगली दवा करवाए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अब तो एकदम नहीं सूझता।"

बला की खूबसूरत है यह निरमला। दूध की तरह रंग है चेहरे का।...विशुद्ध मिथिला की सुन्दरता। भौरे ने गलती नहीं की थी। आँखें देखें !...और आगे बढ़ आइए।... आह !...एक बूँद आईड्राप के बगैर दो सुन्दर आँखें सदा के लिए ज्योतिहीन हो गईं।...अब तो इलाज से परे हैं।...

डाक्टर ने आँखों की पपनियाँ उलटकर रोशनी की हल्की रेखा भी खोजने की चेष्टा की।...ऊँहूँ ! पुतलियाँ कफ़न की तरह सफेद हो गई हैं। वह सोचता है, यदि तूलिका से इन पुतलियों में रंग भरा जा सकता ! हाँ, कोई चित्रकार ही अब इन आँखों को सुन्दर बना सकता है, ज्योति दे सकता है।

"डागडरबाबू !" रोगिनी कहती है। आवाज़ में कितनी मिठास है ! "बहुत नाम सुनकर आई हूँ। बहुत उम्मीद लेकर आई हूँ, बाईस कोस से। भगवान आपको जस दें ।"

प्रकाश दो ! प्रकाश दो ! अँधेरे में घुटता हुआ प्राणी छटपटा रहा है, आत्मा विकल है-रोशनी दो ! डाक्टर क्या करे ?...डाक्टर को भावुक नहीं होना चाहिए।

"घबराइए नहीं, दवा दे रहा हूँ। यहाँ ठीक नहीं होगा तो पटना जाना पड़ेगा।"

"हाँ, दूसरा रोगी !...क्या नाम है ?"

"रामचलित्तर साह।"

"क्या होता है?"

“जी ! कुछ खाते ही कै हो जाता है। पानी भी..."

"कब से ?"

“सात दिन से।"

"अरे ! सात दिन से !...जरा इधर आओ।"

“जी? बेमारी तो घर पर है।"

"घर कहाँ ?"

"जी, सरसौनी बिजलिया। यहाँ से कोस दसेक है।"

हठात् सभी रोगी एक ओर हट जाते हैं, खूँखार जानवर को देखकर जिस तरह गाय-बैलों का झुंड भड़क उठता है; सभी के चेहरे का रंग उतर जाता है। औरतें अपने बच्चे को आँचल में छिपा लेती हैं। सबकी डरी हुई निगाहें एक ही ओर लगी हुई हैं।

डाक्टर उलटकर देखता है-एक अधेड़ स्त्री।...भद्र महिला !

"कहिए, क्या है ?"

"डागडरबाबू ! यह मेरा नाती है, बस यही एक नाती ! मेरी आँखों का जोत है यह। एक साल से पाखाने के साथ खून आता है। इसको बचा दीजिए डागडरबाबू ! ...यह नहीं बचेगा।"

“घबराइए नहीं।...इधर आओ तो बाबू ! क्या नाम है ?...गनेश ! वाह ! जरा पेट दिखलाइए तो गनेश जी !"

गनेश की नानी दवा लेकर चली जाती है। रोगियों का झुंड फिर डाक्टर के टेबल को घेर लेता है।

चिचाय की माँ कहती है, “पारबती की माँ थी। डाइन है ! तीन कुल में एक को भी नहीं छोड़ा। सबको खा गई। पहले भतार को, इसके बाद देबर-देबरानी, बेटा-बेटी, सबको खा गई। अब एक नाती है, उसको भी चबा रही है।"

चिचाय की माँ ने ऐसा मुँह बनाया मानो वह भी कुछ चबा रही हो।...डाक्टर चिचाय की माँ को देखता है।...काली, मोटी, गन्दी और झगड़ालू यह बुढ़िया चिचाय की माँ, जो बेवजह बकती रहती है, चिल्लाती रहती है।...यह डाइन नहीं ? सुमरितदास उस दिन कहता था-"चिचाय की माये तो जनाना डागडर है। पाँच महीने के पेट को भी इस सफाई से गिरा देती है कि किसी को कुछ मालूम भी नहीं होता।" यह डाइन नहीं और गनेश की नानी डाइन है ? आश्चर्य !

...गनेश की नानी ! बुढ़ापे में भी जिसकी सुन्दरता नष्ट नहीं हुई, जिसके चेहरे की झुर्रियों ने एक नई खूबसूरती ला दी है। सिर के सफेद बालों को धुंघराले लट ! होंठों की लाली ज्यों-की-त्यों है। ठुड्डी में एक छोटा-सा गड्ढा है और नाक के बगल से एक रेखा निकल नीचे ठुड्डी को छू रही है। सुन्दर दन्तपंक्तियाँ !...जवानी की सुन्दरता आग लगाती है, और बुढ़ापे की सुन्दरता स्नेह बरसाती है। लेकिन लोग इसे डाइन कहते हैं। आश्चर्य !

"कहाँ रहती है ?"

"इसी गाँव में ! कालीचरन का घर देखा है न ! उसी के पास। बैस बनियाँ है।...कितना ओझागुनी थक गया, इसको बस नहीं कर सका। जितिया परब (जीताष्टमी) की रात में कितनी बार लोगों ने इसको कोठी के जंगल के पास गोदी में बच्चा लेकर, नंगा नाचते देखा है। गैनू भैंसवार ने एक बार पकड़ने की कोशिश की थी। ऐसा झरका बान (अग्निबाण) मारा कि गैनू के सारे देह में फफोले निकल आए। दूसरे ही दिन गैनू मर गया।..."

रोज रात में डाक्टर केस-हिस्ट्री लिखने बैठता है।...अभी उसके हाथ में कालाआजार के पचास ऐसे रोगी हैं, जिनके लक्षण कालाआजार के निदान को भटकानेवाले साबित हो सकते हैं।

एक : (क) सेबी मंडल, उम्र 35, हिन्दू (मद), गाँव मेरीगंज, पोलियाटोली। तकलीफ : दाँत और मसूड़े में दर्द । दतुअन करने के समय खून निकलना, मुँह महकना, देह में खुजली, भूख की कमी। बुखार : नहीं। निदान : पायोरिया। दवा : कारबोलिक की कुल्ली। विटामिन सी का इंजेक्शन।

(ख) पन्द्रह दिन के बाद : शाम को सरदर्द की शिकायत । बुखार 99.5, रात में पसीना।...कैलशियम पाउडर।

(ग) पाँच दिन के बाद पेट खराब हो गया है। बुखार : 100। कार्मिनटिव मिक्शचर। कालाआजार के लिए खून लिया गया।

(घ) अल्डेहाइट टेस्ट का फल : कालाआज़ार ! चिकित्सा : नियोस्टिबोसन का इंजेक्शन।

दो : (क) तेतरी, उम्र : 17, हिन्दू (औरत), गाँव पासवानटोली, मेरीगंज।

तकलीफ : हड्डियों के हर जोड़ में दर्द। कभी-कभी नाक से खून गिरता है। बुखार : नहीं (थर्मामीटर से देखा 99.5) भूख : नहीं। रोग अनुमान : गठिया, वात।

दवा : विटामिन बी का इंजेक्शन। मालिश का तेल। डब्ल्यू.आर. के लिए खून लिया।

(ख) डब्ल्यू. आर. (गरमी) : (-) गरमी नहीं।

(ग) एक सप्ताह बाद नाक से खून गिरा।...पेट खराब हुआ। कालाआज़ार के लिए खून लिया।

(घ) अल्डहाइड टेस्ट का फल : सन्देहात्मक। फिर खून लिया।

(ङ) ब्रह्मचारी-टेस्ट का फल : 

चिकित्सा-युरिया स्टिबामाइन (ब्रह्मचारी)।

तीन : (क) रामेसर का बच्चा : उम्र 2 महीने। नाभी में घाव। रात में रोता है, दूध फेंकता है।...माँ को कैलशियम पाउडर।

(ख) एक सप्ताह के बाद सारे देह में चकत्ते। अनुमान : एलरजिक।

(ग) चार दिन के बाद : चकत्तों में पानी भर गया है। डब्ल्यू. आर. के लिए माँ का खून लिया। फल : (-) नहीं।।

(घ) कालाआजार के लिए माँ का खून लिया। फल : (-) नहीं। कालाआजार के लिए बच्चे का खून लिया। फल : 

 कालाआजार।

और इस बच्चे की यदि मृत्यु हुई तो जरूर किसी डाइन के मत्थे दोष मढ़ा जाएगा। देह में फफोले ! गनेश की नानी पर ही सन्देह किया जाएगा। गनेश की नानी ! न जाने क्यों वह गनेश की नानी से कोई प्यारा-सा सम्बन्ध जोड़ने के लिए बेचैन हो गया है। कमली कहती है, “मौसी ! मौसी में बहुत गुन हैं। सीकों से बड़ी अच्छी चीजें बनाती है-फूलदानी, डाली, पंखे। कशीदा कितना सुन्दर काढ़ती है ! पर्व-त्योहार और शादी-ब्याह में दीवार पर कितना सुन्दर चित्र बनाती है-कमल के फूल, पत्ते और मयूर ! चौक कितना सुन्दर पूरती है !"...वह भी उसे मौसी कहेगा !

“मौसी !"

"कौन ?"

"मैं हूँ। डाक्टर। गनेश कहाँ है ?"

"डागडरबाबू ! आप ? आइए, बैठिए। गनेश सो रहा है।...मैं तो अकचका गई, किसने मौसी कहकर पुकारा !" बूढ़ी की आँखें छलछला आती हैं।

“मौसी ! सुमा है तुम एक खास किस्म का हलवा बनाती हो ?" मौसी हँस पड़ती है, “अरे दुर ! किसने कहा तुमसे ? पगली कमली ने कहा होगा जरूर।...कमली कैसी है अब ? इधर तो बहुत दिन से आई ही नहीं। पहले तो रोज आती थी।" ।

“अच्छी है।...अच्छी हो जाएगी। मौसी ! एक बात पू ?...तुम्हारी कोई बहन, माँ, बेटी या और कोई...सहरसा इलाके में, हनुमानगंज के पास कभी रहती थी ?" डाक्टर अपने बेतुके सवाल पर खुद हँसता है।

“सहरसा इलाके में हनुमानगंज के पास ?...रहो, याद करने दो।...नहीं तो ? क्यों, क्या बात है ?"

“यों ही पूछता हूँ। ठीक तुम्हारे ही जैसी एक मौसी वहाँ भी है।" बात को बदलते हुए डाक्टर कहता है, “मुझे एक फूल की डाली दो न, मौसी !"

उफ !...सचमुच डाइन है यह बुढ़िया। इसकी मुस्कराहट में जादू है। स्नेह की बरसा करती है। ऐसी आकर्षक मुस्कराहट ?

गनेश बड़ा भोला-भाला लड़का है ! बड़ा खूबसूरत ! गोरा रंग, लाल ओठ और धुंघराले बाल उसे नानी के पक्ष से ही मिले हैं।...बड़ा अकेला लड़का मालूम होता है। मौसी कहती है, “किसके साथ खेले ! गाँव के बच्चे अपने साथ खेलने नहीं देते।...मेरे ही साथ खेलता है।"

“गनेश जी, जरा पेट दिखाइए तो !...मौसी ! कल इसे सुबह ले आना तो ! खून लूँगा। होंठ मुरझाए रहते हैं।"

गनेश को अब एक मामा मिल गया।

"सचमुच ऐसा हलवा कभी नहीं खाया मौसी !...विश्वास करो।...गनेश को भी दो ! कोई हरज नहीं।"

"मामा देखो!" गनेश गले में स्टेथस्कोप लटकाकर हँसता है।

"वाह ! मेरा भानजा डाक्टर बनेगा।"

डाक्टर जब मौसी के घर से निकला तो उसने लक्ष्य किया, कालीचरन के कुएँ पर पानी भरनेवाली स्त्रियों की भीड़ लग गई है। सभी आँखें फाड़े, मुँह बाए, आश्चर्य से डाक्टर को देखती हैं-"इस डाक्टर को काल ने घेरा है सायद।"

"लाल सलाम !" कालीचरन मुट्ठी बाँधकर सलाम करता है, और डाक्टर को एक लाल परचा देते हुए कहता है, “कामरेड मन्त्री जी आपको पहचानते हैं डाक्टर साहब !...हाँ, कृष्णकान्त मिश्र जी !"

आइए ! आइए ! जरूर आइए !

कमानेवाला खाएगा, इसके चलते जो कुछ हो !

किसान राज : कायम हो।

मजदूर राज : कायम हो।

प्यारे भाइयो ! ता. ......को मेरीगंज कोठी के बगीचे में किसानों की एक विशाल सभा होगी। सोशलिस्ट पार्टी पूर्णिया के सहायक मन्त्री साथी गंगाप्रसादसिंह यादव सैनिक जी...।

"परसों सभा है ! आइएगा।...लाल सलाम !"

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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भाग 34

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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भाग 35

18 जुलाई 2022
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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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भाग 36

18 जुलाई 2022
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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

18 जुलाई 2022
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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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