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भाग 42

18 जुलाई 2022

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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !”

हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं।

शिवशक्करसिंघ पूर्णिया से लौट आए हैं। पुत्र का दाह-कर्म करके लौटे हुए पिता को देखकर डर लगता है। झुकी कमर पर हाथ रख शिवशक्करसिंघ बैलों की ओर देख रहे हैं। दो दिनों से घास-पानी छोड़े बैठे है दोनों बैल। आँखों में आँसू भर-भरकर, दोनों कभी-कभी चौकन्ना होकर इधर-उधर देखते हैं। फिर एक लंबी साँस लेकर एक-दूसरे को देखते हैं। एक-दूसरे को जीभ से चाटते हैं, मानो ढाढ़स बँधा रहे हों। ...हरगौरी इन्हें कितना प्यार करता था ! जब ये दो साल के बाछे थे, तभी से हरगौरी इनके साथ खेलता था | उसकी बोली सुनते ही दोनों खुशी से नाचने लगते थे। जान से भी बढ़कर प्यार करता था वह...।

शिवशक्करसिंह की आँखें आँसू से धुंधली हो रही हैं।...जब तक हरगौरी की लाश नहीं मिली थी, उन्हें अपने गिरफ्तार होने का डर लगा हुआ था। दाह-क्रिया समाप्त करके वोकील साहब ने रामकिरपालसिंह को रोका, तो शिवशक्करसिंह को लगा कि पुल नीचे धंस रहा है, धरती हिल रही है।

दारोगा साहब रामकिरपालसिंह को गिरिफ्त करके इधर ले गए और शिवशक्करसिंह अपने साथियों के साथ वहीं से लौट गए। टीसन तक दौड़ते ही आए थे। न जाने दारोगा साहब के मन में कब क्या हो ?...भाग की बात हई कि बिरजसिंह फिसलकर गिर गए और गाड़ी खड़ी हो गई, नहीं तो शिवशक्करसिंह वहीं लाटफारम पर ही खड़े रह जाते। सबने तो कूद-कूदकर हत्था पकड़ लिया, सिंघ जी ने ज्यों ही एक हत्था में हाथ लगाया कि एक काले कोटवाले ने पकड़कर खींच लिया। सिकन्नर के पास जाते-जाते बिरजूसिंघ गिर गए तो गाडी खडी हो गई। बेचारे बिरजूसिंघ का एक हाथ कट गया। गाटबाबू (गार्डबाबू) उसको कटिहार इसपिताल ले गए। जब तक घर नहीं पहुँच गए थे, शिवशक्करसिंह को भरोसा नहीं था। क्या जाने किधर से लाल पगड़ीवाला निकल पड़े ! हसलगाँव हाट के पास एक लाल चादरवाले को देखकर उनका कलेजा धुकधुका उठा था।...भले आदमी ने लाल चादर की पगड़ी क्यों बाँध ली थी ?

घर जाते ही हरगौरी की माँ को छाती पीटते और जमीन पर लोटकर रोते देखा, तो वे भी बच्चों की तरह बिलख-बिलख रोने लगे। 'पुबरिया घर' के ओसारे पर हरगौरी की विधवा बहू चूँघट काढ़े रो रही थी। सामने दीवार पर हरगौरी का फोटो टँगा हुआ है। रौतहट मेला में छपाया था-पगड़ी बाँधकर, हाथ में तलवार लेकर।

"बेटा रे !...गौरी बेटा रे !"

शिवशक्करसिंह बैल की गर्दन पकड़कर रो रहे हैं- "बेटा रे ! गौरी बेटा रे !"

सुमरितदास के कान में सबसे पहले आवाज पहुँचती है-ओ ! शिवशक्करसिंह आ गए शायद !

"शिवशक्करबाबू ! रोइए मत ! देखिए, कलेजा पोख्ता कीजिए।...आप ही इतना जी छोटा कीजिएगा तो औरतों का क्या हाल होगा ? हे... ! हरगौरी की माँ मर जाएगी। उसको समझाइए सिंह जी ! रोइए मत ! सुमरितदास शिवशक्करसिंह को अकबार (बाँहों में भरकर, अँकवार) में पकड़कर ले जाते हैं, समझाते हैं तथा आस-पास खड़े लोगों से कहते हैं- "भाई ! क्या समझाया जाए, किसको समझाया जाए ! पुत्रसोक से बढ़कर और कोई सोक क्या हो सकता है ? हम क्या समझाएँगे ! हमको तो...खुद भोगा हुआ है। एक-एक कर चार लाल को कमला किनारे अपने हाथ से जला आए हैं। कलेजा पत्थल हो गया है। पुत्रसोक ! हे भगवान ! किसी को न हो।"

शिवशक्करसिंह और जोर-जोर से रोने लगते हैं। धीरे-धीरे भीड़ बढ़ती जाती है।

सभी आकर यही जानना चाहते हैं कि और आगे क्‍या हुआ ? - हरगौरी की मृत्यु से ज्यादा दिल दहलानेवाली बात थी रामकिरपालसिंघ की गिरफ्तारी ! क्‍यों गिरफ्तारी किया ? कैसे गिरफ्तार हुआ ? और किन लोगों पर वारंट है ? तहसीलदार बिस्नाथ पर भी ?

“तहसीलदारसाहब आ रहे है। मोढ़ा दो रे !”

तहसीलदार को देखते ही शिवशक्करसिंघ फिर धरती पर लोट गए और जोर- जोर से रोने लगे-“बिस्नाथ भैया ! कलेजा टूक-टूक हो रहा है। भैया हो! "

तहसीलदारसाहब समझाते है-“शिवशक्करसिंघ, रोइए मत ! यह रोना तो जिंदगी-भर के लिए मिला है। एक दिन रोने से दिल ठंडा नहीं होगा। लेकिन, अभी रोने का समय नहीं। मालूम होता हं, मुकदमा खराब हो गया। सिंघ जी के गिरफ्तार होने का मतलब ही है कि मुकदमा खराब हो गया। अब किसके सिर पर कौन आफत है, कौन जाने ! खूनी केस है ! उठिए, आपसे प्राइबिट में एक बात करना है।”

शिवशक्करसिंघ तुरत उठकर खड़े हो गए और तहसीलदार साहब के साथ दरवाजे से जरा दूर चले गए। सुमरितदास प्राइबिट सुनेगा ...तब ठीक है, असल बात का पता भी तुरत लग जाएगा।

दरवाजे पर खड़े सभी एक ही साथ लंबी साँस छोड़ते हैं-अब किसके सिर पर क्‍या आफत है, कौन जाने ! हे भगवान !

“परनाम जोतखी काका !”

जोतखी काका के साथ खेलावन भी आया है। जोतखी जी पास के खाली मोढ़े पर बैठ जाते हैं। खेलावन भी तहसीलदार साहब के प्राइबिट में जाकर शरीक हो जाता है। जोतखी जी धीमी आवाज में लोगों से कहते हैं-तुम लोग यहाँ खड़े होकर क्‍या कर रहे हो ?” उनके कहने का ढंग ही ऐसा था, जिसके माने निकलते थे-“तुम लोगों की जान बलाई हुई क्‍या ? यहाँ से जितना जल्दी हो सके, खिसक जाओ ! वर्ना क्‍या ठिकाना !”

सब जल्दी से मौका देखकर उठ खड़े होते हैं। जोतखी जी कहते हैं-“यहीं चले आइए तहसीलदार ! सभी चले गए।”

“-लेकिन बात यह है कि एसपी ने तो यह नोक्स पकड़ा है-तहसीलदार विश्वनाथ की जमीन का बीहन बचाने के लिए तहसीलदार हरगौरी क्‍यों गया था ?” तहसीलदारसाहब कहते हैं।

“रामकिरपाल भैया तो हैं नहीं। हम आपको क्‍या क्या कहें ?'

'लेकिन मोकदमा तो आपका ही है। वाजिबन खर्चा तो ...आपको ही देना चाहिए ।” शिवशक्करसिंघ गिड़गिड़ाकर कहते हैं।

जोतखी जी कुछ कहने के लिए खखारते हैं, लेकिन सुमरितदास बेतार बीच में ही जवाब देता है-“शिवशक्करसिंघ मोकदमा तहसीलदार बिस्नाथ का नहीं, तहसीलदार हरगौरी का है। पूछिए कैसे ? तो बात यह है कि असल में यह सब 'खुंखार' बेदखली-नीलामी तो हरगौरीबाबू ने ही शुरू किया था। हमसे ज्यादे कौन जानेगा ?... तहसीलदारी कारबार को आप क्या समझिएगा ? यदि बेदखली और नई बन्दोबस्ती की बात नहीं उठती तो गाँव में यह लंकाकांड नहीं होता। पहले तो तहसीलदार हरगौरी ने ही सुरू किया। तहसीलदार बिस्नाथ उनके मदतगार हुए तो इन्हीं की जमीन पर संथालों ने धावा कर दिया। अब बताइए कि असल में यह मोकदमा किसका हुआ ? असल बात हम जानते हैं...दारोगा को दस हजार देना ही होगा।"

- खेलावन कहता है-“तहसीलदार, अब जैसे भी हो, सब कोई सलाह करके गाँव के इस गहर को टालिए।"

"रामकिरपालभैया हैं नहीं, हम क्या कहेंगे?" शिवशक्करसिंह बस यही एक जवाब देते हैं।

बहुत देर के बाद जोतखी जी कहते हैं, “जो भी हो न्याय बात तो यही है कि विश्वनाथबाबू इस मुकदमे में अभी पूरी पैरवी करें।"

अन्त में यही तय हुआ कि सबसे पहले रामकिरपालसिंह जी को जमानत पर छुड़ाया जाए। इसके बाद सब मिलकर, जो वाजिब हो, सोचें। जो खर्चा होगा, सिंह जी लोगों को देना होगा।

जोतखी जी ने मुस्कराते हुए कहा, “आज 'शोशलिस्ट' लोग शोक-शभा करने गए। एक भी आदमी शभा में नहीं गया। अब लोग शभा का अर्थ समझ रहे हैं !... हुँ, कोई बात हुई तो फुच्च से शभा ! हम कहते थे न, गाँव में एक दिन चील-काग उड़ेगा !"

"जोतखी काका, सभा-जुलूस को दोख मत दीजिए।" कालीचरन बगल में, अँधेरे में खड़ा था।

"आओ काली !" तहसीलदार साहब हँसते हुए कहते हैं, “तुम लोगों को गवाही देनी होगी, सो जानते हो न ? बालदेव जी को भी। तुम्हीं दोनों लीडरों की गवाही पर सारी बात है।"

कालीचरन ने मोढ़े पर बैठते हुए कहा, “गवाही देनी होगी तो देंगे। जो बात जानते हैं वह कहने में क्या है ! दारोगा हो, इसपी हो, चाहे मजिस्टर-कलक्टर हो। सच्ची बात कहने में किसका डर है !"

"वाजिब बात ! वाजिब बात !" जोतखी जी को छोड़कर बाकी सभी कहते हैं-वाजिब बात !"

तहसीलदार साहब का नौकर रनजीत दौड़ता-हाँफता आता है, “कमली दैया... फिर !"

"तो यहाँ क्या है ? डाक्टर के यहाँ जाओ!" तहसीलदार साहब झुंझलाते हुए उठते हैं, "भगवान जाने क्या दवा करते हैं डाक्टर लोग ! इतने दिन हो गए, बीमारी सोलह आना से बारह आना भी नहीं हुई !"

....तो असल में बात खुल गई ! मामले-मुकदमे की सोलहों आने बात जो है" कालीचरन और बालदेव के हाथ में है !

"शिव हो ! शिव हो !" जोतखी काका उठते हुए कहते हैं, “कालीबाबू, कल जरा अपना हाथ दिखाना तो ! देखें, तुम्हारे हाथ की रेखा क्या कहती है। जन्मदिन और महीना याद है ?"

जोतखी जी के पेट में डर समा गया है-कालीचरन और बालदेव के ही हाथ में जब सबकुछ है तो वे जिसका नाम बतला दें, वह गिरिफ्फ हो जाएगा-तुरत। और कालीचरन, कालीचरन ही क्यों, बालदेव भी उन पर मन-ही-मन नाराज है ?...बालदेव का तो उतना डर नहीं, मगर कलिया...शिव हो ! शिव हो...

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रचनाएँ
मैला आँचल
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मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
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मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

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‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

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मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

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एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

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भाग 2

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पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

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भाग 3

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डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

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भाग 4

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

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भाग 5

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मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

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भाग 6

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बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

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भाग 7

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प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

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भाग 8

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लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

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भाग 9

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डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

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भाग - 10

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डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

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भाग 11

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नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

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भाग 12

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मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

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भाग 13

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तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

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भाग 14

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चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

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भाग 15

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सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

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भाग 16

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मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

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भाग 17

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चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

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भाग 18

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अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

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भाग 19

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चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

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भाग 20

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कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

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भाग 21

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रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

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भाग 22

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सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

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भाग 23

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गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

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भाग 24

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चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

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भाग 25

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बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

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भाग 26

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बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

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भाग 27

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डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

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भाग 28

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डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

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भाग 29

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कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

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भाग 30

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अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

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भाग 31

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मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

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भाग 32

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बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

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भाग 33

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अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

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फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

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डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

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भाग 37

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तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

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भाग 38

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दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

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भाग 39

18 जुलाई 2022
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संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

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भाग 40

18 जुलाई 2022
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जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

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भाग 41

18 जुलाई 2022
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नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

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भाग 42

18 जुलाई 2022
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हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

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भाग 43

18 जुलाई 2022
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लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

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भाग 44

18 जुलाई 2022
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इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

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