रात को तन्त्रिमाटोली में सहदेव मिसर पकड़े गए !
यह सब खलासी की करतूत है। ऊपरी आदमी (परदेशी) के सिवा ऐसा जालफरेब गाँव का और कौन कर सकता है ? पुश्त-पुश्तैनी के बाबू लोग छोटे लोगों के टोले में जाते हैं। खेती-बारी के समय रात को ही जनों (मजदूर) को ठीक करना होता है, सूरज उगने से एक घंटा पहले ही खेतों पर मजदूरों को पहुँच जाना चाहिए। इसलिए सभी बड़े किसान शाम या रात को ही अपने-अपने जनों को कह आते हैं। तन्त्रिमाटोली में जब से खलासी का आनाजाना शुरू हुआ है, तभी से नई-नई बातें सुनने को मिल रही हैं। देखा-देखी, दूसरे टोले में भी नियम-कानून, पंचायत और बन्दिश हो गई है। बेचारे सहदेव मिसर को रात-भर तन्त्रिमा लोगों ने बाँधकर रखा।...फुलिया के घर में घुसा था तो फुलिया ने हल्ला क्यों नहीं किया ? जिसके घर में घुसा उसकी नींद भी नहीं खुली, माँ-बाप को आहट भी नहीं मिली और उसका कुत्ता भी नहीं दूंका। गाँव के लोगों को बेतार से खबर मिल गई। यह खलासी की बदमाशी है। रही हालत यही तो छोटे लोगों के टोले में जन के लिए जाना मुश्किल हो जाएगा। कौन जाने, किस पर कब झूठ-मूठ कौन-सी तोहमत लग जाए ? पंचायत होनी चाहिए। राजपूतों ने यदि इस पंचायत में ब्राह्मणों का पक्ष नहीं लिया तो ब्राह्मण लोग ग्वालों को राजपूत मान लेंगे।
"हमको कुछ नहीं मालूम," फुलिया पंचों के बीच हाथ जोड़कर कहती है, “जब आँगन में हल्ला होने लगा तब मेरी आँखें खुलीं।"
सहदेव मिसर के पास मँहगूदास के अंगूठे की टीप है-सादा कागज पर। मँहगू की टीक (चुटिया) सहदेव के हाथ में है। सहदेव जो चाहे कर सकता है। दोनों गायें और चारों बाछे कल ही खूटे से खोलकर ले जाएगा। इसके अलावा साल-भर का खरचा भी तो सहदेव ने ही चला दिया है। एक आदमी की मजदूरी से तो एक आदमी का भी पेट नहीं भरता।...लेकिन अब फुलिया के हाथ में ही सहदेव मिसर की इज्जत और अपने बाप की दुनिया है; उसकी बोली में जरा भी हेर-फेर हुआ कि सहदेव की इज्जत धूल में मिल जाएगी और उसके बाप की दुनिया भी उजड़ जाएगी।
पंचायत में गाँव-भर के छोटे-बड़े लोग जमा हुए हैं। तहसीलदार साहब पुरैनिया गए हैं। पंचायत में अकेले सिंघ जी बोल रहे हैं। काली टोपीवाले संयोजक भी हैं। बालदेव जी भी हैं। कालीचरन बिना बुलाए ही आया है। सिंघ जी अकेले ही जिरह-बहस कर रहे हैं। तहसीलदार साहब रहते तो थोड़ी सहूलियत होती सिंघ जी को।
"...बात पूछने पर एक घंटे में तो जवाब मिलता है।...हाँ, जब आँगन में हल्ला होने लगा तब तुम्हारी नींद खुली।...सुन लीजिए सभी पंच लोग।...अच्छा, जब तुम्हारी नींद खुली तो तुमने क्या देखा ?"
"सहदेव मालिक को आँगन में घेरकर सभी हल्ला कर रहे थे।"
"अच्छा, तुम बैठो। कहाँ, सहदेव मिसर ? अब आप बताइए कि मँहगूदास के यहाँ उतनी रात को आप क्यों गए थे ?"
“रात में हमारे पेट में जरा दर्द हुआ। लोटा लेकर बाहर निकले। जब दिसा-मैदान से हम लौट रहे थे तो देखा कि कमला किनारेवाले खेत में किसी का बैल गहूँम चर रहा है। इसीलिए मँहगू को जगाने गया था।"
"क्यों ?" “कमला किनारेवाली जमीन का पहरा करने के लिए मँहगूदास को ही दिया है।"
"अच्छा, तब ?"
"जब हम जा रहे थे तो रबिया और सोनमा को आपके खेत में सकरकन्द उखाड़ते - पकड़ा। दोनों को डाँट-डपट दिया। मँहगूदास को जगाकर जैसे ही हम उनके आँगन से निकल रहे थे कि रबिता, सोनमा, तेतरा और नकछेदिया ने हमको पकड़ लिया और हल्ला करने लगे।"
“क्या बताएँ, हमारा पाँच बीघा सकरकन्द इन्हीं सालों ने चुराकर खतम कर दिया।...अच्छा, आप बैठ जाइए।...कहाँ मँहगू?"
“जी सरकार," मँहगू बूढ़ा हाथ जोड़कर खड़ा होता है।
"सहदेव मिसर ने तमको जाकर जगाया था ?"
“जी सरकार !"
“अब पंच लोग फैसला करें कि असल बात क्या है।"
कालीचरन कैसे चुप रह सकता है ! पंचायत में एकतरफा बात नहीं होनी चाहिए। रबिया और सोनमा पार्टी का मेम्बर है। यह तो पंचायत नहीं, मुँहदेखी है। कालीचरन कैसे चुप रह सकता है-"सिंघ जी, जरा हमको भी कुछ पूछने दीजिए।"
पंचायत के सभी पंचों की निगाहें अचानक कालीचरन की ओर मुड़ गईं। सिंघ जी गुस्से से लाल हो गए। लेकिन पंचायत में गुस्सा नहीं होना चाहिए। राजपूतटोली के नौजवान आपस में कानाफूसी करने लगे। संयोजक जी ने पाकेट टटोलकर देख लिया-सीटी लाना भूल तो नहीं गए हैं ? जोतखी जी एतराज करते हैं-"कालीचरन को हम लोग पंच नहीं मानते।"
"तो पहले इसी बात का फैसला हो जाए कि पंचायत के कितने लोग हमको पंच मानते हैं और कितने लोग नहीं। एक आदमी के चाहने और न चाहने से क्या होता है !...अच्छा, पंच परमेसर ! क्या हमको इस पंचायत में बैठने, बोलने और राय देने का हक नहीं ? क्या हम इस गाँव के बासिन्द नहीं हैं ?" कालीचरन खड़ा होकर कहता है, "यदि आप लोग हमको पंच मानते हैं तो हाथ उठाइए।" "
गुमसुम बैठे हुए सैकड़ों मूक जानवरों के सिर में मानो अरना (जंगली) भैंसा के सींग जम गए। सैकड़ों हाथ उठ गए।
"दोनों हाथ नहीं, एक हाथ ! ठहरिए, गिनने दीजिए। एक...दो, तीन, चार, पाँच...एक सौ पाँच।"
बालदेव जी ने हाथ नहीं उठाया।
"एक सौ पाँच। अब जो लोग हमको पंच नहीं मानते, हाथ उठाएँ।...एक, दो, तीन, चार, पाँच...पन्द्रह।"
"सिर्फ पन्द्रह !" सिंघ जी को विश्वास नहीं होता। खुद गिनते हैं। राजपूत और ब्राह्मणटोली के लोग कहाँ चले गए ? जोतखी जी के लड़के नामलरैन ने भी कलिया के पक्ष में ही हाथ उठाया है ?...
“फुलिया !" कालीचरन की बोली सुनकर डर लगता है। फुलिया फिर खड़ी होती "देखो, यह पंचायत है। पंचायत में परमेसर रहते हैं। पंचायत में झूठ बोलने से . हाथोंहाथ इसका फल मिलता है। सच-सच बताओ ! सच्ची बात क्या है ?" "..........."
"बोलो!"
"सहदेव मिसर हमारे घर में घुसे थे।"
"तुमने हल्ला क्यों नहीं किया ?"
"..........."
“बोलो, डरने की कोई बात नहीं।"
"बाबा के डर से।"
"बाबा के डर से ?"
"हाँ, बाबा सहदेव मिसर का करजा धारते हैं।"
"बैठ जाओ।...मँहगू !"
मँहगू हाथ जोड़कर फिर खड़ा होता है।
"क्या बात है ?"
"..........."
"फुलिया जो कहती है, ठीक है ?"
"..........."
"डरो मत ! जो बात है, बताओ!"
"कौन गाछ ऐसा है जिसमें हवा नहीं लगती है और पत्ता नहीं झड़ता है !"
"दूसरों की बात मत कहो, अपनी बात बताओ !"
"अकेले हमको क्यों दोख देते हैं ? गाँव-भर का यही हाल है। कौन घर ऐसा है ..."
"मैं तुमसे पूछता हूँ।"
"पहले तुम अपनी माँ से जाकर इमान-धरम से पूछो कि तुम किसके बेटा हो।" जोताखी जी हिम्मत करके कहते हैं। क्रोध से उनकी आँखें लाल हो उठी हैं।
"जोतखी काका, हमको अपने बाप के बारे में मालूम है।"
"जोतखी जी अपनी स्त्री से पूछे कि उनके पेट में किसका बच्चा है।" चिल्लाकर कहता है।
"कौन नहीं जानता कि जोतखी जी का नौकर..."
“चुप रहो सुन्दर !" कालीचरन लोगों को शान्त करता है, "चुप रहो ! शान्ती ! शान्ती !"
'टू टू...टू टू,' संयोजक जी सीटी फूंकते हैं।
और पंचायत को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गए।
एक दर्जन से भी ज्यादा नौजवान राजपूतटोली से हाथ में लाठी लेकर दौड़ आए और पंचायत को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गए।
"सिंघ जी, इन लाठीवाले नौजवानों को आपने बुलाया है ?...तो आप पंचायत नहीं, दंगा करवाना चाहते हैं ?" कालीचरन पूछता है।
सिंघ जी कहते हैं, "अब यह पंचायत नहीं हो सकती। पाटीबन्दी से कहीं इंसाफ होता है ?"
सिंघ जी राजपूतटोली के पंचों के साथ उठ खड़े होते हैं। काली टोपीवाले जवान, सिंघ जी को, संयोजक जी को और राजपूतटोली के पंचों को चारों ओर से घेरे में लेकर, फौजी कवायद करते हुए चले जाते हैं।
जोतखी जी के साथ ब्राह्मणटोली के पंच लोग भी चूहेदानी में फँस गए हैं। खेलावनबाबू का सहारा है। बालदेव जी भी हैं। लेकिन कालीचरन का गुस्सा ?...
"तो पंचायत का यह फैसला है कि मँहगूदास अपनी बेटी फुलिया का चुमौना खलासी के साथ करा दे, और आज से सभी टोले के लोग बाबू लोगों पर नजर रखें।"
पंचायत के सभी पंच एक स्वर से कालीचरन की राय का समर्थन करते हैं। जोतखी जी भी हाथ उठाते हैं और बालदेव जी भी।...यह तो नियाय बात है, इसमें डिफेट करना अच्छा नहीं।
“सहदेव मिसर के पास सादे कागज पर मेरा अँगूठा का टीप है। यदि उसे भरकर नालिस कर दे तब ?" मँहगूदास गिड़गड़ाकर कहता है।
"सहदेव मिसर जब मुकदमा करेंगे, सभी पंच तुम्हारी गवाही देंगे। वह एक पैसा भी तुमसे नहीं पा सकते।"