shabd-logo

भाग 21

18 जुलाई 2022

11 बार देखा गया 11

रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए !

यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं। खेती-बारी के समय रात को ही जनों (मजदूर) को ठीक करना होता है, सूरज उगने से एक घंटा पहले ही खेतों पर मजदूरों को पहुँच जाना चाहिए। इसलिए सभी बड़े किसान शाम या रात को ही अपने-अपने जनों को कह आते हैं। तन्त्रिमाटोली में जब से खलासी का आनाजाना शुरू हुआ है, तभी से नई-नई बातें सुनने को मिल रही हैं। देखा-देखी, दूसरे टोले में भी नियम-कानून, पंचायत और बन्दिश हो गई है। बेचारे सहदेव मिसर को रात-भर तन्त्रिमा लोगों ने बाँधकर रखा।...फुलिया के घर में घुसा था तो फुलिया ने हल्ला क्यों नहीं किया ? जिसके घर में घुसा उसकी नींद भी नहीं खुली, माँ-बाप को आहट भी नहीं मिली और उसका कुत्ता भी नहीं दूंका। गाँव के लोगों को बेतार से खबर मिल गई। यह खलासी की बदमाशी है। रही हालत यही तो छोटे लोगों के टोले में जन के लिए जाना मुश्किल हो जाएगा। कौन जाने, किस पर कब झूठ-मूठ कौन-सी तोहमत लग जाए ? पंचायत होनी चाहिए। राजपूतों ने यदि इस पंचायत में ब्राह्मणों का पक्ष नहीं लिया तो ब्राह्मण लोग ग्वालों को राजपूत मान लेंगे।

"हमको कुछ नहीं मालूम," फुलिया पंचों के बीच हाथ जोड़कर कहती है, “जब आँगन में हल्ला होने लगा तब मेरी आँखें खुलीं।"

सहदेव मिसर के पास मँहगूदास के अंगूठे की टीप है-सादा कागज पर। मँहगू की टीक (चुटिया) सहदेव के हाथ में है। सहदेव जो चाहे कर सकता है। दोनों गायें और चारों बाछे कल ही खूटे से खोलकर ले जाएगा। इसके अलावा साल-भर का खरचा भी तो सहदेव ने ही चला दिया है। एक आदमी की मजदूरी से तो एक आदमी का भी पेट नहीं भरता।...लेकिन अब फुलिया के हाथ में ही सहदेव मिसर की इज्जत और अपने बाप की दुनिया है; उसकी बोली में जरा भी हेर-फेर हुआ कि सहदेव की इज्जत धूल में मिल जाएगी और उसके बाप की दुनिया भी उजड़ जाएगी।

पंचायत में गाँव-भर के छोटे-बड़े लोग जमा हुए हैं। तहसीलदार साहब पुरैनिया गए हैं। पंचायत में अकेले सिंघ जी बोल रहे हैं। काली टोपीवाले संयोजक भी हैं। बालदेव जी भी हैं। कालीचरन बिना बुलाए ही आया है। सिंघ जी अकेले ही जिरह-बहस कर रहे हैं। तहसीलदार साहब रहते तो थोड़ी सहूलियत होती सिंघ जी को।

"...बात पूछने पर एक घंटे में तो जवाब मिलता है।...हाँ, जब आँगन में हल्ला होने लगा तब तुम्हारी नींद खुली।...सुन लीजिए सभी पंच लोग।...अच्छा, जब तुम्हारी नींद खुली तो तुमने क्या देखा ?"

"सहदेव मालिक को आँगन में घेरकर सभी हल्ला कर रहे थे।"

"अच्छा, तुम बैठो। कहाँ, सहदेव मिसर ? अब आप बताइए कि मँहगूदास के यहाँ उतनी रात को आप क्यों गए थे ?"

“रात में हमारे पेट में जरा दर्द हुआ। लोटा लेकर बाहर निकले। जब दिसा-मैदान से हम लौट रहे थे तो देखा कि कमला किनारेवाले खेत में किसी का बैल गहूँम चर रहा है। इसीलिए मँहगू को जगाने गया था।"

"क्यों ?" “कमला किनारेवाली जमीन का पहरा करने के लिए मँहगूदास को ही दिया है।"

"अच्छा, तब ?"

"जब हम जा रहे थे तो रबिया और सोनमा को आपके खेत में सकरकन्द उखाड़ते - पकड़ा। दोनों को डाँट-डपट दिया। मँहगूदास को जगाकर जैसे ही हम उनके आँगन से निकल रहे थे कि रबिता, सोनमा, तेतरा और नकछेदिया ने हमको पकड़ लिया और हल्ला करने लगे।"

“क्या बताएँ, हमारा पाँच बीघा सकरकन्द इन्हीं सालों ने चुराकर खतम कर दिया।...अच्छा, आप बैठ जाइए।...कहाँ मँहगू?"

“जी सरकार," मँहगू बूढ़ा हाथ जोड़कर खड़ा होता है।

"सहदेव मिसर ने तमको जाकर जगाया था ?"

“जी सरकार !"

“अब पंच लोग फैसला करें कि असल बात क्या है।"

कालीचरन कैसे चुप रह सकता है ! पंचायत में एकतरफा बात नहीं होनी चाहिए। रबिया और सोनमा पार्टी का मेम्बर है। यह तो पंचायत नहीं, मुँहदेखी है। कालीचरन कैसे चुप रह सकता है-"सिंघ जी, जरा हमको भी कुछ पूछने दीजिए।"

पंचायत के सभी पंचों की निगाहें अचानक कालीचरन की ओर मुड़ गईं। सिंघ जी गुस्से से लाल हो गए। लेकिन पंचायत में गुस्सा नहीं होना चाहिए। राजपूतटोली के नौजवान आपस में कानाफूसी करने लगे। संयोजक जी ने पाकेट टटोलकर देख लिया-सीटी लाना भूल तो नहीं गए हैं ? जोतखी जी एतराज करते हैं-"कालीचरन को हम लोग पंच नहीं मानते।"

"तो पहले इसी बात का फैसला हो जाए कि पंचायत के कितने लोग हमको पंच मानते हैं और कितने लोग नहीं। एक आदमी के चाहने और न चाहने से क्या होता है !...अच्छा, पंच परमेसर ! क्या हमको इस पंचायत में बैठने, बोलने और राय देने का हक नहीं ? क्या हम इस गाँव के बासिन्द नहीं हैं ?" कालीचरन खड़ा होकर कहता है, "यदि आप लोग हमको पंच मानते हैं तो हाथ उठाइए।" "

गुमसुम बैठे हुए सैकड़ों मूक जानवरों के सिर में मानो अरना (जंगली) भैंसा के सींग जम गए। सैकड़ों हाथ उठ गए।

"दोनों हाथ नहीं, एक हाथ ! ठहरिए, गिनने दीजिए। एक...दो, तीन, चार, पाँच...एक सौ पाँच।"

बालदेव जी ने हाथ नहीं उठाया।

"एक सौ पाँच। अब जो लोग हमको पंच नहीं मानते, हाथ उठाएँ।...एक, दो, तीन, चार, पाँच...पन्द्रह।"

"सिर्फ पन्द्रह !" सिंघ जी को विश्वास नहीं होता। खुद गिनते हैं। राजपूत और ब्राह्मणटोली के लोग कहाँ चले गए ? जोतखी जी के लड़के नामलरैन ने भी कलिया के पक्ष में ही हाथ उठाया है ?...

“फुलिया !" कालीचरन की बोली सुनकर डर लगता है। फुलिया फिर खड़ी होती "देखो, यह पंचायत है। पंचायत में परमेसर रहते हैं। पंचायत में झूठ बोलने से . हाथोंहाथ इसका फल मिलता है। सच-सच बताओ ! सच्ची बात क्या है ?"  "..........."

"बोलो!"

"सहदेव मिसर हमारे घर में घुसे थे।"

"तुमने हल्ला क्यों नहीं किया ?"   

"..........."

“बोलो, डरने की कोई बात नहीं।"

"बाबा के डर से।"

"बाबा के डर से ?"

"हाँ, बाबा सहदेव मिसर का करजा धारते हैं।"

"बैठ जाओ।...मँहगू !"

मँहगू हाथ जोड़कर फिर खड़ा होता है।

"क्या बात है ?"

"..........."

"फुलिया जो कहती है, ठीक है ?"

"..........."

"डरो मत ! जो बात है, बताओ!"

"कौन गाछ ऐसा है जिसमें हवा नहीं लगती है और पत्ता नहीं झड़ता है !"

"दूसरों की बात मत कहो, अपनी बात बताओ !"

"अकेले हमको क्यों दोख देते हैं ? गाँव-भर का यही हाल है। कौन घर ऐसा है ..."

"मैं तुमसे पूछता हूँ।"

"पहले तुम अपनी माँ से जाकर इमान-धरम से पूछो कि तुम किसके बेटा हो।" जोताखी जी हिम्मत करके कहते हैं। क्रोध से उनकी आँखें लाल हो उठी हैं।

"जोतखी काका, हमको अपने बाप के बारे में मालूम है।"

"जोतखी जी अपनी स्त्री से पूछे कि उनके पेट में किसका बच्चा है।" चिल्लाकर कहता है।

"कौन नहीं जानता कि जोतखी जी का नौकर..."

“चुप रहो सुन्दर !" कालीचरन लोगों को शान्त करता है, "चुप रहो ! शान्ती ! शान्ती !"

'टू टू...टू टू,' संयोजक जी सीटी फूंकते हैं।

और पंचायत को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गए।

एक दर्जन से भी ज्यादा नौजवान राजपूतटोली से हाथ में लाठी लेकर दौड़ आए और पंचायत को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गए।

"सिंघ जी, इन लाठीवाले नौजवानों को आपने बुलाया है ?...तो आप पंचायत नहीं, दंगा करवाना चाहते हैं ?" कालीचरन पूछता है।

सिंघ जी कहते हैं, "अब यह पंचायत नहीं हो सकती। पाटीबन्दी से कहीं इंसाफ होता है ?"

सिंघ जी राजपूतटोली के पंचों के साथ उठ खड़े होते हैं। काली टोपीवाले जवान, सिंघ जी को, संयोजक जी को और राजपूतटोली के पंचों को चारों ओर से घेरे में लेकर, फौजी कवायद करते हुए चले जाते हैं।

जोतखी जी के साथ ब्राह्मणटोली के पंच लोग भी चूहेदानी में फँस गए हैं। खेलावनबाबू का सहारा है। बालदेव जी भी हैं। लेकिन कालीचरन का गुस्सा ?...

"तो पंचायत का यह फैसला है कि मँहगूदास अपनी बेटी फुलिया का चुमौना खलासी के साथ करा दे, और आज से सभी टोले के लोग बाबू लोगों पर नजर रखें।"

पंचायत के सभी पंच एक स्वर से कालीचरन की राय का समर्थन करते हैं। जोतखी जी भी हाथ उठाते हैं और बालदेव जी भी।...यह तो नियाय बात है, इसमें डिफेट करना अच्छा नहीं।

“सहदेव मिसर के पास सादे कागज पर मेरा अँगूठा का टीप है। यदि उसे भरकर नालिस कर दे तब ?" मँहगूदास गिड़गड़ाकर कहता है।

"सहदेव मिसर जब मुकदमा करेंगे, सभी पंच तुम्हारी गवाही देंगे। वह एक पैसा भी तुमसे नहीं पा सकते।"

45
रचनाएँ
मैला आँचल
0.0
मैला आँचल फणीश्वरनाथ 'रेणु' का प्रतिनिधि उपन्यास है। यह हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट रूप से जुड़े हुए थे, अत्यन्त जीवन्त और मुखर चित्रण किया है। फणीश्वरनाथ रेणु को ख्याति हिंदी साहित्य में अपने उपन्यास मैला आँचल से मिली है। इस उपन्यास के प्रकाशन ने उन्हें रातो-रात हिंदी के एक बड़े कथाकार के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। कुछ आलोचकों ने इसे गोदान के बाद इसे हिंदी का दूसरा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास घोषित करने में भी देर नहीं की।
1

मैला आँचल-प्रथम संस्करण की भूमिका

18 जुलाई 2022
10
0
0

‘मैला आँचल’ हिन्दी का श्रेष्ठ और सशक्त आंचलिक उपन्यास है। नेपाल की सीमा से सटे उत्तर-पूर्वी बिहार के एक पिछड़े ग्रामीण अंचल को पृष्ठभूमि बनाकर रेणु ने इसमें वहाँ के जीवन का, जिससे वह स्वयं ही घनिष्ट र

2

मैला आँचल-प्रथम खंड (भाग 1)

18 जुलाई 2022
9
1
0

एक गाँव में यह खबर बिजली की तरह फैल गई-मलेटरी ने बहरा चेथरू को गिरफ्तार कर लिया है और लोबिनलाल के कुँए से बाल्टी खोलकर ले गए हैं। यद्यपि 1942 के जन-आन्दोलन के समय इस गाँव में न तो फौजियों का कोई उत्

3

भाग 2

18 जुलाई 2022
3
0
0

पूर्णिया जिले में ऐसे बहुत-से गाँव और कस्बे हैं, जो आज भी अपने नामों पर नीलहे साहबों का बोझ ढो रहे हैं। वीरान जंगलों और मैदानों में नील कोठी के खंडहर राही बटोहियों को आज भी नीलयुग की भूली हुई कहानियाँ

4

भाग 3

18 जुलाई 2022
2
1
0

डिस्टीबोट के मिस्तिरी लोग आए हैं। बालदेव के उत्साह का ठिकाना नहीं है। आफसियरबाबू ने तहसीलदार साहब और रामकिरपालसिंघ के सामने ही कहा था"आप तो देश के सेवक हैं।" सबों ने सुना था। दुनिया में धन क्या है ? त

5

भाग 4

18 जुलाई 2022
2
0
0

सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महंथ साहेब सदा ब्रह्म बेला में उठते हैं। “हो रामदास। आसन त्यागो जी ! लक्ष्मी को जगाओ !...सतगुरु हो ! ये कभी जो बिना जगाए जागें। रामदास ! हो जी रामदास !" रामदास आँखें मलते हुए

6

भाग 5

18 जुलाई 2022
1
0
0

मठ पर गाँव-भर के मुखिया लोगों की पंचायत बैठी है। बालदेव जी को आज फिर 'भाखन' देने का मौका मिला है। लेकिन गाँव की पंचायत क्या है, पुरैनिया कचहरी के रामू मोदी की दुकान है। सभी अपनी बात पहले कहना चाहते है

7

भाग 6

18 जुलाई 2022
1
0
0

बालदेव जी को रात में नींद नहीं आती है। मठ से लौटने में देर हो गई थी। लौटकर सुना, खेलावन भैया की तबियत खराब है; आँगन में सोये हैं। यदि कोई आँगन में सोया रहे तो समझ लेना चाहिए कि तबियत खराब हुई है, बुख

8

भाग 7

18 जुलाई 2022
1
0
0

प्यारू को सबों ने चारों ओर से घेर लिया। डागडर साहेब का नौकर है। डागडर साहेब कब तक आएँगे? तुम्हारा क्या नाम है ? कौन जात है ? दुसाध मत कहो, गहलोत बोलो गहलोत ! जनेऊ नहीं है ? बालदेव जी प्यारू को भीड़ स

9

भाग 8

18 जुलाई 2022
1
0
0

लछमी का भी इस संसार में कोई नहीं ! ...जी, मेरा कोई नहीं !...लछमी सोचती है, उसका दिल इतना नरम क्यों है ? क्यों वह डाक्टर को देखकर पिघल गई ? यह अच्छी बात नहीं।...सतगुरु मुझे बल दो।। सतगुरु के सिवा कोई

10

भाग 9

18 जुलाई 2022
1
0
0

डाक्टर प्रशान्तकुमार ! जात ?... नाम पूछने के बाद ही लोग यहाँ पूछते हैं-जात ? जीवन में बहुत कम लोगों ने प्रशान्त से उसकी जाति के बारे में पूछा है। लेकिन यहाँ तो हर आदमी जाति पूछता है। प्रशान्त हँसकर

11

भाग - 10

18 जुलाई 2022
1
0
0

डाक्टर पत्र लिख रहा है- “ममता, "तुमने कहा था, पहुँचते ही पत्र देना। पहुँचने के एक सप्ताह बाद पत्र दे रहा हूँ। तुम्हारे बाबा विश्वनाथ ने मेरे आने से पहले ही अपने एक दूत को भेज दिया है। प्यारू सचमुच द

12

भाग 11

18 जुलाई 2022
1
0
0

नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से नहीं तोरा पास में तीर जी !... एक सखी ने पूछा कि हे सखी, तुम्हारे पास में न तीर है न तलवार। ...नहीं तोरा आहे प्यारी तेग तरबरिया से कौनहि चीजवा से मारलू बटोहिया क

13

भाग 12

18 जुलाई 2022
1
0
0

मठ पर आचारजगुरु आनेवाले हैं, नए महन्थ को चादर-टीका देने के लिए ! मुजफ्फरपुर जिला का एक मुरती आया है-लरसिंघदास। आचारजगुरु मुजफ्फरपुर जिले के पुपड़ी मठ पर भंडारा में आए हैं। लरसिंघदास खबर लेकर आया है-आच

14

भाग 13

18 जुलाई 2022
1
0
0

तेरह गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! सिर्फ जोतखी जी नहीं, गाँव के सभी मातबर लोग मन-ही-मन सोच-विचार कर देख रहे हैं-गाँव के ग्रह अच्छे नहीं ! तहसीलदार साहब को स्टेट के सर्किल मैनेजर ने बुलाकर एकान्त में कह

15

भाग 14

18 जुलाई 2022
1
0
0

चढ़ली जवानी मोरा अंग अंग फड़के से कब होइहैं गवना हमार रे भउजियाऽऽऽ ! पक्की सड़क पर गाड़ीवानों का दल भउजिया का गीत गाते हुए गाड़ी हाँक रहा .' है। “आँ आँ ! चल बढ़के। दाहिने...हाँ, हाँ, घोड़ा देखकर भी

16

भाग 15

18 जुलाई 2022
1
0
0

सुमरितदास को लोग लबड़ा आदमी समझते हैं, लेकिन समय पर वह पते की बातें बता जाता है। आजकल उसका नाम पड़ा है-बेतार की खबर। संक्षेप में 'बेतार' । बात छोटी या बड़ी, कोई भी नई बात बेतार तुरत घर-घर में पहुँचा द

17

भाग 16

18 जुलाई 2022
1
0
0

मुसम्मात सुनरी ! टक्का कटपीस-एक गज। छींट-डेढ़ गज। मलेछिया साटिन-एक गज। साड़ी-एक नग। बालदेव जी कपड़े की पुर्जी बाँट रहे हैं। रौतहट टीशन के हंसराज बच्छराज मरवाड़ी के यहाँ कपड़ा मिलेगा। खेलावन यादव

18

भाग 17

18 जुलाई 2022
1
0
0

चारजगुरु कासी जी से आए हैं। सभी मठ के जमींदार हैं, आचारजगुरु। साथ में तीस मुरती आए हैं-भंडारी, अधिकारी, सेवक, खास, चिलमची, अमीन, मुंशी और गवैया। साधुओं के दल में एक नागा साधू भी है। यद्यपि वह दूसरे म

19

भाग 18

18 जुलाई 2022
1
0
0

अठारह "क्या नाम ?" "सनिच्चर महतो।" "कितने दिनों से खाँसी होती है? कोई दवा खाते थे या नहीं ?...क्या, थूक से खून आता है ? कब से ?...कभी-कभी ? हूँ !...एक साफ डिब्बा में रात-भर का थूक जमा करके ले आना।.

20

भाग 19

18 जुलाई 2022
1
0
0

चलो ! चलो ! सभा देखने चलो ! सोशलिस्ट पार्टी की सभा की खबर ने संथालटोली को विशेष रूप से आलोड़ित किया है। गाँव में अस्पताल खुलने की खुशखबरी की कोई खास प्रतिक्रिया संथालों पर नहीं हुई थी। गाँव के लड़ाई-

21

भाग 20

18 जुलाई 2022
1
0
0

कमली डाक्टर को पत्र लिखती है- "प्राणनाथ !...तुम कल नहीं आए। क्यों नहीं आए ? सुना कि रात में...।" कमली डाक्टर को रोज पत्र लिखती है। लिखकर पाँच-सात बार पढ़ती है, फिर फाड़ डालती है। उसकी अलमारी के एक क

22

भाग 21

18 जुलाई 2022
1
0
0

रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए ! यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं।

23

भाग 22

18 जुलाई 2022
1
0
0

सतगुरु हो ! सतगुरु हो ! महन्थ रामदास भी छींकने, खाँसने और जमाही लेने के समय महन्थ सेवादास जी की तरह ही चुटकी बजाते हैं, 'सतगुरु हो', 'सतगुरु हो' कहते हैं और आँखें स्वयं ही बन्द हो जाती हैं। भजन, बीजक

24

भाग 23

18 जुलाई 2022
1
0
0

गाँव के लोग अर्थशास्त्र का साधारण सिद्धान्त भी नहीं जानते। 'सप्लाई' और 'डिमांड' के गोरख-धन्धे में वे अपना दिमाग नहीं खपाते। अनाज का दर बढ़ रहा है; खुशी की बात है। पाट का दर बढ़ रहा है, बढ़ता जा रहा है

25

भाग 24

18 जुलाई 2022
1
0
0

चौबीस हाँ रे, अब ना जीयब रे सैयाँ छतिया पर लोटल केश, अब ना जीयब रे सैयाँ ! महँगी पड़े या अकाल हो, पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा। और होली ? फागुन महीने की हवा ही बावरी होती है। आसिन-कातिक के मैलेरि

26

भाग 25

18 जुलाई 2022
0
0
0

बावनदास आजकल उदास रहा करता है। "दासी जी, चुन्नी गुसाईं का क्या समाचार है ?" रात में बालदेव जी सोने के समय बावनदास से बातें करते हैं। “चुन्नी गुसाईं तो सोसलिट पाटी में चला गया।" बालदेव जी आश्चर्य से

27

भाग 26

18 जुलाई 2022
0
0
0

बाबू हरगौरीसिंह राज पारबंगा के नए तहसीलदार बहाल हुए। 'बेतार का खबर' सुमरितदास सबों को कहता है, “देखो-देखो, कायस्थ के जूठे पत्तल में राजपूत खा रहा है। तहसीलदार विश्वनाथबाबू को राज पारबंगा के कुमार साहे

28

भाग 27

18 जुलाई 2022
0
0
0

डाक्टर की जिन्दगी का एक नया अध्याय शुरू हुआ है। उसने प्रेम, प्यार और स्नेह को बायोलॉजी के सिद्धान्तों से ही हमेशा मापने की कोशिश की थी। वह हँसकर कहा करता, "दिल नाम की कोई चीज आदमी के शरीर में है, हमें

29

भाग 28

18 जुलाई 2022
1
0
0

डाक्टर आदमी नहीं, देवता है देवता ! तन्त्रिमाटोली, पोलियाटोली, कुर्मछत्रीटोली और रैदासटोली में सब मिलाकर सिर्फ पाँच आदमी नुकसान हुए। घर-घर में एक-दो आदमी बीमार थे, लेकिन डाक्टर देवता है। दिन-रात, कभी

30

भाग 29

18 जुलाई 2022
0
0
0

कल 'सिरवा' पर्व है। कल पड़मान में 'मछमरी' होगी-मछमरी अर्थात् मछली का शिकार। आज चैत्र संक्रान्ति है। कल पहली वैशाख, साल का पहला दिन। कल सभी गाँव के लोग सामूहिक रूप से मछली का शिकार करेंगे। छोटे-बड़े,

31

भाग 30

18 जुलाई 2022
0
0
0

अखिल भारतीय मेडिकल गजट में डाक्टर प्रशान्त, मैलेरियोलॉजिस्ट के रिसर्च की छमाही रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। गजट के सम्पादक-मंडल में भारत के पाँच डाक्टर हैं। इस रिपोर्ट पर उन लोगों ने अपना-अपना नाम नोट दिय

32

भाग 31

18 जुलाई 2022
0
0
0

मंगलादेवी, चरखा-सेंटर की मास्टरनी जी बीमार हैं। डाक्टर ने खून जाँचकर देखा, कालाआजार नहीं, टाइफायड है। चरखा-सेंटर के दोनों मास्टर तहसीलदार साहब के गुहाल में रहते हैं और मास्टरनी जी भगमान भगत की एक झों

33

भाग 32

18 जुलाई 2022
0
0
0

बैशाख और जेठ महीने में शाम को 'तड़बन्ना' में जिन्दगी का आनन्द सिर्फ तीन आने लबनी बिकता है। चने की घुघनी, मूड़ी और प्याज, और सुफेद झाग से भरी हुई लबनी !... खट-मिट्ठी, शकर-चिनियाँ और बैर-चिनियाँ ताड़ी

34

भाग 33

18 जुलाई 2022
0
0
0

अमंगल ! "गाँव के मंगल का अब कोई उमेद नहीं।" हरगौरी तहसीलदार दुर्गा के वाहन की तरह गुर्राता है-“साले सब ! चुपचाप दफा 40 का दर्खास देकर समझते थे कि जमीन नकदी हो गई। अब समझो। बौना और बलदेवा से जमीन लो।

35

भाग 34

18 जुलाई 2022
0
0
0

फुलिया पुरैनियाँ टीसन से आई है। एकदम बदल गई है फुलिया | साड़ी पहनने का ढंग, बोलने-बतियाने का ढंग, सबकुछ बदल गया है। तहसीलदार साहब की बेटी कमली अँगिया के नीचे जैसी छोटी चोली पहनती है, वैसी वह भी पहनती

36

भाग 35

18 जुलाई 2022
0
0
0

तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के सामने विकट समस्या उपस्थिति है । नई बंदोबस्तीवाले किसान रोज उनके यहाँ जाते हैं। मामला-मुकदमा उठने पर विश्वनाथ प्रसाद की गवाही की जरूरत होगी। बेजमीन लोग अपनी पार्टीबंदी कर रहे

37

भाग 36

18 जुलाई 2022
0
0
0

डाक्टर पर यहाँ की मिट्टी का मोह सवार हो गया। उसे लगता है, मानो वह युग-युग से इस धरती को पहचानता है। यह अपनी मिट्टी है। नदी तालाब, पेड़-पौधे, जंगल-मैदान, जीवन-जानवर, कीड़े-मकोड़े, सभी में वह एक विशेषता

38

भाग 37

18 जुलाई 2022
0
0
0

तहसीलदार विश्वनाथप्रसाद के दरवाजे पर पंचायत बैठी है। दोनों तहसीलदार के अगल-बगल में बालदेवजी और कालीचरन जी बैठे हैं। बाभन-राजपूत के साथ में बैठा है यादव-एक ही ऊँचे सफरे (बिछावन, दरी) पर। अरे ! जीबेसर म

39

भाग 38

18 जुलाई 2022
0
0
0

दो दिन से बदली छाई हुई है। आसमान कभी साफ नहीं होता। दो-तीन घंटों के लिए बरसा रुकी, बूंदा-बाँदी हुई, फिर फुहिया। एक छोटा-सा सफेद बादल का टुकड़ा भी यदि नीचे की ओर आ गया तो हरहराकर बरसा होने लगती है। आसा

40

भाग 39

18 जुलाई 2022
0
0
0

संथाल लोग गाँव के नहीं, बाहरी आदमी हैं ? "...जरा विचार कर देखो। यह तन्त्रिमा का सरदार है...अच्छा, तुम्हीं बताओ जगरू, तुम लोग कौन ततमा हो ? मगहिया हो न ? अच्छा कहो, तुम्हारे दादा ही पच्छिम से आए और तु

41

भाग 40

18 जुलाई 2022
0
0
0

जोतखी ठीक कहते थे-गाँव में चील-काग उड़ेंगे और पुलिस-दारोगा गली-गली में घूमेगा । पुलिस-दारोगा, हवलदार और मलेटरी, चार हवागाड़ी में भरकर आए हैं। दुहाई माँ काली ! इसपी, कलक्टर, हाकिम अभी आनेवाला है। लह

42

भाग 41

18 जुलाई 2022
0
0
0

नौ आसामी का चालान कर दिया। नौ संथालों के अलावा जो लोग घायल होकर इसपिताल में पड़े हैं वे लोग भी गिरिफ्फ हैं। पुरैनियाँ इसपिताल में बन्दूकवाले मलेटरी का पहरा है। गैर-संथालों में कोई गिरिफ्फ नहीं हुआ।.

43

भाग 42

18 जुलाई 2022
0
0
0

हरगौरी की माँ रो रही है-“राजा बेटा रे ! “गौरी बेटा रे !” हरगौरी की सोलह साल की स्त्री बिना गौना के ही आई है । वह बहुत धीरे-धीरे रोती है। घूँघट के नीचे उसकी आँखें हमेशा बरसती रहती हैं। शिवशक्करसिंघ प

44

भाग 43

18 जुलाई 2022
0
0
0

लछमी दासिन आज मन के सभी दुआर खोल देगी। एक लक्ष दुआर ! "बालदेव जी !" “जी!" “रामदास फिर बौरा गया है। कल भंडारी से कह रहा था, लछमी से कहो एक दासी रखने की आज्ञा दे।...कहिए तो भला !" बालदेव जी क्या जवा

45

भाग 44

18 जुलाई 2022
0
0
0

इधर कुछ दिनों से डाक्टर मौसी के यहाँ ज्यादा देर तक बैठने लगा है। मौसी के यहाँ जब तक रहता है, ऐसा लगता है मानो वह शीतल छाया के नीचे हो । काम में जी नहीं लगता है। ऐसा लगता है, उसका सारा उत्साह स्पिरिट क

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए